#FarmersProtest बाॅर्डर पर आज भी किसानों का विरोध-प्रदर्शन जारी, कानून रद्द करने से कम पर नहीं होंगे राजी

किसान कृषि कानून रद्द करने की मांग पर अड़े हैं। सरकार ने नरमी के संकेत दिए हैं, लेकिन अब नजरें पांच दिसंबर को होने वाली बैठक पर टिकी हैं...

Update: 2020-12-04 05:38 GMT

सिंघु बाॅर्डर पर प्रदर्शन कर रहे किसान सड़क पर ही रात गुजार रहे हैं।

जनज्वार। सरकार से एक तीन दिसंबर की वार्ता विफल होने के बाद किसानों का विरोध प्रदर्शन शुक्रवार को भी जारी है। किसान दिल्ली-गाजियाबाद के गाजीपुर बाॅर्डर, टिकरी बाॅर्डर, दिल्ली-हरियाणा के सिंघु बाॅर्डर सहित अन्य जगहों पर किसानों का आंदोलन जारी है। अब सरकार द्वारा वार्ता के लिए तय की गई नई तारीख पांच दिसंबर पर लोगों की नजरें टिकी हैं।

किसान पूरी तरह से कृषि कानून को खत्म करने की मांग पर अड़े हुए हैं। किसानों के आंदोलन को देखते हुए सिंघु बाॅर्डर पर आज भी बड़ी संख्या में पुलिस बल तैनात किए गए हैं।

सिंघु बाॅर्डर पर प्रदर्शन कर रहे किसानों ने मांग की है कि कृषि कानूनों को रद्द करने के लिए सभी राज्यों के किसान संगठनों को बुलाया जाए और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद इस संबंध में बैठक करें और कानून को रद्द करने का निर्णय लें।

उधर, उत्तरप्रदेश के किसानों के एक बड़े दल का कृषि कानूनों के खिलाफ नोएडा के राष्ट्रीय दलित प्रेरणा स्थल पर प्रदर्शन जारी है। यहां बिजनौर से आए एक प्रदर्शनकारी ने कहा कि हम पंजाब के किसानों के समर्थन में आए हैं, जब तक कानून वापस नहीं होते हम नहीं जाएंगे।


किसानों के प्रदर्शन के कारण आम लोगों को आवाजाही में दिक्कत हो रही है। एक यात्री ने कहा कि वह बुलंदशहर से आए हैं और बच्ची का ऑपरेशन कराने के लिए एम्स जाना था, लेकिन वे सुबह से यहां डेढ घंटे से फंसे हुए हैं।


किसानों व सरकार के बीच वार्ता में क्या है पेंच?

मोटे तौर पर किसानों की मांग है कि मानसून सत्र में तीन विधेयक पारित कर मोदी सरकार ने जो तीन नए कृषि कानून बनाए हैं, उन्हें रद्द कर दिया जाए और साथ ही न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी हो। हालांकि दोनों पक्षों के बीच वार्ता में कुछ अहम पेंच है, जिसके सुलझने से आगे का रास्ता निकल सकता है। किसानों को मंडी सिस्टम खत्म किए जाने से भी आपत्ति है।

किसानों को कांट्रैक्ट फार्मिंग के कानून से आपत्ति है और उनका तर्क है कि इससे खेतिहर भूमि पर उनका मालिकाना संकट में पड़ जाएगा। इससे कंपनियों के कर्ज का जाल फैलने का भी खतरा होगा। नए कानून में विवादों के निबटारे के लिए एसडीएम को फाइनल अथाॅरिटी बनाने की बात कही गई है, जबकि किसानों की मांग है कि उन्हें उपरी अदालतों में अपील करने का अधिकार मिले। किसानों को इस बात से भी आपत्ति है कि प्रस्तावित इलेक्ट्रिसिटी संशोधन कानून के कारण किसानों को निजली बिजली कंपनियों के निर्धारित दर पर बिजली बिल देने को मजबूत होना पड़ेगा।

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