चरम बेरोजगारी और महंगाई के बीच भारत में चीता आया का शोर क्यों?

Cheetah returns : बहुत कम लोग जानते हैं कि जिस प्रोजेक्ट चीता को लेकर मोदी सरकार वाहवाही लूट रही है उसे भारत में लाने की कोशिश 2009 में यूपीए की सरकार ने ही नये सिरे से शुरू किया था।

Update: 2022-09-17 08:37 GMT

चरम बेरोजगारी और महंगाई के बीच भारत में चीता आया का शोर क्यों?

Cheetah returns : हम ये नहीं कहते कि 70 साल पहले भारत में विलुप्त चीतों ( Cheetah ) को संरक्षित करने की जरूरत नहीं है, लेकिन ऐसे समय में जब भारत ( India ) में बेरोजगारी ( Unemployment ) और महंगाई ( inflation ) चरम पर है, चीता आया, चीता आया, का सबसे ज्यादा शोर कितना जायज है। देश में अर्थव्यवस्था ( Indian economy ) का क्या हाल है ये जगजाहीर हैं। इन गंभीर मुद्दों पर चिंता करने के बदले दिल्ली से करीब 9 हजार किलोमीटर दूर नामीबिया से भारत लाये गए 8 चीतों ( Cheetah ) का ढोल पीटा जा रहा है। इतना ही नहीं, मोदी ( PM Modi ) को चीता आने के बाद से देश का शोर बताया जा रहा है। मूल बात तो यह है कि आज देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जन्मदिन है। आज ही चीतों को भारत लाया गया है। साथ ही उन्हें कूनो नेशनल पार्क ( Kuno National Park ) में रहने के लिए आजाद छोड़ दिया गया।

दरअसल, नामीबिया से 8 चीतों को आज ही भारत लाया गया है जिनमें 5 मादा और 3 नर चीते शामिल हैं। इन्हें एक खास चार्टर प्लेन से ग्वालियर ( Madhya pradesh ) लाया गया है। इसके बाद इन्हें एक हेलीकॉप्टर के जरिए कूनो नेशनल पार्क में छोड़ दिया जाएगा।

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यूपीए सरकार की देन है प्रोजेक्ट चीता

जिस चीता को लेकर पिछले दो दिनों से शोर है, उस प्रोजेक्ट चीता ( Project Cheetah ) को यूपीए टू की सरकार लेकर आई थी, लेकिन चीजा को इंडिया लाने के प्रोजेक्ट को भी ग्लोबल इवेंट बनाने में न तो पीएम मोदी पीछे हैं और न ही उनकी सरकार। खास बात तो यह है कि आज ही मोदी का जन्म दिन भी। ऐसे में मोदी भक्त उन्हें शेर न कहें ये कैसे हो सकता है। यही वजह है कि प्रोजेक्ट चीता की आड़ में खुद को शेर बतलाने की कोशिश मोदी सरकार कर रही है। जबकि प्रोजेक्ट चीता की हकीकत बहुत कम लोगों को पता है। बेहद ही कम लोग ये जानते हैं कि जिस प्रोजेक्ट चीता को लेकर सरकार वाहवाही लूट रही है उस पर अमल की कोशिश 2009 में यूपीए की सरकार के दौरान ही शुरू हो गई थी।

52 साल पहले शुरू हुई थी चीता को इंडिया लाने की मुहिम

भारत में चीता के विलुप्त होने के बाद 1970 में ही चीतों को देश में लाने की कोशिश शुरू हो गई थी। 2008-2009 में इस प्रोजेक्ट पर नये सिरे से काम शुरू हुआ था। 14 साल पहले यूपीए टू सरकार ने इस मुहिम कानाम प्रोजेक्ट चीता रखा था। तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार ने ही इसे मंजूरी दी। मंत्रालय ने वन्यजीव विशेषज्ञ एमके रंजीत सिंह एक अमेरिकी आनुवंशिकी विज्ञानी स्टीफेन ओ ब्रायन और सीसीएफ के लारी मार्कर से विचार.विमर्श करने के बाद 2010 में नामीबिया से 18 चीतों को मंगाने का प्रस्ताव किया था। उसी साल तत्कालीन वन एवं पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश अफ्रीका के चीता आउट रीच सेंटर भी गए थे। चीतों को भारत लाने की पूरी तैयारी थी।

सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में इस प्रोजेक्ट पर लगा दी थी रोक

चीता को इंडिया में रखने के लिए 2010 और 2012 के बीच दस स्थलों का सर्वेक्षण किया गया। मध्य प्रदेश में कूनो राष्ट्रीय उद्यान नए चीतों को लाकर रखने लिए तैयार माना गया। कूनो संरक्षित क्षेत्र में एशियाई शेरों को लाने के लिए भी काफी काम किया गया था। पर्यावरण और वन मंत्रालय ने 300 करोड़ रुपए खर्च कर चीतों को बसाने की योजना को औपचारिक रूप दे दिया था लेकिन 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रोजेक्ट पर रोक लगा दी थी। करीब 7 साल बाद साल 2020 में कोर्ट ने इस रोक को हटाया।

भारत में चीतों के लुप्त होने का इतिहास

20वीं शताब्दी की शुरुआत तक भारतीय चीतों की आबादी गिरकर सैंकड़ों तक सीमित हो गई थी। राजकुमारों ने अफ्रीकी जानवरों को आयात करना शुरू कर दिया। 1918 से 1945 के बीच लगभग 200 चीते आयात किए गए थे। अंग्रेजों के भारत से जाने के बाद भारतीय चीतों की संख्या कम होने के साथ-साथ इन्हें किए जाने वाले शिकार का चलन भी लगभग खत्म हो गया।

बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी के पूर्व उपाध्यक्ष दिव्य भानु सिंह की किताब द एंड ऑफ ए ट्रेल द चीता इन इंडिया की मानें तो साल 1556 से 1605 तक शासन करने वाले मुगल बादशाह अकबर के पास करीब 1,000 चीते थे। अकबर इन चीतों का इस्तेमाल काले हिरण और चिकारे के शिकार के लिए किया करता था। अकबर के बेटे जहांगीर ने पाला के परगना में चीते के जरिये 400 से अधिक मृग पकड़े थे। शिकार के लिए चीतों को पकड़ने और कैद में रखने के कारण प्रजनन में आने वाली दिक्कतों के चलते इनकी आबादी में गिरावट आई। किताब में ये भी कहा गया है कि भारत में चीतों को पकड़ने में अंग्रेजों की बहुत कम दिलचस्पी थी। 1947 में सरगुजा छत्तीसगढ़ के महाराजा ने भारत के आखिरी तीन एशियाई चीतों को मार डाला था। 1952 में भारत सरकार ने आधिकारिक रूप से देश से चीतों के विलुप्त होने की घोषणा की थी।

1952 में वन्यजीव बोर्ड की पहली बैठक में जवाहर लाल नेहरू की सरकार ने मध्य भारत में चीतों की सुरक्षा को विशेष प्राथमिकता देने का आह्वान करते हुए इनके संरक्षण के लिए साहसिक प्रयोगों का सुझाव दिया था। 1970 के दशक में जब देश में इंदिरा गांधी की सरकार थी उस दौरान एशियाई शेरों के बदले में एशियाई चीतों को भारत लाने के लिए ईरान के शाह के साथ बातचीत शुरू की हई। ईरान में एशियाई चीतों की कम आबादी और अफ्रीकी चीतों के साथ इनकी अनुवांशिक समानता को ध्यान में रखते हुए भारत में अफ्रीकी चीते लाने का फैसला किया गया।

8 चीतों का नया घर बना कूनो नेशनल पार्क

प्रोजेक्ट चीता के उसी मुहिम को सुप्रीम कोर्ट की ओर से रोक हटने के बाद पीएम मोदी के कार्यकाल में आगे बढ़ाया बया और नामीबिया से लाए गए आठ चीतों को पीएम मोदी ने मध्य प्रदेश के श्योपुर जिले में स्थित कुनो नेशनल पार्क में छोड़ दिए। एक विशेष मालवाहक विमान इन चीतों को लेकर सुबह मध्य प्रदेश के ग्वलियर पहुंचे। इन बिग कैट्स चीतों को दो हेलीकॉप्टरों से मध्य प्रदेश के श्योपुर जिले में उनके नए घर कुनो नेशनल पार्क में भेजा गया। अब 748 वर्ग किलोमीटर में फैला कूनो पालपुर नेशनल पार्क 8 अफ्रीकी चीतों का नया घर बन जाएगा। यह क्षेत्र छत्तीसगढ़ के कोरिया के साल जंगलों से मिलता जुलता है।  

सबसे बेहतर आवास स्थल

ऊंचाई वाले स्थानों, तटीय और पूर्वोत्तर क्षेत्र को छोड़कर भारत का मैदानी इलाका चीतों के रहने के लिए सही माना जाता है। इन चीतों के लिए 2010 और 2012 के बीच कूनो नेशनल पार्क में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, गुजरात और उत्तर प्रदेश में दस साइट्स का सर्वेक्षण किया गया। बाद में यह पाया गया कि मध्य प्रदेश के श्योपुर जिले में बना कूनो राष्ट्रीय उद्यान ही चीतों के लिए सबसे सही और सुरक्षित जगह है। कूनो नेशनल पार्क में कोई इंसानी बस्ती या गांव नहीं है। न ही खेती.बाड़ी, चीतों के लिए शिकार करने लायक बहुत कुछ है। चीता जमीन पर हो या पहाड़ी पर, घास में हो या फिर पेड़ पर, उसे खाने की कमी किसी भी हालत में नहीं होगी। कूनो नेशनल पार्क में सबसे ज्यादा चीतल मिलते हैं जिनका शिकार करना चीतों को पसंद आएगा। चीतल यानि हिरण की प्रजाति चीता, बाघ और शेरों के लिए लोकेश माना जाता है।

24 गांव को विस्थापित कर बना कूनो नेशनल पार्क

Cheetah returns : कूनो नेशनल पार्क में पहले करीब 24 गांव थे जिन्हें समय रहते दूसरी जगहों पर शिफ्ट कर दिया गया। इन्हें कूनो नेशनल पार्क के 748 वर्ग किलोमीटर के पूर्ण संरक्षित इलाके की सीमा से बाहर भेज दिया गया। वाइल्डलाइफ एक्सपटर्स के मुताबिक कूनो नेशनल पार्क में 21 चीतों के रहने की जगह है। अगर 3,200 वर्ग किलोमीटर में सही मैनेजमेंट किया जाए तो यहां पर 36 चीते रह सकते हैं। बता दें कि चीता सबसे तेज दौड़ने वाला जानवर माना जाता है। 

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