40 किसान नेता गिरफ्तार, आंदोलन उग्र हुआ तो सरकार लगा सकती 'खालिस्तानी-नक्सली' होने का आरोप
हरियाणा में पुलिस करीब 40 किसान नेताओं को गिरफ्तार किया है, इन नेताओं में अधिकांश वामपंथी रूझान वाले माने जाते हैं, माना जा रहा है कि इस बहाने सरकार उनपर नक्सली होने का आरोप लगाकर मुद्दे को भटका सकती है.....
नई दिल्ली। केंद्र की मोदी सरकार की ओर से पारित तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का आक्रोश चरम पर हैं। इसके चलते पंजाब और हरियाणा के किसानों ने दिल्ली के लिए कूच करना शुरू कर दिया है। किसानों के बड़े आंदोलन के घरबराई सरकारों ने कई किसानों नेताओं को पहले हिरास्त में ले लिया है। केंद्र की मोदी सरकार में ऐसे मौके कई बार आ चुके हैं कि जब सरकार के खिलाफ कोई बड़ा प्रदर्शन होना शुरू होता है तो सरकार और उसकी पार्टी के नेता मुद्दे से ध्यान भटकाने के लिए दूसरा शिगूफा छोड़ देते हैं। माना जा रहा है कि पंजाब और हरियाणा के किसानों के 'दिल्ली चलो' आंदोलन को दबाने के लिए भी सरकार कोई नया ड्रामा खड़ा कर सकती है।
जानकारी के मुताबिक हरियाणा में पुलिस करीब 40 किसान नेताओं को गिरफ्तार किया है। इन नेताओं में अधिकांश वामपंथी रूझान वाले माने जाते हैं। माना जा रहा है कि इस बहाने सरकार उनपर नक्सली होने का आरोप लगाकर मुद्दे को भटका सकती है। इसके अलावा खालिस्तान समर्थन होने का आरोप भी किसानों पर लग सकते हैं। किसानों के इस आंदोलन पर नजर रख रहे युवा पत्रकार मनदीप पुनिया कहते हैं कि हरियाणा और पंजाब के सम्भू बॉर्डर पर किसान उग्र हो सकते हैं, क्योंकि वहां लंबे समय से किसान अपनी मांगों लेकर धरने पर हैं। आंदोलनकारियों का एक हिस्सा किसानों की मांगों के साथ-साथ खालिस्तान समर्थक भी माना जाता है। ऐसे में संभव है कि खालिस्तानी एजेंडे को भी हवा मिल सकती है।
छात्र एकता मंच ने तमाम किसान नेताओं को 'गैर- लोकतांत्रिक' तरीके से हिरासत में लेने पर कड़ी निंदा की है और मांग की है कि तुरंत प्रभाव से सभी किसान नेताओं को रिहा किया जाए। छात्र एकता मंच के स्टेट प्रेसीडेंट अंकित ने 'जनज्वार से कहा कि किसानों और आम जनता की एकता के डर से मौजूदा सरकार है इतनी घबरा गई है कि आंदोलन के एक दिन पहले ही किसान नेताओं के घरों पर छापामारी और गिरफ्तारी के लिए धर-पकड़ शुरू कर दी है, लेकिन ये सरकार यह नहीं समझ पा रही है कि यह आंदोलन अब एक जन आंदोलन बन चुका है जिसे 1-2 नेताओं की गिरफ्तारी से दबाया नहीं जा सकता है जितना यह सरकारें दबाने की कोशिश करेंगे, उतना विरोध ज्यादा साफ स्पष्ट तरीके से उभर कर सामने आएगा।'
हरियाणा के छात्र एकता मंच ने भी किसानों के 'दिल्ली चलो' आंदोलन का समर्थन किया है। छात्र एकता मंच ने एक बयान में कहा, देश की संसद ने 21 सितंबर को तीन कृषि कानूनों पर मुहर लगा दी है। सबका साथ सबका विकास का नारा देने वाले मोदी जी ने किसानों के लिए इसे ऐतिहासिक पल बताया और घोषणा करते हुए कहा कि ये कानून किसानों के सशक्तिकरण, संरक्षण व सहूलियत के लिए हैं। इन कानूनों से किसानों की कठिनाइयां दूर होंगी और किसान खुशहाल होंगे। ये कानून किसानों की बेहतरी के लिए हैं। इन कानूनों से किसान अपनी फसल कहीं भी बेचने के लिए आजाद होगा।
