सौ से ज्यादा पूर्व नौकरशाहों ने केंद्र सरकार को लिखा पत्र, कहा वापस लें नागरिकता संशोधन अधिनियम, एनआरसी को निरस्त करें...
जनज्वार। नागरिक संशोधन अधिनियम और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर के खिलाफ देशभर में प्रदर्शन जारी हैं। इस प्रदर्शन में हर धर्म और समुदायों के लोग शामिल हो रहे हैं। सीएए के खिलाफ देश की कई बड़े विश्वविद्यालयों में इसके खिलाफ अब भी प्रदर्शन जारी हैं, हाल ही में दिल्ली के जेएनयू, एएमयू और जामिया में इसके खिलाफ जबरदस्त प्रदर्शन देखने को मिला था।
दिल्ली के शाहिन बाग में खुन जमा देने वाली ठंड के बीच महिलाएं और बच्चे लगातार इस कानून के विरोध में शांतपूर्वक प्रदर्शन कर रहे है। यहां के लोगों ने इस प्रदर्शन में किसी भी राजनीति पार्टियों को शामिल नहीं होने दिया है।
वहीं गुरूवार को इस बीच देश के 106 नौकरशाहों ने केंद्र सरकार को सीएए और एनआरसी पर आपत्ति जताते हुए पत्र लिखा है। पत्र में इस कानून को लेकर नौकरशाहों ने कहा है कि एनपीआर, एनआरआई और सीएए अनावश्यक और व्यर्थ की कवायद है। इससे बड़े पैमाने पर लोगों को दिक्कतें होंगी। इस कानून को लेकर कहा गया कि एनआरसी, सीएए और एनपीआर का आपस में कोई लिंक नहीं है।
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पत्र लिखने वाले पूर्व नौकरशाहों में दिल्ली के पूर्व उप राज्यपाल नजीब जंग, तत्कालीन कैबिनेट सचिव के. एस. चंद्रशेखर और पूर्व मुख्य सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्ला, पूर्व विदेश सचिव श्याम शरण, शिवशंकर मेनन, सुजात सिंह, ब्रिटेन में पूर्व भारतीय राजदूत शिव शंकर मुखर्जी, पूर्व एशियाई विकास बैंक के कार्यकरी निदेशक पी के लाहिड़ी, ट्राई के पूर्व अध्यक्ष राहुल खुल्लर और पूर्व डीजी बीपीआरजी मीरन सी बोरवंकर जैसे तमाम बड़े नाम शामिल हैं।
पत्र को ‘भारत को सीएए, एपीआर, एनआरआईसी की जरूरत नहीं’ शीर्षक की जरूरत नहीं। पत्र में लिखा है कि सीएए के प्रवधानों की संवैधानिक वैधता को लेकर हमारी गंभीर आपत्ति है जिसे हम नैतिक रूप से असमर्थनीय भी मानते हैं। हम इस पर जोर देना चाहेंगे कि यह कानून भारत की आबादी के एक बड़े वर्ग में आशंकाएं पैदा करेगा जो जानबूझकर मुस्लिम धर्म को उसके दायरे से बाहर करता है।
इस पत्र में कहा गया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 22 दिसंबर को दिल्ली की एक जनसभा में बयान दिया था कि नागरिक संशोधन अधिनियम और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर एक दूसरे से जुड़े नहीं हैं यह झूठ है। जबकि केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने हर मंच पर इसको लेकर अलग-अलग बयान दिए हैं।
पूर्व नौकरशाहों ने पत्र में आगे कहा कि इस समय सरकार को देश की आर्थिक स्थिति पर से ध्यान देने जाने की जरूरत है। भारत ऐसी स्थिति बर्दाश्त नहीं कर सकता जिसमें नागरिकों और सरकार के बीच सड़कों पर टकराव हो।
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पूर्व नौकरशाहों ने आगे कहा कि देश में हम एक ऐसी स्थिति उत्पन्न होने का खतरा महसूस कर रहे हैं जिसमें भारत अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सद्भावना खो सकता है और निकट भविष्य में उसके संबंध पड़ोसी देशों से भी खराब हो सकते हैं। इससे उपमहाद्वीप में सुरक्षा परिदृश्य पर विपरीत परिणाम हो सकते हैं। पूर्व नौकरशाहों ने आगे कहा कि एनपीआर औरएनआरसी की कोई जरूरत नहीं है।
पूर्व नौकरशाहों ने कहा कि सीएए के प्रावधानों के साथ ही पिछले कुछ वर्षों से सरकार की ओर से दिए गए आक्रामक बयानों से देश के मुसलमानों के बीच गहरी बेचैनी पैदा हुई है। मुसलमान पहले से ही लव- जिहाद, गौतस्करी और गोमांस सेवन जैसे आरोपों से जुड़े मुद्दों को लेकर भेदभाव और हमलों का सामना कर रहे हैं।
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इस पत्र में विरोध प्रदर्शन के दिनों में हुए मुस्लिम समुदाय को उन राज्यों में पुलिस कार्रवाई का सामना करना पड़ा है जहां स्थानीय पुलिस केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी द्वारा नियंत्रित हैं। इससे कानून के इस्तेमाल खास समुदाय के लोगों को निशाना बनाने के लिए किया जा सकता है।
पत्र में पूर्व नौकरशाहों ने लोगों से सरकार से यह भी आग्रह करने के लिए कहा है कि वह विदेशी (न्यायाधिकरण) संशोधन आदेश, 2019 के साथ ही हिरासत केंद्रों के निर्माण के सभी निर्देशों को वापस ले और संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) को रद्द करे।