पीसीपीएनडीटी एक्ट के इस प्रावधान को एक महिला ने दी चुनौती, सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी कर मांगा जवाब

सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court ) के हालिया फैसले का हवाला देते हुए याचिकाकर्ता ने कहा कि अदालत ने प्रजनन विकल्प बनाने के लिए महिलाओं के अधिकारों को बरकरार रखा है। जबकि पीसीपीएनडीटी ( PCPNDT ) में निहित आयु प्रतिबंध महिलाओं को अधिकार का उपयोग करने से रोकता है।

Update: 2022-10-26 07:59 GMT

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नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court ) ने एक महिला की याचिका पर गर्भपात और प्रसव पूर्व निदान टेस्ट ( Abortion and Prenatal Diagnostic Tests ) करने के लिए 35 वर्ष की आयु प्रतिबंध ( Age ban ) की वैधता की जांच करने का फैसला लिया है। शीर्ष अदालत ने अधिवक्ता मीरा कौर पटेल द्वारा दायर तीन साल पहले दायर याचिका पर सुनवाई के बाद इससे जुड़े विभागों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। याचिकाकर्ता महिला ने प्री-कॉन्सेप्शन और प्री-नेटल डायग्नोस्टिक तकनीक (PCPNDT ) अधिनियम 1994 की धारा 4 (3) (i) में 35 वर्ष की आयु की महिलाओं के प्रजनन अधिकारों पर प्रतिबंध वाले प्रावधान को चुनौती दी है।

पीसीपीएनडीटी (PCPNDT ) अधिनियम प्रसव पूर्व लिंग चयन पर रोक लगाता है। यह कानून कन्या भ्रूण हत्या की बुराई को रोकने के लिए कानून बनाया गया था। याचिकाकर्ता ने एक्स बनाम प्रधान सचिव, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग, सरकार और दिल्ली के एनसीटी 2022 लाइव लॉ (एससी) 621 में सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले का हवाला देते हुए कहा कि उक्त फैसले में प्रजनन विकल्प बनाने के लिए महिलाओं के अधिकारों को बरकरार रखा है। जबकि आयु का प्रतिबंध महिलाओं को इस अधिकार का उपयोग करने से रोकता है।

सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court ) के जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस अभय एस ओका की पीठ ने उक्त पहलू तक सीमित नोटिस जारी किया है। अदालत ने कहा कि प्रसव पूर्व निदान टेस्ट और प्रसवपूर्व निदान टेस्ट का अर्थ अल्ट्रासोनोग्राफी या किसी गर्भवती महिला या कॉन्सेप्टस के एमनियोटिक द्रव, कोरियोनिक विली, रक्त या किसी ऊतक या तरल पदार्थ का कोई टेस्ट या विश्लेषण है। पीसीपीएनडीटी एक्ट की धारा 4 में प्रसव पूर्व निदान तकनीकों के नियमन का प्रावधान है। इन प्रावधानों के तहत प्रसव पूर्व निदान तकनीकों का इस्तेमाल गुणसूत्र संबंधी असामान्यताएं, आनुवंशिक चयापचय रोग, हीमोग्लोबिनोपैथी, सेक्स से जुड़े आनुवंशिक रोग, जन्मजात विसंगतियां, कोई अन्य असामान्यताएं या बीमारियां की स्थिति में किया जा सकता है।

याचिकाकर्ता ने इस बात का दावा किया

इस एक्ट में आगे ये प्रावधान है कि किसी भी प्रसव पूर्व निदान तकनीक का उपयोग या संचालन तब तक नहीं किया जाएगा जब तक कि जांचकर्ता गर्भवती महिला की आयु पैंतीस वर्ष से अधिक है या नहीं, गर्भवती महिला के दो या अधिक स्वतःस्फूर्त गर्भपात या भ्रूण की हानि हुई है या नहीं, गर्भवती महिला संभावित टेराटोजेनिक एजेंटों जैसे ड्रग्स, विकिरण, संक्रमण या रसायनों के संपर्क में आई है या नहीं, गर्भवती महिला या उसके पति या पत्नी का मानसिक मंदता या शारीरिक विकृतियों का पारिवारिक इतिहास है या नहीं, जैसे कि स्पास्टिकिटी या कोई अन्य आनुवंशिक रोग है या नहीं से संतुष्ट न हो।

ये है गर्भपात पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला

सुप्रीम कोर्ट ( Supreme court ) ने एक्स बनाम प्रधान सचिव, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग और दिल्ली सरकार मामले में गर्भपात को लेकर फैसला दिया था कि सभी महिलाएं सुरक्षित और कानूनी गर्भपात की हकदार हैं। अविवाहित महिलाओं को एमटीपी नियमों के नियम 3बी के दायरे से बाहर करने का कोई औचित्य नहीं है, जिसमें उन महिलाओं की श्रेणियों का उल्लेख है जो 20 से 24 सप्ताह की गर्भावस्था में गर्भपात की मांग कर सकती हैं। शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि इस फैसले में कुछ भी पीसीपीएनडीटी एक्ट के प्रावधानों को कमजोर करने के रूप में नहीं माना जाना चाहिए।

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