लॉकडाउन में राशन के नाम पर केजरीवाल बांट रहे गरीबों को गेहूं, क्या वे इसे कच्चा चबायेंगे
जिन 10 लाख लोगों को केजरीवाल सरकार गेहूं थमाकर वाहवाही लूट रही है, अगर ये लोग चक्कियों पर गेहूं पिसवाने के लिए जुटेंगे तो क्या होगा सोशल डिस्टेंसिंग और लॉकडाउन के नियमों का....
जनज्वार, दिल्ली। कोरोना महामारी की भयावहता के बीच देश पिछले 22 दिनों से प्रधानीमंत्री के आदेश के बाद लॉक है। केंद्र और तमाम राज्यों की सरकारें दावा कर रही हैं कि वो इस दौरान गरीबों-मजदूरों को भूखों नहीं मरने देगी, इसलिए उनके खाने-पीने की व्यवस्था हम हर स्तर पर कर रहे हैं। हालांकि इसी बीच देशभर से तमाम ऐसी खबरें आ रही हैं, जो साबित करती हैं कि सरकार के दावे सिर्फ दावे हैं लोग भुखमरी का शिकार होने लगे हैं।
गरीबों-मजदूरों को भूखा नहीं मरने देने के अपने दावे के बाद दिल्ली सरकार ने भी उनके बीच राशन वितरण का काम शुरू किया है। उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने खुद कहा है कि 'दिल्ली में जिन लोगों के पास राशन कार्ड नहीं है स्कूलों में उन्हें राशन बांटने का काम शुरू हुआ है। 10 लाख लोगों को राशन में 4 किलो गेहूं, 1 किलो चावल ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन के आधार पर दिया जा रहा है। राशन कूपन के लिए आवेदन करने वाले 16 लाख से भी ज्यादा लोगों को राशन देंगे।'
दिल्ली सरकार के इस कदम की निश्चित तौर पर सराहना की जानी चाहिए, मगर सवाल है कि बजाय आटा देने के सरकार गेहूं का वितरण क्यों कर रही है। लगभग भूखों मरने की हालत में जी रहे दिहाड़ी मजदूरों के परिवार आखिर 4 किलो गेहूं का क्या करेंगे। लॉकडाउन और तमाम शील्ड इलाकों में आखिर चक्कियां कैसे चलेंगी।
अगर चक्कियां खुली भी हों तो क्या चक्कियों में गरीबों को इतने राशन को पिसवाने के लिए एक नई जद्दोजहद से नहीं जूझना होगा।
दिल्ली सरकार की राशन वितरण प्रणाली के तहत स्कूल से 4 किलो गेहूं और 1 किलो चावल पाने वाले राजवीर लाभार्थी कहते हैं, हरिनगर के सरकारी स्कूल में सरकार गरीबों में राशन वितरण कर रही है, और हमें भी 4 किलो गेहूं और 1 किलो चावल मिला है, मगर असल समस्या गेहूं पिसवाने की है। आखिर हम 4 किलो गेहूं पिसवाने के लिए कहां जायेंगे, चक्की पर लाइन लगवायेंगे तो लॉकडाउन का आखिर मतलब क्या हुआ, क्या लाइन लगाने से हमें कोरोना होने का खतरा नहीं है।'
राजवीर कहते हैं, हमने राशनकार्ड के लिए अप्लाई किया है, जिसके बाद हमें यह राशन सरकार दे रही है। सरकार गेहूं के बदले हमें आटा दे देती तो हमारे लिए आसानी होती, और लॉकडाउन के नियमों का पालन भी। अब हमें इस गेहूं को लेकर एक नई जंग लड़नी होगी पेट भरने के लिए, आखिर इसे पिसवायें कहां।
