सुप्रीम कोर्ट ने कहा, कोरोना से युद्ध लड़ रहे स्वास्थ्यकर्मियों का वेतन रोककर उन्हें दुखी न करे सरकार

पीठ ने केंद्र सरकार को यह भी सुझाव दिया कि वह इस मुद्दे को हल करने के लिए अतिरिक्त धनराशि का बंदोबस्त कर सकता है।

Update: 2020-06-13 03:30 GMT

जनज्वार। कोरोनोवायरस महामारी के दौरान कथित रूप से डॉक्टरों को वेतन का भुगतान न किए जाने के मामले में दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि यह एक तरह का युद्ध है और आप 'सैनिकों' को युद्ध के दौरान दुखी नहीं रख सकते। न्यायाधीश अशोक भूषण, संजय किशन कौल और एम.आर. शाह की पीठ ने कहा, 'यह एक तरह का युद्ध है। आप युद्ध के दौरान सैनिकों को दुखी नहीं रख सकते। इसलिए कोरोना योद्धाओं को सुरक्षित महसूस कराने के लिए और अधिक प्रयास करें।'

पीठ ने उन रिपोर्टों पर गौर किया, जिनमें आरोप लगाया गया था कि डॉक्टरों को भुगतान नहीं किया गया है। पीठ ने कहा, 'क्या आप देख सकते हैं कि डॉक्टर हाल ही में हड़ताल पर थे? इसके लिए अदालत के हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए। आपको अधिक करने की जरूरत है। डॉक्टरों के संबंध में यह चिंता का विषय है।'

पीठ ने केंद्र सरकार को यह भी सुझाव दिया कि वह इस मुद्दे को हल करने के लिए अतिरिक्त धनराशि का बंदोबस्त कर सकता है। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ के समक्ष दलील दी कि वह इस याचिका का विरोध नहीं कर रहे हैं और यह एक प्रतिकूल मुकदमा नहीं है।

याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील के.वी. विश्वनाथन ने कहा कि सरकारी डॉक्टरों के वेतन में कटौती की जा रही है और निजी अस्पतालों को भी वेतन में कटौती नहीं करनी चाहिए। इस पर मेहता ने कहा, 'ऐसा लगता है कि आपने एक तदर्थ प्रतिनिधित्व की समीक्षा की है।'

न्यायाधीश शाह ने कहा, 'आप आधे-अधूरे मन से काम नहीं कर सकते।' मेहता ने पीठ के समक्ष कहा कि यदि बेहतर सुझाव हैं, तो उन्हें निश्चित रूप से माना जा सकता है। न्यायमूर्ति भूषण ने बारे में कहा कि सॉलिसिटर जनरल को यह देखने की जरूरत है कि क्या किया जा सकता है। मेहता ने कहा कि दिशानिर्देश डब्ल्यूएचओ, आईसीएमआर और अन्य विशेषज्ञों द्वारा तैयार किए गए हैं। यदि कोई अन्य बेहतर सुझाव है, तो कृपया बताएं।

पीठ ने जोर देकर कहा कि केंद्र को और अधिक करना चाहिए और सुनिश्चित करना चाहिए कि डॉक्टरों की चिंताओं का समाधान किया जाए। शीर्ष अदालत मामले की अगली सुनवाई 17 जून को करेगी। याचिका में डॉक्टर ने केंद्र के मानक संचालन प्रक्रियाओं (एसओपी) पर भी सवाल उठाया है, जो उनके 14-दिवसीय क्वारंटीन को गैर-जरूरी बनाता है। एक हलफनामे में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने कहा कि कार्यस्थल पर पीपीई द्वारा सुरक्षित रूप से संरक्षित एक स्वास्थ्यकर्मी अपने परिवार या बच्चों को कोई अतिरिक्त जोखिम नहीं देता है, जैसा कि सुझाया गया है।

केंद्र सरकार ने कहा कि कोविड-19 मामलों की संख्या लगातार बढ़ रही है और निकट भविष्य में किसी समय, मौजूदा अस्पतालों के अलावा, बड़ी संख्या में अस्थायी अस्पतालों का निर्माण करना होगा। इसलिए, संकट समय में अधिक स्वास्थ्यकर्मियों की जरूरत है। हलफनामे में कहा गया है कि इसका जोखिम मूल्यांकन दृष्टिकोण सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल, अटलांटा, अमेरिका द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के अनुरूप है। इसमें सिर्फ ज्यादा जोखिम वालों को 14 दिनों के क्वारंटीन की जरूरत है।

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