6 हजार महीना देने वाले फैक्ट्री मालिक ने मजदूरों से कहा अब मिलेगी आधी सेलरी, जिसे नामंजूर वो छोड़ दे नौकरी

Update: 2020-05-22 04:30 GMT

केजरीवाल सरकार दावा करती है कि दिल्ली में मिनिमम वेज है 14845 और ज्यादातर फैक्ट्री मालिकान करते हैं इसे फॉलो, मगर इस फैक्ट्री में मजदूर खटते हैं मात्र 6 हजार में जिसे घटाकर अब मालिकान ने कर दिया है 3 हजार....

जनज्वार, दिल्ली। लॉकडाउन ने गरीब मजदूर वर्ग की कमर किस तरह तोड़ दी है, इसका अंदाजा लगाना हो तो किसी मजदूर से बात करके पता चल जायेगा। भूखों मरने की हालत में पहुंचे ये मजदूर जोकि देश की रीढ़ हैं, आज पाई-पाई और दाने—दाने को मोहताज हो चुके हैं। पहले से ही इनका खून चूस रहे मालिकानों ने अब लॉकडाउन के दौरान की सेलरी देना तो दूर, काम करने के बदले भी पहले से तय न्यूनतम मजदूरी से भी बहुत सेलरी देने से हाथ खड़े कर दिये हैं।

ह हाल किसी एक फैक्ट्री-कंपनी का नहीं, बल्कि चौतरफा है। बड़ी तादाद में मजदूरों को बाहर का रास्ता दिखाया जा रहा है। ऐसी ही एक जूता-चप्पल बनाने की फैक्ट्री है लिब्रो, जिसके मालिक ने आज मजदूरों से कह दिया है कि जिसको काम करना है करे, क्योंकि आगे से अब आधी तनख्वाह में काम करना पड़ेगा।'

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ह फैक्ट्री पड़ती है राजधानी दिल्ली के नरेला के इंडस्ट्रियल एरिया में। यह वही दिल्ली है जहां के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल दावा करते हैं कि दिल्ली में हर किसी को मिनिमम वेज यानी न्यूनतम 14845 रुपये सेलरी मिल रही है।

गर इस फैक्ट्री का मालिक सुनील लगभग 10 साल से उसके वहां काम कर रहे मजदूरों को 6 हजार सेलरी यानी मिनिमम वेज का तीसरा हिस्सा पहले से ही मजदूरी 12 घंटे काम के बदले देता था। इतना ही नहीं इसने 22 मार्च के बाद जितने दिन लॉकडाउन रहा, मजदूरों को एक भी पैसा नहीं दिया। मजदूरों का 22 मार्च तक का हिसाब कर दिया गया।

फैक्ट्री में काम करने वाली एक महिला रीना (बदला हुआ नाम) बताती हैं, 'जब ​देशभर में पहली बार 1 दिन का लॉकडाउन घोषित हुआ यानी 22 मार्च को, हमें मालिक ने तभी तक का पैसा दिया है। अब जब दोबारा फैक्ट्री खुली है तो हमसे कहा जा रहा है कि हमें आधी ही सेलरी दी जायेगी, जिसे काम करना है करे नहीं तो अपने घर बैठ सकता है। मालिक ने कहा अहसान मानो कि यह फैक्ट्री भी हमने तुम लोगों के बीवी—बच्चों के बारे में सोचकर खोली है, नहीं तो आगे 2 महीने और हम इसे बंद रख सकते थे।'

स मामले में वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता और वकील अशोक अग्रवाल कहते हैं, 'वाह रे मेरी दिल्ली! नरेला दिल्ली की एक चप्पल फैक्ट्री मालिक ने आज अपने सभी मज़दूरों को बोला जिसको काम करना है करे, अब आधी तनखा पर काम करना पड़ेगा। मिनिमम वेज है 14845 प्रतिमाह और तनख्वाह मिल रही है 6000 प्रतिमाह, जो अब मिलेगी 3000 रुपये प्रतिमाह।'

