Sedition case : शरजील इमाम ने दिल्ली हाईकोर्ट में दाखिल की अर्जी, इस आधार पर की जमानत देने की मांग
Sedition case : जनवरी,2022 में दिल्ली की एक अदालत ने 2019 में सीएए और एनआरसी के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान कथित भड़काऊ भाषण देने के मामले में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र शरजील इमाम के खिलाफ राजद्रोह का अभियोग तय किया था।
Sedition case : राजद्रोह के आरोप में जेल में बंद जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय ( JNU ) के पूर्व छात्र शरजील इमाम ( Sharjeel Imam ) ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court ) के आदेश का हवाला देते हुए अंतरिम जमानत की मांग की है। शरजील इमाम ने दिल्ली हाईकोर्ट ( Delhi High court ) में इस बाबत अंतरिम याचिका भी दाखिल की है। इमाम ने अपनी याचिका में अदालत से अपने खिलाफ देशद्रोह ( Sedition Case ) के आरोपों को खत्म करने का आग्रह किया है।
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ( Supreme court ) द्वारा राजद्रोह क़ानून पर विचार होने तक राजद्रोह मुकदमें ( Sedition Case ) की कार्यवाहियों पर रोक लगाने का आदेश दिया था। बता दें कि इमाम को 2019 में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान कथित तौर पर भड़काऊ भाषण देने के मामले में गिरफ्तार किया गया था। इस में शरजील ( Sharjeel Imam ) गिरफ्तारी के बाद से जेल में हैं।
आज जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल और जस्टिस रजनीश भटनागर की पीठ शरजील इमाम ( Sharjeel Imam ) की अर्जी पर सुनवाई कर सकती है। इमाम ने पहले से लंबित अपनी जमानत याचिका में अंतरिम जमानत के लिए अर्जी दाखिल की है।
दिल्ली हाईकोर्ट में शरजील इमाम ( Sharjeel Imam ) की ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि अभी अदालत का आदेश मुख्य रूप से इस पर आधारित है कि उसके खिलाफ मामला राजद्रोह के आरोप के तहत उपयुक्त पाए जाने के कारण जमानत देने की कोई शक्ति उसके पास नहीं है। अब अपनी नई अर्जी में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के मद्देनजर अड़चनें खत्म हो गई हैं। शीर्ष अदालत के उसी आदेश को आधार बनाते हुए शरजील इमाम ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 124ए (राजद्रोह) के तहत राजद्रोह के अपराध में जमानत देने की अपील की है। शरजील इमाम ने कहा कि लगभग 28 महीने से जेल में हूं, जबकि अपराधों के लिए अधिकतम सजा जिसमें 124ए शामिल नहीं है,0 सात साल कैद है। अर्जी में कहा गया है कि इमाम की निरंतर कैद न्यायसंगत नहीं है और इस अदालत का हस्तक्षेप अपेक्षित है।
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