उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय का गजब गणित, फर्जी भर्ती के आरोपी प्रोफेसर ने राज्यपाल को चिट्ठी लिखकर कुलपति को बताया महान

मदन मोहन जोशी वही व्यक्ति हैं जिनका नाम इतिहास विषय में एसोसिएट प्रोफेसर पद की भर्ती में सात महीने पहले ही राज्यपाल के पास पहुंच गया था लेकिन राज्यपाल की तरफ़ से जांच के आदेश के बाद भी बड़ी दबंगई से उनका चयन कर लिया गया....

Update: 2021-09-10 08:11 GMT

(प्रोफेसर भर्ती महाघोटाले का पर्दाफाश होने के बाद भी पूरी सरकारी मशीनरी कुलपति को बचाने में लगी है)

जनज्वार। उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय (Uttarakhand Open University) में प्रोफेसरों की भर्ती में हुई धांधली को सही ठहराने के लिए गजब गणित पेश किया जा रहा है। यहां भर्तियों से सात महीने पहले ही राज्यपाल (Governor) को भेजे गये एक शिकायती पत्र में 9 लोगों की नियुक्ति (Recruitment) की साजिश की पोल खोल दी गई थी। बाद में उन्हीं 9 लोगों का चयन हो जाता है। उसी में से एक प्रोफेसर ने राज्यपाल को पत्र लिखकर कुलपति (VC) की तारीफ़ की है। इस बीच फर्जी दस्तावेजों और राजनीतिक संरक्षण की मदद से भर्ती होने के आरोपी अन्य प्रोफेसर भी कुलपति के पक्ष में बयान जारी करने लगे हैं। ये चोरी और ऊपर से सीनाजोरी वाला मामला है।

'जनज्वार' में मुक्त विश्वविद्याल में प्रोफेसरों की भर्ती के महाघोटाले की ख़बरें आने के बाद उत्तराखंड की राजनीति में उबाल आया हुआ है। कांग्रेस और आप जैसे राजनीतिक दलों ने सरकार के ख़िलाफ मोर्चा खोल रखा है। लेकिन आरटीआई से मिले तमाम दस्तावेज़ों के बावजूद शिक्षा मंत्री फिर से सबूत मांग रहे हैं। आम आदमी पार्टी इस लीपापोती के ख़िलाफ प्रदेशव्यापी प्रदर्शन कर चुकी है। उसने ऐलान किया है कि वो दोषियों को सलाखों के पीछे पहुंचाकर ही दम लेगी।

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मीडिया में प्रोफेसर भर्ती महाघोटाले का पर्दाफाश होने के बाद भी पूरी सरकारी मशीनरी कुलपति को बचाने में लगी है। 25 प्रोफेसरों की भर्ती में भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे कुलपति ओम प्रकाश नेगी (Om Prakash Negi) खुद को सही साबित करने की हर कोशिश कर रहे हैं। बीजेपी-आरएसएस नेताओं के दरवाज़े पर मत्था टेकने के अलावा वे मीडिया को भी मैनेज करने में लगे हैं। लेकिन इस काम में वे जो सबूत छोड़ रहे हैं वो उनकी लीपापोती की पोल खोल देते हैं। ऐसा माहौल बनाया जा रहा है कि बीजेपी की सरकार फिर से आने वाली है और वे ही दोबारा कुलपति बनने वाले हैं।

लीपापोती का ऐसा ही एक मामला विश्वविद्यालय शिक्षक संघ के लैटरहैड पर राज्यपाल को पत्र लिखने का है। इस पत्र में कुलपति की चमचागिरी करते हुए दावा किया गया है कि विश्वविद्यालय में सबकुछ अच्छा चल रहा है। ओमप्रकाश नेगी के महान नेतृत्व में विश्वविद्यालय दिन-दूनी और रात-चौगुनी तरक्की कर रहा है। वे भ्रष्टाचार पर सवाल उठाने वाले पत्रकारों को उपद्रवी तत्व बताते हैं। सबसे हैरान करने वाली बात ये है कि ये पत्र विश्वविद्यालय के सभी शिक्षकों की तरफ़ से राज्यपाल को भेजा गया है। जबकि विश्वविद्यालय में पहले से काम कर रहे ज़्यादातर शिक्षक भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ हैं। इस मामले की न्यायिक जांच हो जाये तो दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा। प्रोफेसरों को इस बात से क्यों एतराज़ होना चाहिए?