'दूसरी तरफ देश के किसान इन कानूनों के विरोध में सड़कों पर हैं। परंतु केंद्र सरकार ने किसानों के आंदोलन की अनदेखी करते हुए तानाशाहीपूर्ण तरीके से न सिर्फ इन कानूनों को पारित किया बल्कि इन्हें जोर-जबरदस्ती से लागू करने पर भी उतारू है। हरियाणा में आंदोलनरत किसानों पर लाठियां बरसाई गईं व झूठे मुकदमे दर्ज कर गिरफ्तारियां की गई परंतु किसान पीछे नहीं हट रहे हैं और इस आंदोलन को आगे बढ़ाते हुए किसानों ने आने वाली 26-27 नवंबर को 'दिल्ली चलो' का आह्वाहन किया है। '
छात्र एकता मंच ने अपने एक बयान में कहा कि इन तीनों कृषि कानूनों का मकसद खेती पर पूरी तरह से बड़े पूंजीपतियों, जमीदारों व व्यापारियों का शिकंजा कायम करना है ताकि वे बेतहाशा मुनापा लूट सकें। आपदा को अवसर में बदलकर कोरोना महामारी के समय में एक सोची समझी साजिश के तहत इन जनविरोधी कानूनों को लागू किया गया है ताकि सरकार को किसानों के विरोध का सामना न करना पड़े।
'राष्ट्रीय कौशल विकास परिषद की 2017 की एक बात को मोदी सरकार की कृषि नीतियों से जोड़कर देखना जरूरी है जिसमें कहा गया है कि 2022 तक खेती पर निर्भर 58 प्रतिशत जनसंख्या को 38 प्रतिशत तक लाना है इसीलिए यदि इन्हें नहीं रोका गया तो इनसे देश की 86 प्रतिशत छोटी व मध्यम दर्जे की जोत के किसानों का तबाह होना तय है।'
'पिछले तीन दशकों की उदारीकरण, निजीकरण व वैश्वीकरण की नीतियों ने किसानों के हालत बद से बदतर कर दिए हैं। इन नीतियों के परिणामस्वरूप किसानों को खाद, बीज, पानी महंगे मिलने लगे हैं। ग्रामीण विकास खासकर सिंचाई और परिवहन सरकारी निवेश में कटौती से कृषि अर्थव्यवस्था के विकास में गिरावट आई है। किसानों को बैंकों और सराकारी संस्थाओं से मिलने वाले सस्ते ऋणों में तेजी से कमी आई। इस प्रकार खेती पर लागत बढ़ती गई और उसके ऊपर कर्ज बढ़ने लगा। सरकार की इन्हीं जनविरोधी नीतियों के कारण पिछले तीस सालों में कर्ज के बोझ तले दबकर 3 से 5 लाख किसान आत्महत्या कर चुके हैं।'
छात्र एकता मंच ने आगे कहा, 'तीनों कृषि कानूनों को लाने के सरकार के उद्देश्य से साफ जाहिर है कि वह क्या करना चाह रही है। किसान व खेती को तत्कालिक तौर पर इस संकट से उबारने के लिए स्वामीनाथन आयोग की सिफारिसों को लागू किया जाना चाहिए, परंतु केंद्र की भाजपा सरकार बड़ी-बड़ी देशी व विदेशी कंपनियों के हित साधने के लिए यह तीन जनविरोधी कानून लेकर आई है जिनको रद्द कराना बहुत जरूरी है। साथ ही किसानों को यह समझने की जरूरत है कि खेती संकट का हल संसदीय गलियों से नहीं बल्कि इस मुनापाखोरी शोषणकारी व्यवस्ता को उखाड़ फेंकने से होगा और यह छात्रों, मजदूरों, दलितों और महिलाओं के साथ एकता बना बिना संभव नहीं होगा।'