किसानों से सड़क खाली कराने की याचिका दाखिल, कहा शाहीनबाग मामले में आए SC के फैसले का उल्लंघन

याचिका में कहा गया है कि जिस तरह से सार्वजनिक मार्ग अवरुद्ध करने की अनुमति के साथ किसानों का विरोध प्रदर्शन जारी है, वह न केवल शाहीन बाग मामले में शीर्ष अदालत के फैसले का उल्लंघन है, बल्कि इससे आम नागरिक को भी कठिनाई और असुविधा का सामना करना पड़ रहा है....

Update: 2021-01-09 14:57 GMT

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के समक्ष लंबित किसान विरोध मामले में दायर एक याचिका में प्राथमिक याचिकाकर्ता ने अब एक हलफनामा दायर कर सड़क अवरुद्ध होने से आम जनता को होने वाली असुविधा और कठिनाई को उजागर किया है।

याचिका में दिल्ली की विभिन्न सीमाओं पर विरोध प्रदर्शन कर रहे किसानों को हटाने की मांग की गई है। 11 जनवरी को निर्धारित याचिका पर सुनवाई से पहले यह हलफनामा दायर किया गया है और दलील दी गई है कि सड़कों की नाकाबंदी की वजह से आम जनता को कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। नए कृषि कानूनों के विरोध में शुक्रवार को केंद्र और किसानों की यूनियनों के बीच बातचीत विफल रही।

दिल्ली निवासी ऋषभ शर्मा द्वारा दायर हलफनामे में कहा गया है कि विभिन्न स्थानों पर किसानों द्वारा सार्वजनिक सड़कों की निरंतर नाकेबंदी आम नागरिकों के लिए कठिनाई पैदा कर रही है, जो कि स्वतंत्र आंदोलनों के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है।

याचिकाकर्ता ने जोर देकर कहा कि सड़कों की नाकाबंदी ने शाहीन बाग मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का भी उल्लंघन किया, जहां सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों ने भी इसी तरह सड़कों को अवरुद्ध कर दिया था।


याचिका में कहा गया है कि जिस तरह से सार्वजनिक मार्ग अवरुद्ध करने की अनुमति के साथ किसानों का विरोध प्रदर्शन जारी है, वह न केवल शाहीन बाग मामले में शीर्ष अदालत के फैसले का उल्लंघन है, बल्कि इससे आम नागरिक को भी कठिनाई और असुविधा का सामना करना पड़ रहा है।

याचिकाकर्ता ने दलील दी कि नाकाबंदी भारी ट्रैफिक जाम के कारण आम नागरिक को अनावश्यक कष्ट दे रही है और लोग अपनी आजीविका कमाने के उद्देश्य से दिल्ली में आवश्यक गंतव्य तक नहीं पहुंच पा रहे हैं।

उन्होंने शीर्ष अदालत से सरकार को राष्ट्रीय राजधानी की सभी सीमाओं को खोलने के लिए निर्देश जारी करने का आग्रह किया। 17 दिसंबर 2020 को शीर्ष अदालत ने विरोध जताने को मौलिक अधिकार बताते हुए किसानों को हिंसा या किसी भी नागरिक के जीवन या संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के बिना विरोध जारी रखने की अनुमति दी थी।

वहीं शाहीन बाग मामले में शीर्ष अदालत ने कहा था कि विरोध और असंतोष जताना एक लोकतांत्रिक अधिकार है, लेकिन इससे आम जनता की आवाजाही अवरुद्ध नहीं होनी चाहिए।

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