पुलवामा : एक साल बाद भी मोदी सरकार न शहीदों के परिजनों से किये वादे पूरे कर पाई, न षड्यंत्र का खुलासा
केंद्र सरकार ने पुलवामा आतंकी हमले से संबंधित जानकारियां देने से इनकार कर दिया है, केंद्र ने साफ कर दिया है कि इस घटना की जांच रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया जाएगा...
जनज्वार। जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में हुए आतंकी हमले को आज 14 फरवरी को एक साल हो पूरा हो गया है। आतंकी हमले में शहीद हुए CRPF के 42 जवानों को जहां पूरा देश नम आँखों से श्रद्धांजलि दे रहा है, वहीं विपक्षी पार्टियां मोदी सरकार से उन्हीं सवालों का जवाब एक बार फिर मांग रही हैं, जो हमले के तुरंत बाद पैदा हुए थे और जिनका संतोषपूर्ण उत्तर सरकार नहीं दे पाई थी या फिर नहीं देना चाह रही थी।
राहुल गांधी ने आज पुलवामा हमले की बरसी पर शहीद जवानों को याद किया और मोदी सरकार पर निशाना साधते हुए सवाल किया कि आखिर इस हमले का सबसे ज्यादा फायदा किसे हुआ, इसकी जांच में क्या निकला और सरकार में किस व्यक्ति को जवाबदेह ठहराया गया। अपने ट्वीट के जरिए राहुल गांधी ने तीन सवाल पूछे।
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राहुल ने शहीद जवानों के पार्थिव शरीर वाले ताबूतों की तस्वीर शेयर करते हुए ट्वीट किया, 'आज जब हम पुलवामा हमले में शहीद हुए 40 जवानों को याद कर रहे हैं तो हमें यह पूछना चाहिए कि इस हमले से सबसे ज्यादा फायदा किसको हुआ?'
'हमले की जांच में क्या निकला? हमले से जुड़ी सुरक्षा खामी के लिए भाजपा सरकार में अब तक किसको जवाबदेह ठहराया गया है?'
वहीं इस मामले में सीपीएम नेता मोहम्मद सलीम ने कहा, “हमें मेमोरियल की जरूरत नहीं है, जो हमारी अक्षमता को याद कराए। एक चीज जिसे हमें जानने की जरूरत है वो है कि कैसे 80 किलोग्राम आरडीएक्स इंटरनेशनल बॉर्डर को पार कर आया, जो धरती पर सबसे ज्यादा आर्मी वाला क्षेत्र है और पुलवामा में विस्फोट हुआ। पुलवामा हमले के इंसाफ की जरूरत है।”
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वहीं एनसीपी के वरिष्ठ नेता और महाराष्ट्र सरकार में मंत्री नवाब मलिक ने आरडीएक्स की इतनी बड़ी खेप पुलवामा पहुंचने के मामले में कोई जांच न किए जाने पर सवाल खड़े किए हैं। उन्होंने कहा, “पुलवामा हमले में 40 सीआरपीएफ जवान शहीद हो गए। आज तक कोई जांच समिति नहीं बनाई गई कि कहां से और किस तरह आरडीएक्स से लदी गाड़ी मौके पर पहुंची? गाड़ी का ड्राईवर जेल में है। जांच की जानी चाहिए क्योंकि लोग सच्चाई जानना चाहते हैं।”
मोदी सरकार तो आज भी जवाब देने से आनाकानी कर रही है। गौरतलब है कि आरटीआई कार्यकर्त्ता पीपी कपूर ने 13 फरवरी को पत्रकारों को बताया कि केंद्र सरकार ने पुलवामा आतंकी हमले से संबंधित जानकारियां देने से इनकार कर दिया है। केंद्र ने साफ कर दिया है कि इस घटना की जांच रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया जाएगा।
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कपूर ने आगे बताया कि उन्होंने नौ जनवरी व 10 जनवरी 2020 को दो अलग-अलग आरटीआई केन्द्रीय गृह मंत्रालय के तहत सीआरपीएफ के महानिदेशक को भेजी थीं और कुल 5 बिंदुओं के बारे में सूचना मांगी थी, लेकिन सीआरपीएफ महानिदेशालय के डीआईजी (प्रशासन) एवं जनसूचना अधिकारी राकेश सेठी ने मांगी गई सूचना देने से इंकार कर दिया।