विश्वविद्यालय में इस तरह के शिक्षक संघ का कोई अस्तित्व नहीं है। चार साल पहले कुछ लोगों की एक कमेटी बनायी गई थी और उसे एक साल के लिए काम दिया गया था कि वो संस्था को पंजीकृत कराये और शिक्षकों की बेहतरी के लिए काम करे। लेकिन इसके अध्यक्ष मदन मोहन जोशी ने समय पूरा होने के बाद भी ना तो संस्था पंजीकृत करायी और ना ही शिक्षकों के वास्तविक मुद्दों के उठने के डर से कोई मीटिंग बुलाई। स्वाभाविक तौर पर एक साल बाद ऐसे किसी शिक्षक संघ का कोई अस्तित्व नहीं था। वे अपने नंबर बढ़ाने के लिए कुलपति के आगे इतनी नतमस्तक थे कि उन्होंने एक ईमानदार शिक्षक संघ की भ्रूण हत्या कर दी।

मदन मोहन जोशी वही व्यक्ति हैं जिनका नाम इतिहास विषय में एसोसिएट प्रोफेसर पद की भर्ती में सात महीने पहले ही राज्यपाल के पास पहुंच गया था। लेकिन राज्यपाल की तरफ से जांच के आदेश के बाद भी बड़ी दबंगई से उनका चयन कर लिया गया। ये इस बात का भी सबूत है कि जब सरकार ही कटघरे में खड़ी हो तो सरकारी जांच का कोई मतलब नहीं। इस सिलसिले में जनज्वार ने पहले ही एक ख़बर प्रकाशित की है। भर्तियों से पहले ही 'हिंदुस्तान' अखबार ने प्रक्रिया में अपनायी जा रही अनियमितता की खबरें प्रकाशित करनी शुरू कर दी थीं। ये पत्र उन्हीं खबरों को गलत बताने के लिए लिखा गया है।


जोशी अल्मोड़ा में जनसंघ के पूर्व विधायक और आरएसएस कार्यकर्ता रहे राम चरण के जोशी के पुत्र हैं। ख़ुद भी आरएसएस विचारधारा के ध्यवजवाहक हैं। राज्यपाल को कुलपति की तारीफ में पत्र लिखने वाले यही जोशी शिक्षक संघ का बेजा इस्तेमाल करते हुए अपने हित साधने में लगे रहे। और परिणाम स्वरूप एसोसिएट प्रोफेसर के पद की कृपा उन पर बरस गई। उनके असिस्टेंट प्रोफेसर की नियुक्ति भी सवालों के घेरे में रही है और उस पर यूजीसी मानकों के अनुसार ना होने के आरोप लगे हैं।

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मामला बिल्कुल साफ है। कुलपति ने विश्वविद्यालय और यूजीसी के नियमों की अनदेखी कर प्रोफेसरों की भर्ती की, और मदन मोहन जोशी शिक्षक संघ का बेजा इस्तेमाल करते हुए राज्यपाल को गलत पत्र लिखकर कुलपति की तारीफ करते हैं। इस पत्र से साफ होता है कि जोशी लगातार कुलपति से मिलकर सबकुछ रफा-दफा करने में लगे हुए थे। एसोसिएट प्रोफेसर पर उनकी नियुक्ति इस घपले के सारे तारों को आसानी से आपस में जोड़ देती है।

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इस बीच चोर दरवाजे से भर्ती पाये 25 शिक्षकों में से कुछ लोगों ने एक मीटिंग कर फिर से कुलपति के कामों को सही ठहराया है। ये अपनी नौकरी बचाने के लिए कुलपति के पक्ष में खड़े हैं। इनमें से अधिकांश बीजेपी और आरएसएस के कार्यकर्ता हैं। मदन मोहन जोशी एक बार फिर इन सभी विवादास्पद शिक्षकों का नेतृत्व कर रहे हैं। इस काम में फर्जी दस्तावेजों की मदद से भर्ती जुलॉजी के पीके सहगल और पत्रकारिता के राकेश रयाल सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। इन दोनों के ही फर्जी दस्तावेज़ आरटीआई के माध्यम से पहले ही बाहर आ चुके हैं।

दस्तावेज़ ये साबित कर चुके हैं कि मुक्त विश्वविद्यालय के प्रोफेसरों की भर्ती में महाघोटाला हुआ है। इसकी शुरुआत आरक्षण के रोस्टर से महिलाओं के तीस फीसदी आरक्षण को हड़प जाने से हुई थी। इसके अलावा अनुसूचित जनजाति और विकलांग आरक्षण भी ग़ायब कर गया। अगर सही रोस्टर लागू होता तो तमाम फर्जी प्रोफेसर भर्ती नहीं हो पाते। कुलपति के पास संवैधानिक आरक्षण हज़म कर जाने का कोई ज़वाब नहीं है।

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