लॉकडाउन के बीच गरीबों—मजदूरों की दुर्दशा पर कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी कहती हैं, "प्रवासियों के पास पैसे नहीं है, उनका राशन समाप्त हो गया है। वे असुरक्षित महसूस कर रहे हैं और अपने घर जाना चाहते हैं। उन्हें सुविधाएं प्रदान की जानी चाहिए। योजना बनाकर उनकी मदद की जा सकती है। मोदीजी, मजदूर देश की रीढ़ हैं। भगवान की खातिर कृपया उनकी मदद करें।"
ऐसे में सवाल यह भी है कि जिन 10 लाख लोगों को केजरीवाल सरकार गेहूं थमाकर वाहवाही लूट रही है, अगर ये लोग चक्कियों पर आटा पिसवाने के लिए जुटेंगे तो क्या होगा सोशल डिस्टेंसिंग और लॉकडाउन के नियमों का। क्या गरीबों की रैलियां निकालने के लिए केजरीवाल सरकार ने यह कदम उठाया है, क्या इससे कोरोना के मामलों में बाढ़ नहीं आयेगी। सरकार यह कैसे तय करेगी कि जिन लाखों गरीब परिवारों को 4 किलो गेहूं थमाया गया है, उनमें से कोई कोरोना संक्रमित नहीं है।
केजरीवाल सरकार द्वारा गरीबों को गेहूं बांटे जाने पर दिल्ली बीजेपी के प्रवक्ता हरीश खुराना ने जनज्वार को बताया कि आम आदमी पार्टी ने राशन बांटने और लोगों को खाना देने के जो बड़े दावें किए वो झूठे हैं। दिल्ली में इस समय चक्कियां भी पूरे तरीके से बंद हैं। ऐसे में सरकार सभी लोगों को बेवकूफ बनाने का काम कर रही है। दूसरी बात केजरीवाल सरकार की तरफ से जो खाना बांटा भी जा रहा है, उसकी गुणवत्ता बहुत खराब है। केजरीवाल 10 लाख लोगों को खाना बांटने की बात कर रहे हैं, लेकिन सवाल ये है कि इतना खाना बन ही कहा रहा है? इसका विरोध भारतीय जनता पार्टी काफी पहले से कर रही है। 10 लाख लोगों को खाना बनाने के लिए काफी बड़ी रसोई की जरूरत होगी, अधिक मात्रा में अनाज की जरूरत होगी, लेकिन ऐसा कुछ दिल्ली में देखने को कहा मिल रहा है। सरकार के दावों में कुछ भी सच्चाई नहीं है। इसमें कही ना कही एक घोटाला भी नजर आता है, क्योंकि अगर सरकार पचास हजार लोगों को खिलाकर बोल रही है कि हम दो लाख लोगों को खाना दे रहे हैं, तो बाकी का पैसा जा कहां पर रहा है?'
सरकार के ये अदूरदर्शी कदम और गरीबों की जिंदगी से खिलवाड़ और उपहास उड़ाने वाले कदम तब हैं, जबकि हमारे देश में स्वास्थ्य व्यवस्थायें वेंटिलेटर पर हैं। गरीबों के लिए किसी तरह की सुविधायें नहीं हैं। गरीब जगह—जगह तड़प—तड़पकर दम तोड़ रहे हैं।
दिल्ली सरकार से गेहूं पाने वाले एक अन्य लाभार्थी कहते हैं, सरकार के लिए हमारी जान की कोई कीमत नहीं है और न ही हमारी कोई फिक्र। क्या हम ये गेहूं चबायेंगे, सरकार को हमारी फिक्र है तो इसके बजाय हमें आटा क्यों नहीं दे रही।
गरीबों-मजदूरों का यह सवाल जायज भी है। आखिर जिस कोरोना से बचाव के लिए लॉकडाउन किया गया है, और जिसकी वजह से लाखों मजदूरों-गरीबों के बीच सरकारें गेहूं का वितरण कर रही है, क्या उन्हें अगली लाइन गेहूं वो भी 4 किलो पिसवाने के लिए नहीं लगवानी पड़ेगी, क्या इससे लॉकडाउन के नियमों का उल्लंघन नहीं होगा। जब सबकुछ ही लॉकडाउन है तो क्या चक्कियां खुली रहेंगी।