Dehradun News: भारी पड़ा आवारा बैल का खुलेआम घूमना, हमले में बुजुर्ग की मौत, बचाने आया पुत्र भी हुआ जख्मी

Dehradun News, Dehradun Samachar। आवारा पशुओं के आतंक से त्रस्त उत्तराखंड में होने वाली मौतों की अगली कड़ी में रानीखेत के एक बुजुर्ग को बेलगाम घूम रहे सांड के हमले में जान गंवानी पड़ गई।

Update: 2022-10-26 11:30 GMT

Dehradun News: भारी पड़ा आवारा बैल का खुलेआम घूमना, हमले में बुजुर्ग की मौत, बचाने आया पुत्र भी हुआ जख्मी

Dehradun News, Dehradun Samachar। आवारा पशुओं के आतंक से त्रस्त उत्तराखंड में होने वाली मौतों की अगली कड़ी में रानीखेत के एक बुजुर्ग को बेलगाम घूम रहे सांड के हमले में जान गंवानी पड़ गई। सांड के इस हमले में अपने बुजुर्ग पिता को बचाने आया बेटा भी घायल हो गया। जबकि बुजुर्ग के साथ जा रहे उनके दो पोतों ने मौके से भागकर किसी तरह अपनी जान बचाई। घटना अल्मोड़ा जिले के रानीखेत तहसील मुख्यालय के सुदूर खोल्टा गांव की है। जहां आक्रामक सांड के हमले में ग्रामीण की मौत हुई है।

मिली जानकारी के मुताबिक कुंवाली क्षेत्र के कुलसीबी ग्रामसभा के खोल्टा गांव निवासी दिगंबरदत्त तिवारी (78 वर्ष) अपने दो पोतों को लेकर अपनी दुकान की ओर जा रहे थे। इसी दौरान उन पर एक आवारा सांड ने आक्रामक होकर हमला कर दिया। बुजुर्ग को शोर मचाने पर सांड के आक्रामक रुख को देखते हुए मौके पर मौजूद लोगों ने हो-हल्लाकर सांड को भगाने का प्रयास की। इसी बीच दिगंबरदत्त के पुत्र हेम चंद्र तिवारी अपने पिता को बचाने के लिए दौड़ लगाई तो वह भी सांड के हमले से घायल हो गया। इस बीच दादा और पिता पर आक्रामक हुए सांड से घबराए दोनों पोतों ने जैसे-तैसे मौके से भागकर अपनी जान बचाई।

कुछ देर बाद में मौके पर एकजुट हुए कई ग्रामीणों ने बामुश्किल सांड के चंगुल से छुड़ाने के बाद बुजुर्ग दिगम्बर और उनके पुत्र हेम को अस्पताल पहुंचाया।जहां से दिगंबर की हालत नाजुक देख रेफर कर दिया गया। जिनकी इलाज के लिए हल्द्वानी ले जाते समय रास्ते में ही मौत हो गई। जबकि दिगंबर के पुत्र हेम का इस घटना में पैर फैक्चर हो गया है।

बताया जा रहा है कि गांव के ही व्यक्ति ने तीन वर्ष पूर्व बैल को बेसहारा कर गोशाला से निकाल दिया था जो अब हमलावर हो गया है। ग्रामीणों ने आवारा बैल को पकड़ने के लिए पशुपालन विभाग से गुहार लगा रखी है, लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात वाला रहा। फिलहाल नतीजा यह है कि यह सांड लगातार लोगों पर हमला करने लगा है। इसी हमले में बुजुर्ग की मौत हो गई।

पशु मेलों पर रोक का नतीजा है उत्तराखंड में आवारा पशुओं का बढ़ना

उत्तराखंड के कुमाउं मण्डल में आवारा पशुओं की बढ़ती संख्या के पीछे इनका परंपरागत स्थानांतरण न होना है। पर्वतीय राज्य होने के कारण यहां खेती की जमीनें मैदानी क्षेत्र की तरह कभी भी बड़ी नहीं रहीं। सीढ़ीदार छोटे-छोटे खेत होने के कारण यहां की खेती में बड़े बैलों की कोई उपयोगिता नहीं रही। छोटी-छोटी ढालदार जोत होने की वजह से मैदानों की खेती के उपयोग में आने वाले ट्रैक्टर से खेती होने की संभावना पहाड़ पर पहले से ही नहीं थी। छोटे बछड़ों के दम पर ही यहां खेती होती रही है। पहले मैदान और पहाड़ को जोड़ने वाले रामनगर क्षेत्र में एक पशु मेला लगा करता था। जहां मैदानी क्षेत्र के ग्रामीण अपने छोटे-छोटे बछड़े लेकर आते थे। पहाड़ का किसान इन बछड़ों को खरीदकर अपने गांव ले जाते थे। कुछ समय के बाद इन बछड़ों के बैल बन जाने के बाद पहाड़ के किसान अपने बैलों को इस मेले में लाकर मैदानी किसानों के हाथ बेच देते थे। और मैदानी किसानों के बछड़े खरीदकर पहाड़ ले जाते थे। एक जमाने से चला आ रहा यह सिलसिला आगे भी बना रहता, लेकिन इस बीच पशुओं से प्रेम करने वाले कुछ लोगों की दृष्टि इस मेले पर पड़ती है। पहले इस मेले पर इन लोगों ने पशुओं के अत्याचार का आरोप लगाया, जो आगे बढ़ते हुए बड़े बैलों को कत्लखानों से जुड़ने लगा। बैलों को कत्ल होने का जो शोर उठाया गया, उससे लाभ उठाकर प्रदेश की भाजपा सरकारों ने इस मेले को हतोत्साहित करने शुरू कर दिया। खुद भाजपा कार्यकर्ता पहाड़ से आने वाले पशुओं की पहरेदारी करने लगे। तमाम पशु व्यापारियों के खिलाफ गौ वंश संरक्षण अधिनियम के तहत मुकदमें दर्ज कर उन्हें जेलों में भेजकर बरबाद करने का लंबा कुचक्र चला। जिसके बाद धीरे-धीरे इस मेले का अस्तित्व ही समाप्त हो गया। इसी बीच बछड़ों के अभाव में होने वाली बची-खुची खेती पर बंदरों और सुअरों के हमले भी बढ़ने लगे। धीरे-धीरे खेती के प्रति रुझान कम हुआ तो बछड़ों का भी कोई उपयोग नहीं रहा। अब पहाड़ में गाय का उपयोग तो दूध के लिए है, लेकिन उसके बछड़ों का कोई उपयोग नहीं है। बछड़े के बैल बनने की उम्र के दौरान ही उससे पीछा छुड़ाने के लिए उसे आवारा छोड़ दिया जाता है। दूध से हटने के बाद ही गाय भी इसी गति को प्राप्त होती है। पशु मेले के कारण जो पशु पहले किसानों की आर्थिकी में बढ़ोतरी करते थे, मेले के उजड़ने के बाद से ही अब अभिशाप साबित होने लगे हैं।

द्वाराहाट में लंबा आंदोलन चला चुकी हैं महिलाएं

पहाड़ में आवारा पशुओं से निजात दिलाने के लिए अल्मोड़ा जिले के ही द्वाराहाट में दस साल पहले लंबा आंदोलन भी चल चुका है। महिला एकता परिषद की मधुबाला के नेतृत्व में महीनों चले इस आंदोलन में कई महिलाओं के खिलाफ मुकदमें भी दर्ज हुए थे। सत्ता की ओर से समस्या के समाधान के लिए आश्वासन भी मिले। लेकिन धरातल पर सरकार कुछ न कर सकी।

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