मैं जोशीमठ हूँ! मेरे शहर को बचा लीजिए, नहीं तो भू धंसाव से मेरा भूगोल ही नहीं इतिहास भी सदा के लिए इतिहास बन जायेगा
Joshimath Sinking : मकानों में पड़ी दरारों नें मेरे नगरवासियों का सुख चैन छीन लिया है, आंसुओं से बह रही अविरल आंसुओं की धारा सबकुछ बयां करने के लिए काफी है, चारों ओर एक अजीब सा सन्नाटा कचोट रहा है, अपने जीवनभर की मेहनत की कमाई को अपने घर बार और मकान में लगाने के बाद आज इनके घर सुरक्षित नहीं रह गये हैं...
मौत के मुहाने की तरफ बढ़ते जोशीमठ पर स्वतंत्र पत्रकार संजय चौहान की एक मार्मिक टिप्पणी
Joshimath Sinking : मैं जोशीमठ हूँ। शंकराचार्य की तपोस्थली ज्योतिर्मठ। सीमांत जनपद चमोली का सरहदी ब्लाॅक। विश्व प्रसिद्ध हिम क्रीडा स्थल औली, आस्था का सर्वोच्च धाम बद्रीनाथ, हेमकुंड साहिब और रंग बदलने वाली फूलों की घाटी का प्रवेश द्वार में ही हूं। देश की द्वितीय रक्षा पंक्ति नीती माणा घाटी मेरे ही नगर से होकर जाया जाता है। हर साल देश विदेश से लाखों-लाख तीर्थयात्री और पर्यटक यहां पहुंचते है। मैं चिपको आंदोलन की नेत्री गौरा देवी की थाती हूं। पंच प्रयाग में से प्रथम प्रयाग मेरे ही मुहाने पर धौली गंगा और अलकनंदा का संगम विष्णुप्रयाग अव्यवस्थित है।
एशिया का सबसे लम्बा रज्जू मार्ग मेरे ही नगर के ऊपर से गुजरता है। मैं भगवान बद्रीविशाल का शीतकालीन गद्दी स्थल हूं। मेरे पौराणिक नृसिंह मंदिर में 6 महीने भगवान बद्रीविशाल की पूजा होती है। मंदिर के प्रांगण में प्रतिवर्ष बद्रीविशाल के कपाट खुलने से पहले पौराणिक तिमुंडिया कौथिग का आयोजन होता है। मैं महज एक नगर ही नहीं हूं अपितु धार्मिक और सांस्कृतिक केंद्र भी हूं। मैं गढ़वाल के कत्यूरी राजवंश की राजधानी भी रही हूं। मैं बरसों से सैलानियों की पहली पसंदीदा शहर रहा हूं।
लेकिन इन सबसे इतर आज मैं अपनी ही पहचान के लिए छटपटाहट सी महसूस कर रहा हूं। भू-धसाव की वजह से मेरे भविष्य पर प्रश्नचिन्ह लग गया है। मेरे शहर के विभिन्न वार्डों में हो रहे भू-धंसाव ने मेरे शहर की खुशियाँ छीन ली है। मकानों में पड़ी दरारों नें मेरे नगरवासियों का सुख चैन छीन लिया है। लोगों के आंसुओं से बह रही अविरल आंसुओं की धारा सबकुछ बयां करने के लिए काफी है। चारों ओर एक अजीब सा सन्नाटा कचोट रहा है।
अपने जीवनभर की मेहनत की कमाई को अपने घर बार और मकान में लगाने के बाद आज इनके घर सुरक्षित नहीं रह गये हैं। खेत खलियान से लेकर मकान सबकुछ भू-धंसाव की चपेट में आ चुके हैं। भू-धंसाव के कारण मेरे नगर के वाशिंदे अब पौष माह की इन सर्द/ठंड रातों में अपने भविष्य को लेकर आशांकित है। मेरे शहर के लोगों के माथे पर पडी चिंता की लकीरें, बेबस व लाचार आंखे बेहद पीड़ादायक है। शंकराचार्य के पौराणिक ज्योतिर्मठ में भी भू धसांव की दरारें उभर आई हैं। बस भगवान बद्रीविशाल से प्रार्थना है कि किसी तरह मेरे इस शहर को बचा लीजिए।
