कोरोना वायरस : शहरों की जगह अब गांवों में तेजी से फैल रही महामारी, अगस्त में गांवों से सामने आए ज्यादा मामले

क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज में वायरोलॉजी विभाग के पूर्व प्रमुख डॉ. टी जैकब जॉन कहते हैं, हमने दिल्ली, मुंबई और चेन्नई जैसे शहरों में जंगल की आग की तरह फैल रही बीमारी को देखा है, सरकारें महामारी को नियंत्रण में लाने में सक्षम थीं, गांवों में जो संभावना है, वह इस तरह नहीं होगी, गांव में यह धीमी और लंबी जलती आग होगी, जिसको निपटना काफी कठिन होगा....

Update: 2020-08-26 14:43 GMT

(देशव्यापी लॉकडाउन के बाद गांवों की ओर लौटते प्रवासी मजदूर)

नई दिल्ली। अगस्त के महीने में दर्ज किए गए सभी कोविड -19 मामलों में से आधे से अधिक 584 जिलों से आए हैं जिन्हें 'ज्यादातर ग्रामीण' या 'पूरी तरह से ग्रामीण' के रूप में वर्गीकृत किया गया था। इसका मतलब ये है कि कोरोना वायरस के अधिकांश मामले अब ग्रामीण क्षेत्र से सामने आ रहे हैं या कोरोना वायरस संक्रमण ग्रामीण इलाकों तक पहुंच गया है। कोरोना वायरस के गांवों तक फैलने के साथ ही देश के सामने स्वास्थ्य देखभाल की चुनौतियां, परीक्षण से लेकर उपचार तक की चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। 

महामारी के शुरूआती महीनों में कोरोना के मामले बड़े पैमाने पर शहरी क्षेत्रों, विशेषकर दिल्ली, मुंबई और चेन्नई तक थे लेकिन वर्तमान ट्रेंड बिल्कुल अलग है।  यह हिंदुस्तान टाइम्स विश्लेषण हाउ इंडिया लाइव्स द्वारा जिला-स्तर के आंकड़ों पर आधारित है, हालांकि एचटी डैशबोर्ड पर एक सरसरी नज़र से यह भी पता चलता है कि यह ट्रेंड पिछले कुछ हफ्तों से मजबूत हो रहा है। वायरल बीमारी के खिलाफ भारत की लड़ाई की अग्रिम पंक्ति स्पष्ट रूप से चली गई है।

विशेषज्ञों ने कहा कि गांवों में पर्याप्त स्वास्थ्य ढांचे की कमी एक बड़ी चुनौती होगी। गांवों के सामने पहली चुनौती परीक्षण की है। आरटी-पीसीआर प्रयोगशालाओं में से अधिकांश वर्तमान में बड़े शहरों या जिला मुख्यालयों में स्थित हैं और बहुत दुर्लभ हैं, चिकित्सा उपकरणों और चिकित्सकों की कमी का मुद्दा भी है।

दिल्ली के मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज के मेडिकल डायरेक्टर डॉ सुरेश कुमार ने कहा कि पल्स ऑक्सीमीटर और रेडियोलॉजी जैसी मशीनें अच्छी गुणवत्ता वाली छाती एक्स-रे जैसी मशीनें हैं, जो कोविद मरीजों के स्वास्थ्य की निगरानी करने के लिए महत्वपूर्ण उपकरण हैं।

वहीं इस महामारी को लेकर काउंटर नजरिया भी है। नीति आयोग के सदस्य डॉ. वीके पॉल अभी कोविड 19 प्रबंधन को लेकर बनी नेशनल टास्क फोर्स की अध्यक्षता कर रहे हैं, वह कहते हैं, ग्रामीण क्षेत्रों से आने वाले मामलों की रिपोर्टें हैं, लेकिन हमारे पास जो एडवांटेज है, वो ये है कि यहां जनसंख्या का घनत्व कम है, जिसके कारण मामलों को पहचाना जा सकता है, आइसोलेट किया जा सकता है और जल्दी उपचार किया जा सकता है। इन इलाकों में निगरानी और अनुपालना कहीं बेहतर हो सकती है और यह बीमारी को प्राभव ढ़ से फैलने से रोकने में सहायक है।