उन्होंने सूचना सार्वजनिक न करने के पीछे कारण बताया कि आरटीआई एक्ट-2005 के अध्याय 6 के पैरा-24(1) के प्रावधानों अनुसार सीआरपीएफ को भ्रष्टाचार व मानवाधिकारों के उल्लंघन के मामलों को छोडक़र अन्य किसी भी प्रकार की सूचना देने से मुक्त रखा गया है, जबकि आरटीआई कार्यकर्ता कपूर का कहना है कि सरकार अपनी विफलता को छुपाने के लिए जान-बूझकर सूचना सार्वजनिक नहीं कर रही। उनके अनुसार पुलवामा कांड भ्रष्टाचार व सीआरपीएफ जवानों के मानवाधिकारों के उल्लंघन का सीधा मामला है, इसलिए मांगी गई सूचना से इनकार नहीं किया जा सकता।
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गौरतलब है कि जम्मू कश्मीर के पुलवामा जिले में गुरुवार 14 फरवरी 2019 को जैश-ए-मोहम्मद के एक भीषण फिदायिन हमले में सीआरपीएफ के 40 जवान शहीद हो गये थे और कई अन्य बुरी तरह घायल हो गये थे। जैश के एक आतंकवादी ने विस्फोटकों से लदे वाहन से सीआरपीएफ जवानों को ले जा रही बस को टक्कर मार दी थी।
केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के 2500 से अधिक कर्मी 78 वाहनों के काफिले में जा रहे थे। इनमें से अधिकतर अपनी छुट्टियां बिताने के बाद अपनी ड्यूटी पर लौट रहे थे। जम्मू कश्मीर राजमार्ग पर अवंतिपोरा इलाके में लाटूमोड पर इस काफिले पर अपराह्न करीब साढ़े तीन बजे घात लगाकर हमला किया गया। मौके पर मौजूद एक अधिकारी ने बताया कि आत्मघाती हमलावर उस वाहन को चला रहा था, जिसमें 100 किलोग्राम विस्फोटक रखा हुआ था। वह गलत दिशा में वाहन चला रहा था और उसने जिस बस पर सीधी टक्कर मारी उसमें लगभग 50 सुरक्षाकर्मी यात्रा कर रहे थे।
पुलवामा में आतंकी हमला और बदले में भारतीय वायुसेना द्वारा बालाकोट में ध्वस्त किये गए पाकिस्तानी आतंकियों के ठिकानों पर खूब राजनीति की गयी। भारतीय विपक्ष ने तो यहां तक आरोप लगाए कि प्रधानमंत्री मोदी और अन्य बीजेपी नेताओं ने 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान इन दो घटनाओं का अपने पक्ष में वोट बटोरने के लिए भरपूर इस्तेमाल किया।
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लेकिन ये सवाल तब भी अनुत्तरित था और आज भी अनुत्तरित है कि सीमा पार से इतनी ज़्यादा विस्फोटक सामग्री जैश-ए-मोहम्मद के आतंकियों के पास पहुँची कैसे? एनआईए अभी तक यह जानकारी हासिल नहीं कर पाया है कि इस हमले के पीछे षडयंत्र क्या था? एक साल बाद भी एनआईए ना तो चार्ज शीट फाइल कर पाई है और ना ही विस्फोटक सामग्री के स्त्रोत का पता लगा पाई है। गौरतलब है कि जिनसे ये जानकारी हासिल की जा सकती थी उन तथाकतिथ जैश आतंकियों मुदासीर अहमद ख़ान, कारी मुफ़्ती यास्सेर, कामरान और सज्जाद अहमद भट को सुरक्षा बलों ने मार्च 2019 से जनवरी 2020 के बीच मुठभेड़ में मार गिराया।
बेटे के गम के साथ-साथ सरकारी अधिकारियों व जनप्रतिनिधियों का उनके वादों से मुकरना भी उन्हें बहुत कष्ट दे रहा है। बेटे के अंतिम संस्कार के समय सरकारी अधिकारियों/ जनप्रतिनिधियों ने जो वादे उनसे किए थे, वह एक साल बीतते हुए भी पूरे नहीं हुए हैं। लगभग एक साल बीतने पर भी जब शहीद का स्मारक नहीं बनाया गया तो परिजनों ने अपनी जमीन पर ही ग्रामसभा के माध्यम से स्मारक का निर्माण शुरू कर दिया है।
शहीद कौशल कुमार रावत के अंतिम संस्कार के समय उनका स्मारक बनवाने, गांव तक पक्की सड़क बनवाने, गांव के स्कूल का नाम शहीद के नाम पर रखने, शहीद के परिवार को जमीन देने के वायदे में से एक भी वायदा पूरा न होने पर परिजनों में खासा रोष भी है।