कृषि कानूनों पर पंजाब भाजपा में हड़कंप, विधानसभा चुनाव सामने देख नेता कर रहे मसला हल करने की मांग

कृषि कानूनों पर भले  केंद्र सरकार अड़ियल रवैया अपनाए हुए हो, लेकिन राज्यों के  भाजपा नेता खासे चिंतित है। पंजाब में जिस तरह से भाजपा के नेताओं को विरोध हो रहा है,इससे उन्हें विधानसभा चुनाव की चिंता सता रही है। पंजाब में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं...

Update: 2021-06-09 12:01 GMT

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जनज्वार ब्यूरो/चंडीगढ़। पंजाब भाजपा में इन दिनो हड़कंप मचा हुआ है। अकाली दल के साथ गठबंधन टूटने के बाद भाजपा की हालत पहले ही खस्ता है। इस पर रही सही कसर तीन कृषि कानूनों  ने पूरी कर दी है। जिस तरह से केंद्र ने तीनों कृषि कानूनों पर अड़ियल रवैया अपना लिया है, इससे पंजाब भाजपा के नेता खासे चिंतित है।

क्योंकि अगले साल विधानसभा चुनाव है। अब नेता जानते हैं कि यदि कृषि कानूनों का मसला हल नहीं होगा तो जनता के बीच जाना मुश्किल हो सकता है। इस आशंका के चलते भाजपा नेता मोहन लाल ने कहना शुरू कर दिया कि यदि कृषि कानूनों का तर्क संगत हल नहीं निकला तो विधानसभा चुनाव में भाजपा  को  काफी दिक्कत का सामना करना पड़ सकता है। इससे पहले पूर्व मंत्री अनिल जोशी भी कृषि कानूनों को लेकर चिंता जता चुके हैं। उन्होंने भी माना था कि यदि यह मसला हल नहीं होता तो 2022 की विधानसभा चुनाव में भाजपा को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है।

पंजाब के पूर्व स्थानीय निकाय तथा मेडिकल शिक्षा मंत्री अनिल जोशी छह जून को दिए अपने बयान में कहा कि, वह किसानों की पीड़ा को समझ सकते हैं।कृषि कानूनों पर हम  आम राय कायम करने पर विफल रहा हैं। इसलिए अब भाजपा नेतृत्व को चाहिए कि वह इस मसले को हल करें। अनिल जोशी के पिता किशोरी लाल जोशी की 13 जुलाई 1991 को आतंकवादियों ने हत्या कर दी थी। अनिल जोशी खुद 1986 से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साथ जुड़े रहे  हैं।

अनिल जोशी ने कहा कि पार्टी में  पदों पर बैठे नेता जमीनी हकीकत समझने में विफल रहे हैं। उन्हें किसानों के दर्द का पता नहीं है। उन्होंने कहा, मैंने पार्टी के नेताओं से तीन कृषि कानूनों पर चर्चा की,परंतु मेरी बात की उपेक्षा की गई। उन्होंने आगे कहा, किसानों के आंदोलन की वजह से हम पंजाब नगर पालिका निकायों के चुनाव हार चुके हैं। क्या आप समझते हैं, हमें विधानसभा चुनाव जीतने देंगे?

इसी क्रम में भाजपा नेता मोहन लाल ने भी कृषि किसानों पर किसानों की मांग को हल करने की मांग की है। पंजाब के वरिष्ठ पत्रकार राजेश सिंह विर्क कहते हैं कि भाजपा नेताओं की चिंता समझी जा सकती है। एक तो पहले ही पंजाब में भाजपा की अपनी दम पर कोई खास स्थिति नहीं है। अकाली दल के साथ मिल कर वह सत्ता में आती रही है। इस बार यह गठबंधन भी टूट गया है।

अब कृषि कानून के मुद्दे पर पंजाब में भाजपा की स्थिति खासी खराब है। इसी साल मार्च में अबोहर के भाजपा विधायक अरुण नारंग के साथ मलोट में मारपीट की घटना हुई थी। पंजाब में भाजपा का हर जगह विरोध हो रहा है।

राजेश विर्क कहते हैं कि तीनों कृषि कानूनों का विरोध पंजाब व हरियाणा में सबसे ज्यादा है। पंजाब के किसान लगातार बॉर्डर पर मोर्चा लगाए हुए हैं। जिस तरह से केंद्र सरकार ने कृषि कानूनों को लेकर रुख अपनाया है, इससे पंजाब के लोगों में भाजपा के प्रति गहरा रोष व गुस्सा है।

यह गुस्सा दिल्ली बार्डर पर ही नहीं बल्कि पंजाब में हर जगह देखने को मिल रहा है। पंजाब में जाट और सिख ही नहीं बल्कि एससीबीसी वर्ग भी इस मसले पर भाजपा के खिलाफ है।

पंजाब के किसान कृषि कानूनों के विरोध को अपने सम्मान के साथ जोड़ कर देख रहे हैं। उन्होंने ठान लिया है कि कानून रद्द करा  कर ही वापस आएंगे। यह किसी एक गांव या इलाके की बात नहीं है, लगभग हर ग्रामीण क्षेत्र के यह हालात है। इस विरोध की भाजपा केंद्रीय नेतृत्व भले ही अनदेखी कर रहा हो, लेकिन स्थानीय भाजपा नेताओं को जमीनी हकीकत पता है। वह जानते हैं कि हालात उनके विपरीत है।  

स्थानीय निकाय चुनाव में स्थिति यह थी कि भाजपा के नेता लोगों के बीच में जा भी नहीं पा रहे थे। अब जबकि विधानसभा चुनाव में ज्यादा वक्त नहीं है। इसलिए कृषि कानूनों को लेकर पंजाब भाजपा में छटपटाहट है।

लेकिन अब देर हो चुकी है। क्योंकि यदि सरकार कृषि कानून पर अब कोई भी निर्णय लेती है तो लगता नहीं भाजपा को पंजाब में इसका लाभ मिल जाएगा। इतने कम समय में किसान और ग्रामीण वोटर को अपने पक्ष में भाजपा कर पाएंगी, इसमें संशय है।

पंजाब की राजनीति पर नजर रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार ओमप्रकाश शर्मा कहते हैं कि भाजपा के स्थानीय नेता अब कृषि कानूनों पर बोल कर खुद को जस्टिफाई करने की कोशिश कर रहे हैं। वह यह बताना चाह रहे हैं कि कृषि कानूनों पर केंद्र उनकी भी बात नहीं सुन रहा है। जैसे जैसे विधानसभा चुनाव नजदीक आएंगे वैसे वैसे पंजाब भाजपा के भीतर कृषि कानूनों को लेकर असंतोष बढ़ेगा।

कृषि कानूनों के विरोध में किसानों के आंदोलन को छह माह हो गए हैं, अभी तक सरकार ने उनकी बात नहीं सुनी है। अब पंजाब भाजपा नेताओं की इस चिंता को केंद्र सरकार गंभीरता से शायद ही लेगी। क्योंकि केंद्र को पता है, पंजाब में भाजपा के पास खोलने के लिए ज्यादा कुछ नहीं है। जबकि कृषि कानूनों को मोदी की दबंग छवि से जोड़ कर देखा जा रहा है। कृषि कानून की वापसी यानी प्रधानमंत्री का पीछे हटना। ... और शायद भाजपा केंद्रीय नेतृत्व ऐसा चाहेगा नहीं।

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