Sudarshan TV Ad Revenue: सुदर्शन टीवी को AAP - कांग्रेस ने दिए लाखों के विज्ञापन, लेकिन असलियत छिपाने के लिए कर रहे एक - दूसरे को ट्रोल

Sudarshan TV Ad Revenue: देश में नफरत फैलाने वाले सैटेलाईट न्यूज चैनलों की चर्चा होते ही जिस सबसे भौंडे चैनल का नाम याद आता है, सुदर्शन चैनल उसमें शामिल है। हालांकि नफरत फैलाने में कई चैनल इससे भी अग्रणी भूमिका में हैं लेकिन यह चैनल नफरत का कारोबार भी इतने भौंडे ढंग से करता है कि न्यूज चैनल की बजाय तमाशा कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।

Update: 2022-07-04 15:14 GMT

Sudarshan TV Ad Revenue: सुदर्शन टीवी को AAP - कांग्रेस ने दिए लाखों के विज्ञापन, लेकिन असलियत छिपाने के लिए कर रहे एक - दूसरे को ट्रोल

Sudarshan TV Ad Revenue: देश में नफरत फैलाने वाले सैटेलाईट न्यूज चैनलों की चर्चा होते ही जिस सबसे भौंडे चैनल का नाम याद आता है, सुदर्शन चैनल उसमें शामिल है। हालांकि नफरत फैलाने में कई चैनल इससे भी अग्रणी भूमिका में हैं लेकिन यह चैनल नफरत का कारोबार भी इतने भौंडे ढंग से करता है कि न्यूज चैनल की बजाय तमाशा कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। अपने कंटेंट में यह चैनल अपने एक सूत्रीय हिंदू-मुसलमान, पाकिस्तान, राष्ट्रवाद, मंदिर-मस्जिद से इतर कुछ परोसता हो, इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। न्यूज के नाम पर परोसे जाने वाला इसका कंटेंट इस हद तक भौंडा होता है कि इसके एक प्रोग्राम को रूकवाने के लिए न्यायालय तक को दखल देने को मजबूर होना पड़ा। यूपीएससी परीक्षा में मुसलमान प्रतिभागियों की सफलता का बढ़ा हुआ प्रतिशत इस चैनल को मुसलमानों का संगठित शिक्षा जिहाद दिखने लगा था। कई दिन के प्रोमो के बाद इस कथित शिक्षा जिहाद पर यह चैनल एक शो तक करने पर उतारू था। लेकिन इस शो के प्रोमो के आधार पर ही न्यायालय ने इसके शो को नफरत फैलाने वाला बेतुका शो मानते हुए इसके शो पर रोक लगा दी थी।



ऐसी आला खूबियों वाले न्यूज चैनल को देखकर पहला ध्यान यही आता है कि ऐसी अनाप-शनाप प्रोपेगंडायुक्त खबरें दिखाने की एवज में इसे भाजपा सरकारों से भरपूर विज्ञापन के रुप में आर्थिक मदद मिलती होगी। लेकिन अगर पता चले कि इस चैनल को पालने-पोसने में गैर भाजपा दल भी पीछे नहीं हैं तो झटका लगना स्वाभाविक है। लेकिन सच्चाई यही है कि गैर भाजपा दल जिसमें अरविन्द केजरीवाल की आम आदमी पार्टी और कांग्रेस जैसे दल शामिल हैं, इस चैनल को चलाए रखने में खासे मददगार साबित हो रहे हैं। एक सूचना अधिकार रिपोर्ट से इसका खुलासा हो चुका है।


इस रिपोर्ट पर बात करने से पहले इस चैनल के अतीत पर नजर डालें तो मोदी शासन काल से पहले इस चैनल की आर्थिक स्थिति बेहद मामूली थी। चैनलों की दुनिया में इसे उसी प्रकार देखा जाता था जैसे समाज में अंत्योदय राशन कार्ड धारक को। बलात्कार के आरोप का मुकदमा झेल रहे सुरेश चव्हाण नाम के व्यक्ति के चैनल सुदर्शन टीवी को 2011-12 से 2014 तक सिर्फ़ 3.5 लाख के सरकारी विज्ञापन मिले थे। लेकिन केन्द्र में मोदी सरकार के आते ही इस चैनल के वह अच्छे दिन आ गए जिसका वायदा करके मोदी सरकार केंद्र में आई थी। इस चैनल के विज्ञापनों की मद में बीस गुना इजाफा हो गया। 23 लाख के विज्ञापन सुरेश चव्हाण के इस चैनल को मिले। इससे आगे के सालों की बात करें तो सुदर्शन चैनल को 2017-18 में 81.3 लाख तक के विज्ञापन मिले। फिलहाल इससे बाद के आंकड़े उपलब्ध नहीं हो पाए हैं।

लेकिन क्योंकि यह विज्ञापन भाजपा सरकार ने दिए थे तो माना जा सकता है कि भारतीय जनता पार्टी अपना एजेंडा सेट करने का बदला इस पर विज्ञापन लुटाकर चुका रही है। लेकिन सूचना अधिकार से मिली यह जानकारी चौंकाने वाली है कि जो पार्टियां खुद इन प्रोपेगंडायुक्त चैनलों का विरोध करती हैं, वह भी इन चैनलों को आर्थिक रूप से मजबूती देने में भाजपा से पीछे नहीं हैं। दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार ने इस नफराती चैनल को 17,39,202 रुपए के विज्ञापन जारी किए हैं तो छत्तीस गढ़ की कांग्रेस सरकार ने भी इस चैनल को 16,80,103 रुपए के विज्ञापन खुले हाथ से दिए हैं।

हालांकि किसी भी न्यूज चैनल या अखबार को विज्ञापन देने के लिए उस राज्य के सूचना एवम् जनसंपर्क विभाग द्वारा चैनल की टीआरपी व अखबारों की प्रसार संख्या के आधार पर मेरिट बनाकर उन्हें विज्ञापन दिए जाने की परिपाटी है। लेकिन यह सब कागजों पर ही होता है। मीडिया संस्थानों को विज्ञापन दिए जाने का अंतिम निर्णय संबंधित राज्य के मुखिया की सहमति के आधार पर ही किया जाता है। ऐसे में अब जब आम आदमी पार्टी व कांग्रेस शासित राज्यों द्वारा नफरत का कारोबार कर रहे सुदर्शन न्यूज़ चैनल को खुले हाथ से विज्ञापन दिए जाने का खुलासा हो ही चुका है तो समझा जा सकता है कि रात-दिन भाजपा की सामाजिक विघटनकारी राजनीति को कोसने वाले इन दलों का वास्तविक एजेंडा क्या है।

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