उन्होंने कहा, हमें इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि हमें ग्रामीण क्षेत्रों में सावधान रहना चाहिए और ध्यान केंद्रित करना चाहिए क्योंकि कुछ गांव पॉजिटिव मामलों के प्रबंधन के लिए पर्याप्त सुविधाओं की कमी से पीड़ित हो सकते हैं।

विश्लेषण से यह भी पता चलता है कि भारत के करीब 734 जिले कोविड 19 से अछूते हैं, जबकि 700 से अधिक जिलों और राष्ट्रीय राजधानी में अबतक मामले दर्ज किए गए हैं। जब 25 मार्च को देशव्यापी लॉकडाउन किया गया था तो सिर्फ सौ से अधिक जिलों में मामले दर्ज किए गए थे (उनमें से कई जिलों में एक मामला था)। मई के अंत तक प्रभावित जिलों की संख्या 600 से अधिक थी।

विशेषज्ञों ने कहा कि ग्रामीण इलाकों में कोरोना के खिलाफ लड़ाई लंबी हो सकती है। क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज में वायरोलॉजी के पूर्व प्रमुख डॉ. टी जैकब जॉन कहते हैं, हमने दिल्ली, मुंबई और चेन्नई जैसे शहरों में जंगल की आग की तरह फैल रही बीमारी को देखा है, लेकिन उतनी ही तेजी से सरकारें महामारी को नियंत्रण में लाने में सक्षम थीं। गांवों में जो संभावना है, वह इस तरह नहीं होगी, गांव में यह धीमी और लंबी जलती आग होगी, जिसको निपटना काफी कठिन होगा। सामान्य तौर पर गांवों में पहले से ही उनकी अपर्याप्त स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली की वजह से नुकसान होता है, इसलिए यह एक लंबी लड़ाई बन सकती है।

विश्लेषण ग्रामीण आबादी के अनुपात के आधार पर जिलों को पाँच श्रेणियों में वर्गीकृत करता है- पूरी तरह से शहरी (ग्रामीण आबादी का 20% से कम), ज्यादातर शहरी (20% -40% ग्रामीण), मिश्रित (40% -60% ग्रामीण), ज्यादातर ग्रामीण (60% से 80% ग्रामीण) और पूरी तरह से ग्रामीण (80% से अधिक) ग्रामीण आबादी)। ग्रामीण आबादी का अनुपात 2011 की जनगणना (उपलब्ध नवीनतम आंकड़ों) पर आधारित है।

विश्लेषण के अनुसार, अगस्त में रिपोर्ट किए गए लगभग 1.4 मिलियन नए कोविड-19 मामलों में से 55% (उन मामलों को जहां जिला जाना जाता है) पिछले दो श्रेणियों में 584 जिलों से आए हैं। पहले ऐसा नहीं था। अप्रैल में रिपोर्ट किए गए नए मामलों में से केवल 23% इन जिलों से आए। यह हिस्सा हर महीने लगातार बढ़ रहा है - यह मई में 28%, जून में 24% और जुलाई में 41% था।

चूंकि कोविद -19 शहरी केंद्रों से दूर है, 16 शहरी जिले (15 जिले+दिल्ली) जहां ग्रामीण आबादी का हिस्सा 20% से कम है, अगस्त में देश के कोविद -19 मामलों की केवल 13% रिपोर्ट की गई। अप्रैल, मई और जून में 44% से अधिक नए मामले इन शहरी जिलों से आए। जुलाई में, 23% मामले इन जिलों से आए।

ग्रामीण चुनौती का बड़ा हिस्सा दो राज्यों उत्तर प्रदेश और बिहार के आसपास केंद्रित होने की संभावना है, जहां अधिक ग्रामीण आबादी है, इन दोनों राज्यों ने पिछले कुछ हफ्तों में कोरोना के मामलों में तेजी और स्थिर वृद्दि देखी है। दोनों राज्यों, जो देश की आबादी में एक चौथाई से अधिक हिस्सा रखते हैं, में पिछले कुछ हफ्तों में मामलों की संख्या बढ़ने के बावजूद देश में सबसे कम परीक्षण दर हैं। दोनों ने राष्ट्रीय औसत के लगभग 28,000 के मुकाबले प्रति मिलियन 20,000 से अधिक परीक्षण किए हैं।

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