उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के बेलगाम कुलपति, जांच के आदेश और प्रदेशव्यापी आंदोलन के बाद भी गुपचुप भर्तियां जारी
(तमाम विवादों के बावज़ूद विश्वविद्यालय के मुख्यालय में 3 सितंबर को परीक्षा नियंत्रक के पद के लिए इंटरव्यू लिए गये)
जनज्वार। उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय (Uttarakhand Open University) में प्रोफेसरों समेत अन्य नियुक्तियों में भ्रष्टाचार (Corruption) का मामला आजकल सुर्खियों में है। लेकिन विश्वविद्यालय के कुलपति बेलगाम होकर अब भी नियुक्तियों की प्रक्रिया को गुपचुप तरीके से आगे बढ़ा रहे हैं। राज्यपाल (Governor) की तरफ से जांच के आदेश के बाद भी उन पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा है।
कुलपति ओम प्रकाश नेगी (Om Prakash Negi) के कार्यकाल में हुई नियुक्तियों में धांधली के सबूत आरटीआई के माध्यम से बाहर आ चुके हैं और कई मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर मौज़ूद हैं। कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी और भाकपा-माले जैसे राजनीतिक दल इसके ख़िलाफ राज्य के अलग-अलग हिस्सों में प्रदर्शन कर चुके हैं। कई छात्र संगठन भी कुलपति को बर्खास्त करने की मांग कर चुके हैं। राज्यपाल की तरफ से जांच के आदेश हो चुके हैं। अब कुलपति का सिर्फ पांच महीने का कार्यकाल बचा है। लेकिन वे जाने से पहले बीजेपी-आरएसएस के लोगों और उनके रिश्तेदारों को भर्ती करने में कोई कोताही नहीं बरतना चाहते।
तमाम विवादों के बावज़ूद विश्वविद्यालय के मुख्यालय में 3 सितंबर को परीक्षा नियंत्रक के पद के लिए इंटरव्यू लिए गये। तय माना जा रहा है कि इसमें भी किसी आरएसएस पृष्ठभूमि के व्यक्ति का ही चयन होगा। लेकिन सबसे हैरानी की बात ये है कि क्या इतने हंगामे के बाद भी कुलपति बेलगाम होकर धड़ाधड़ नियुक्तियां किसकी सह पर कर रहे हैं। सरकार अपनी इतनी किरकिरी कराने के बाद भी उन्हें बर्खास्त करना तो दूर नई नियुक्तियों पर भी रोक नहीं लगा रही है। चर्चा है कि परीक्षा नियंत्रक के अलावा भी अंदरखाने कुछ और चहेते लोगों की नियुक्ति की तैयारी चल रही हैं।
अब कुलपति 15 सितंबर को विश्वविद्यालय की सर्वोच्च नीति निर्माता कार्य परिषद (ईसी) की बैठक बुला रहे हैं। इसका मक़सद सिर्फ़ और सिर्फ़ भ्रष्टाचार के मुद्दों से ध्यान हटाना है। ईसी में ज़्यादातर लोग बीजेपी और आरएसएस से जुड़े हैं जो कभी भी सही मुद्दों पर चर्चा नहीं होने देते।
राज्यपाल अगर हस्तक्षेप करें या फिर जन दबाव हो तो इस मीटिंग में भ्रष्टाचार पर भी बात करने के लिए ईसी को मजबूर किया जा सकता है। अगर ईसी की बैठक में इतने हंगामें के बाद भी भ्रष्टाचार पर चर्चा नहीं होती तो साफ है कि कुलपति राजनीतिक सह पर लगातार अपनी मनमानी कर रहे हैं। आम तौर पर कोई भी कुलपति अपना कार्यकाल पूरा होने से 6 महीने पहले नैतिकतावश कोई भी दीर्घकालिक फैसले नहीं लेता है। नियुक्तियां तो बिल्कुल नहीं करते।
आप के प्रदेश प्रवक़्ता नवीन पिराशाली कुलपति ओम प्रकाश नेगी और शिक्षा मंत्री धनसिंह रावत को बर्खास्त करने की मांग कर चुके हैं। उनकी पार्टी इस मामले में प्रदेश व्यापी आंदोलन चला रही है। भाकपा-माले नेता डॉ कैलाश पांडे ने भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे कुलपति के कामों कीं जांच हाई कोर्ट के निर्देशन में कराने की मांग की है।
उन्होंने कहा है कि जब राज्य के शिक्षा मंत्री ही कठघरे में हैं तो उसकी जांच सरकार कैसे करा सकती है। कांग्रेस के हरीश रावत से लेकर गणेश गोदियाल, प्रीतम सिंह और करन माहरा जैसे नेता प्रोफेसरों की भर्ती पर सवाल उठा चुके हैं। लेकिन सरकार के कानों पर जूं तक नहीं रेंग रही है और उसने कुलपति को मनमानी करने का पूरा लाइसेंस दे रखा है।
उत्तराखंड में एक तरफ भयानक बेरोजगारी अपने चरम पर है वहीं मुक्त विश्वविद्यालय में सत्ताधारी पार्टी से जुड़े कुछ चहेते बैक डोर से पद हथिया रहे हैं ये उत्तराखंड के युवाओं के साथ तो अन्याय है ही बल्कि सत्ता संरक्षित भ्रष्टाचार का भी बड़ा मामला है। इतना ही नहीं विश्वविद्लाय ने प्रोफेसरों की भर्ती में महिलाओं का 30 फीसदी आरक्षण भी हड़प लिया। ये राज्य गठन के लिए कुर्बानी देने वाली राज्य की महिलाओं का भी घनघोर अपमान है।