मेरे शहर के लोग लंबे समय से जोशीमठ को भू-धंसाव से बचाने की मांग करते आ रहे हैं। वर्ष 1976 में तत्कालीन गढ़वाल कमिश्नर एमसी मिश्रा की अध्यक्षता वाली समिति ने भी भूस्खलन को लेकर एक रिपोर्ट दी थी, जिसमें जोशीमठ पर खतरे का जिक्र किया गया था, लेकिन कभी भी इस दिशा में ठोस व गंभीर प्रयास नहीं किये गये। मैं ग्लेशियर द्वारा लाई गई मिट्टी पर बसा हुआ शहर हूं। मैं भूगर्भीय रूप से अतिसंवेदनशील जोन-5 के अंतर्गत आता हूं, जो कि पूर्व-पश्चिम में चलने वाली रिज पर मौजूद है। फिर भी मेरे शहर में जलविद्युत परियोजना निर्माण को मंजूरी दी गयी।
वर्ष 1970 की धौली गंगा में आई बाढ़ ने पाताल गंगा, हेलंग से लेकर ढाक नाला तक के बडे भू-भाग क्षेत्र को हिलाकर रख दिया था, जिसके बाद 2013 की केदारनाथ आपदा और फरवरी 2021 की रैणी आपदा नें तपोवन से लेकर विष्णुप्रयाग के संगम को बहुत नुकसान पहुंचाया है, नदी किनारे कटाव बढने से भी भूस्खलन को बढ़ावा मिला है, जबकि मेरे शहर के नीचे से होकर एनटीपीसी की तपोवन विष्णुगाड़ परियोजना की सुरंग निर्माणाधीन है, जो भू-धसाव के लिए सबसे बडा कारण माना जा रहा है। पूर्व के बरसों में हेलंग से लेकर पैनी गांव, सेलंग गांव में भू-धसाव की घटना सामने आ चुकी है। भू-धसाव से मेरे शहर के गांधी नगर, मारवाड़ी, लोअर बाजार नृसिंह मंदिर, सिंहधार में, मनोहर बाग, अपर बाजार डाडों, सुनील, परसारी, रविग्राम, जेपी कॉलोनी, विष्णुप्रयाग, क्षेत्र अधिक प्रभावित हैं।
बस जैसे भी हो सके मेरे इस शहर को बचा लीजिए, नहीं तो भू धंसाव से मेरा भूगोल ही नहीं इतिहास भी सदा के लिए इतिहास के पन्नों में सिमट कर रह जायेगा। मेरे शहर को भू-धंसाव से बचाने के लिए सरकार से लेकर शासन प्रशासन अपनी अपनी ओर से हरसंभव प्रयास में जुट चुके हैं। प्रभावित लोगों को राहत शिविरों में भेजा जा रहा है, प्रभावित मकानों के सर्वे के लिए टीमें गठित कर दी गयी हैं, विशेषज्ञों की टीमें भी पहुंच चुकी हैं, जो भू धसांव का आंकलन कर रही है और कारणों का पता लगा रही हैं।
सबसे अच्छी बात प्रकृति का भी मुझे साथ मिला है, वरना आजकल मेरा पूरा शहर बर्फ से अटा पडा रहता। इसलिए कोशिश की जानी चाहिए कि जितनी जल्दी हो सके फौरी तौर पर लोगों को सुरक्षित ठौर पर पहुंचाया जाय और लोगों के पुनर्वास/विस्थापन को लेकर ठोस कार्रवाई अमल में लाई जाय। मेरे इस शहर को बचाने के लिए हर वो मुमकिन कोशिश की जानी चाहिए, जो की जा सकती है। संकट की इस घड़ी में आप सब नगर वासियों ने जो एकजुटता दिखाई है वो सुकून देने वाली है, खासतौर पर युवाओं का अपने इस शहर को बचाने की कोशिश इतिहास हमेशा याद रखेगा और मिसालें भी देता रहेगा।
मैं जोशीमठ हूँ, मेरे शहरवासियों हौंसला रखिए। दलगत राजनीति से ऊपर उठकर जोशीमठ को बचाने के लिए हर वो प्रयास कीजिए जो हो सकता है। भगवान बद्रीविशाल की कृपा से इस शहर पर जो संकट के बादल मंडरा रहे हैं, जल्द ही सबकुछ सही होगा। घना अंधेरा के बाद जरूर उजाले का सूरज उगेगा...