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रीना बताती है, आज जब हम अपना काम कर रहे थे तो अचानक मालिक नीचे उतर कर आया और हमसे कहा कि लॉकडाउन के कारण अब आधी सेलरी दी जायेगी, जिसे काम करना है करे, नहीं तो काम छोड़कर जा सकता है। हमें पहले ही सिर्फ 6 हजार रुपये तनख्वाह मिलती है, जिससे बमुश्किल गुजारा होता है। अब सेलरी कटकर आधी रह जायेगी तो गुजारा बहुत मुश्किल हो जायेगा। लॉकडाउन के कारण पति को मजदूरी का काम भी नहीं मिल रहा है, घर में 3 बच्चे हैं आखिर क्या खायेंगे हम।'

रीना जैसी अन्य महिलायें और पुरुष जो इतनी कम सेलरी में 12 घंटे खटते हैं, फैक्ट्री तक का रास्ता दसियों किलोमीटर पैदल चलकर तय करते हैं, मगर बंधुआ मजदूर की तरह खटते हैं।

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क अन्य मजदूर कहते हैं, मालिक ने जिस तरह चेतावनी दी है, अगर हमने उस पर एक शब्द भी बोला तो हमारे पास यह काम भी नहीं रह जायेगा, फिर आखिर खायेंगे क्या। कम से कम इससे 2 जून की रोटी तो नसीब हो जायेगी परिवार को। मालिक के खिलाफ इस लॉकडाउन में आवाज उठायी तो रोजगार तो जायेगा ही, बच्चों के भी भूखों मरने की नौबत आ जायेगी। हम जैसे लोग आत्महत्या करने को मजबूर हो जायेंगे।

फैक्ट्री में काम करने वाली महिला मजदूर कहती है, पहले भी जब तनख्वाह कटौती को लेकर मालिक से बात की थी तो वह भड़क गया था, नौकरी जाने की नौबत आ गयी थी, इसलिए डर के मारे कोई भी उसके खिलाफ आवाज नहीं उठायेगा।

गौरतलब है कि पिछले साल दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने घोषणा की थी कि सरकार द्वारा न्यूनतम मजदूरी बढ़ाकर 14842 रुपये कर दी गयी है, जिससे 50 लाख ठेका कर्मचारियों को फायदा होगा। अब सवाल है कि रीना या फिर जूता-चप्पल फैक्ट्री में एक दशक तक चप्पल घिसने के बाद भी क्या ये मजदूर न्यूनतम मजदूरी के दायरे में नहीं आते, या फिर यह घोषणा लिब्रो जैसी फैक्ट्रियों पर लागू नहीं होता।

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ह तो मात्र एक फैक्ट्री का मामला है, जहां मजदूरों की सेलरी आधी कर देने की घोषणा मालिकान ने कर दी है। लिब्रो का मालिक सुनील जूता-चप्पल की दो फैक्ट्रिया चला है, जाहिर तौर पर उसने दूसरी फैक्ट्री के लिए भी यही घोषणा की होगी। लिब्रो जैसी न जाने कितनी फैक्ट्रियां होंगी जिन्होंने बड़े पैमाने पर मजदूरों के वेतन में कटौती की होगी।

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईओएल) की हाल में आई एक रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना वायरस की वजह से देश के लगभग 40 करोड़ असंगठित मजदूरों की रोजी-रोटी प्रभावित हो सकती है। ऐसे में बजाय दावों, वादों और झूठी हमदर्दी के हमारे सत्तासीनों को श्रमिकों की वाकई में चिंता करने की जरूरत है, ताकि उन्हें थोड़ी राहत मिले।

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ईओएल ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि दूसरे विश्वयुद्ध के बाद कोरोना दुनिया के सामने सबसे बड़ी मुसीबत बनकर आई है। आईएलओ के डायरेक्टर गाय रायडर के मुताबिक मंदी का दौर विकसित और विकासशील दोनों देशों में एकसमान देखने को मिलेगाफ उन्होंने कहा कि वैश्विक महामंदी को रोकने के लिए वैश्विक स्तर पर प्रयासों की जरूरत है और अगर वो नहीं लिए गए तो दुनियाभर में महामंदी आएगी। रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि पूरी दुनिया में असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले करीब दो अरब लोग हैं, जिनके सामने कोरोना के बाद रोजी-रोटी की भयानक समस्या पैदा हो जाएगी।

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