INR to Dollar Price today: एक डॉलर हुआ 79 रुपए के बराबर, क्या मोदी इस सच को अस्वीकार कर भारत को बना सकते हैं मजबूत देश

Update: 2022-06-30 08:15 GMT

डॉलर के मुकाबले रुपया पहली बार 83 के भी पार, रुपया कमजोर नहीं डॉलर मजबूत हो रहा

दिनकर कुमार की टिप्पणी

INR to Dollar Price today: भारतीय करेंसी रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 79 रुपये प्रति डॉलर के स्तर तक गिर गया। भारतीय करेंसी के इतिहास में यह अब तक का सबसे निचला स्तर है। गिरावट के इस दौर ने पीएम नरेंद्र मोदी के एक पुराने बयान की भी यादें ताजा कर दी हैं। तब पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर रुपये की गिरावट को लेकर हमला बोलते हुए उन्होंने कहा था कि रुपया धीरे-धीरे पीएम की उम्र के करीब पहुंच रहा है। अब सवाल है क्या मोदी इस जमीनी हकीकत को झुठला कर भारत की अर्थव्यवस्था को मजबूत बना सकते हैं?

डॉलर के सामने गिरता रुपये का मूल्य रोज नया रिकॉर्ड बना रहा है।पीटीआई की खबर के अनुसार रुपया बुधवार को अस्थायी रूप से 79 प्रति एक 1 डॉलर के स्तर को पार कर गया। रुपया 19 पैसे की गिरावट के साथ 79.04 प्रति डॉलर के रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गया। इससे पहले सत्र में रुपया ग्रीनबैक के मुकाबले 78.86 के कमजोर स्तर पर खुला। इसके बाद शाम तक गिर कर फिर 79.04 पर पहुंच गया। यह स्तर अब तक का सर्नाधिक निचला स्तर है। मंगलवार 28 जून को रुपया 48 पैसे की गिरावट के साथ 78.85 के रिकॉर्ड निचले स्तर पर बंद हुआ था। इसको लेकर कांग्रेस सांसद राहुल गांधी पीएम नरेंद्र मोदी सरकार पर लगातार निशाना साध रहे हैं।

28 जून को रुपया 48 पैसे की बड़ी गिरावट के साथ 78.85 प्रति डॉलर के सर्वकालिक निचले स्तर पर पहुंच गया था। रुपये में गिरावट का कारण विदेशी पूंजी की बाजार से सतत निकासी और कच्चे तेल की कीमतों में आई तेजी है।

शेयरखान बाय बीएनपी पारिबा के शोध विश्लेषक अनुज चौधरी कहते हैं, 'कमजोर घरेलू शेयर बाजार और कच्चे तेल की कीमतों में तेजी के बीच भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है। विदेशी निवेशकों की लगातार बिकवाली ने भी रुपये पर दबाव डाला।'

एलकेपी सिक्योरिटीज के शोध विश्लेषक विभाग के उपाध्यक्ष जतिन त्रिवेदी की राय में, विदेशी निवेशकों की सतत बिकवाली और फेडरल रिजर्व के आक्रामक रुख के कारण पिछले छह कारोबारी दिनों में रुपये में गिरावट आई है। उन्होंने कहा कि यदि कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट नहीं आती तो आगे कमजोरी जारी रह सकती है।

करेंसी के उतार-चढ़ाव के कई कारण होते हैं। डॉलर की तुलना में किसी भी अन्य करेंसी की वैल्यू घटे तो इसे उस करेंसी का गिरना, टूटना, कमजोर होना कहते हैं। अंग्रेजी में - करेंसी डेप्रिशिएशन। हर देश के पास विदेशी मुद्रा का भंडार होता है, जिससे वह अंतरराष्ट्रीय लेन-देन करता है।

विदेशी मुद्रा भंडार के घटने और बढ़ने से उस देश की मुद्रा की चाल तय होती है। अगर भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में डॉलर, अमेरिका के रुपयों के भंडार के बराबर है तो रुपए की कीमत स्थिर रहेगी। हमारे पास डॉलर घटे तो रुपया कमजोर होगा, बढ़े तो रुपया मजबूत होगा।

रुपये के निचले स्तर पर जाने का सबसे बड़ा नुकसान यह होगा कि कच्चे तेल का आयात महंगा होगा, जिससे महंगाई बढ़ेगी। देश में सब्जियां और खाद्य पदार्थ महंगे होंगे। वहीं भारतीयों को डॉलर में पेमेंट करना भारी पड़ेगा। यानी विदेश घूमना महंगा होगा, विदेशों में पढ़ाई महंगी होगी।

वहीं निर्यात करने वालों को इससे फायदा होगा, क्योंकि पेमेंट डॉलर में मिलेगा, जिसे वह रुपए में बदलकर ज्यादा कमाई कर सकेंगे। इससे विदेश में माल बेचने वाली आईटी और फार्मा कंपनी को फायदा होगा।

फॉरेन एक्सचेंज मार्केट में अधिकांश मुद्राओं की तुलना डॉलर से होती है। इसके पीछे द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान हुआ 'ब्रेटन वुड्स एग्रीमेंट' है। इसमें एक न्यूट्रल ग्लोबल करेंसी बनाने का प्रस्ताव रखा गया था। हालांकि तब अमेरिका अकेला ऐसा देश था जो आर्थिक तौर पर मजबूत होकर उभरा था। ऐसे में अमेरिकी डॉलर को दुनिया की रिजर्व करेंसी के तौर पर चुन लिया गया।

मुद्रा की कमजोर होती स्थिति को संभालने में किसी भी देश के केंद्रीय बैंक का अहम रोल होता है। भारत में यह भूमिका रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की है। वह अपने विदेशी मुद्रा भंडार से और विदेश से डॉलर खरीदकर बाजार में उसकी मांग पूरी करने का प्रयास करता है। इससे डॉलर की कीमतें रुपए के मुकाबले स्थिर करने में कुछ हद तक मदद मिलती है।

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