अर्णब गोस्वामी के पत्रकारिता की हेकड़ी आ गयी हाथ में, सत्ता की सच्चाई लिखने वाला एक भी पत्रकार नहीं उनके साथ
हमारे देश में तो सरकार की लोकप्रियता और प्रचंड बहुमत का अस्तित्व ही झूठी खबरें, मनगढ़ंत आंकड़े और भ्रामक सफलताओं की कहानियों पर टिका है। अब तो लॉबी और पब्लिक रिलेशंस की बड़ी कम्पनियां भी अफवाह फैलाने का ठेका लेने लगी हैं...
महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण
जनज्वार। पालघर हिंसा को लेकर किए गए कार्यक्रम में भड़काऊ बातें करने और अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल करने पर रिपब्लिक टीवी और इसके संपादक-मालिक अर्णब गोस्वामी अभियुक्त बनाए गए हैं। देश के विभिन्न थानों में उनके खिलाफ 105 से ज्यादा एफआईआर दर्ज की गई हैं। अर्णब गोस्वामी पर आईपीसी की विभिन्न धाराओं में मामला दर्ज हुआ है जिनमें समुदायों के बीच वैमनस्यता फैलाना, सांप्रदायिक नफरत भड़काने, हिंसा के लिए उकसाने और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के खिलाफ अपशब्दों के इस्तेमाल कर मानहानि करने की धाराएं हैं।
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पूरी दुनिया में शायद ही किसी पत्रकार पर इतने मामले दर्ज किये गए होंगे! वैसे अर्णब को पत्रकार कहना पूरी इस बिरादरी का अपमान है क्योंकि वे अपने कार्यक्रमों में खुद को सत्ता के दलाल से अधिक कुछ नहीं साबित कर पा रहे हैं। इतने सारे मुकदमे तो आजादी की लड़ाई के समय अंग्रेज सरकार ने भी किसी देशभक्त पत्रकार पर भी नहीं लगाए होंगे, फिर ये तो केवल सत्ता के तलवे चाटने वाले चाटुकार हैं और ऐसे पत्रकारों के सरगना भी। इसमें कोई आश्चर्य नहीं है की सरकार और बीजेपी उनके बचाव कूद पडी है, पर अर्णब के समर्थन में सोशल मीडिया या फिर मेनस्ट्रीम मीडिया में एक भी पत्रकार या फिर संस्था नजर नहीं आ रही है।
देश का लोकतंत्र मर चुका है, क्योंकि कार्यपालिका, न्यायपालिका और मीडिया तो कब का विधाइका के आगे अपना अस्तित्व खो चुके हैं। आज के समय कोरोनावायरस से अधिक लोग भूख, गरीबी, बेरोजगारी, पुलिस की लाठियों से या फिर लिन्चिंग से मर रहे हैं। आजाद भारत के पूरे इतिहास में इतने पत्रकारों, बुद्धिजीवियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं या लेखकों पर राष्ट्रीय सुरक्षा से सम्बंधित मामले नहीं दर्ज किये गए होंगे, जितने इस कोरोना काल में कर लिए गए हैं, तो दूसरी तरफ अर्णब गोस्वामी जैसे लोग जो सही में समाज को दूषित कर रहे हैं, उन्हें सरकार लगातार बचा रही है, संरक्षण कर रही है। इस सरकार का आधार ही झूठी और भ्रामक खबरें फैलाना है क्योंकि सरकार को पता है की वह जनता के हित के लिए कुछ नहीं कर रही है और केवल अपना अघोषित एजेंडा साध रही है।
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दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का लोकतंत्र मर चूका है क्योंकि कार्यपालिका, न्यायपालिका और मीडिया सबने विधाईका के सामने अपना अस्तित्व खो दिया है। ऐसे में जाहिर है सरकार निरंकुश ही होगी। इस समय कुल 165 स्वतंत्र देशों में लोकतंत्र इंडेक्स में हम 51वें स्थान पर हैं। पिछले वर्ष ही हम 10 स्थान लुढ़क चुके हैं।
दो दिन पहले ही जारी प्रेस फ्रीडम इंडेक्स 2020 में हम पिछले वर्ष की तुलना में दो स्थान पिछडकर किल 180 देशों की सूची में 142वें स्थान पर पहुँच गए हैं। इंडेक्स के अनुसार इसका कारण मोदी सरकार का मीडिया पर बढ़ता शिकंजा, पत्रकारों पर प्रशासन और पुलिस की ज्यादती, सोशल मीडिया पर पत्रकारों को मिलती धमकियां हैं।
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पहले सरकारी स्तर पर झूठी और भ्रामक खबरें और सरकारी दुष्प्रचार के लिए रूस, उत्तर कोरिया और चीन जैसे देश बदनाम थे, पर सोशल मीडिया के इस युग में लगभग हरेक देश की सरकारें और राजनैतिक पार्टियां इसी के सहारे पनप रही हैं। चीन इस समय हांगकांग के आन्दोलनकारियों को सोशल मीडिया के सहारे पश्चिमी देशों का एजेंट और हिंसक बनाने में जुटा है और सफल भी हो रहा है।
अमेरिका में ट्रंप के ट्वीट तो रोज तहलका मचाते हैं और वहां की मीडिया और जनता उसमें सच ढूँढती रह जाती है। हमारे देश में तो सरकार की लोकप्रियता और प्रचंड बहुमत का अस्तित्व ही झूठी खबरें, मनगढ़ंत आंकड़े और भ्रामक सफलताओं की कहानियों पर टिका है। अब तो लॉबी और पब्लिक रिलेशंस की बड़ी कम्पनियां भी अफवाह फैलाने का ठेका लेने लगीं हैं और यह एक बड़ा, महंगा और प्रतिष्ठित कारोबार हो गया है।
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अब तो हरेक दिन सरकार स्वयं ही साबित कर रही है कि इस देश में लोकतंत्र को मरे हुए भी बहुत समय बीत गया और अब तो इसके मरे शरीर से कीड़े निकल कर चारों तरफ फ़ैलने लगे हैं। लगता है जैसे देश को कोई सरकार नहीं बल्कि एक गिरोह चला रहा हो – इस गिरोह और इसके तलवे चाटने वालों के लिए अलग नियम हैं और बाकी लोगों के लिए अलग नियम हैं। अर्णब गोस्वामी और कॉमेडियन कुणाल कामरा के मामले को बीते कुछ ही महीने हुए हैं।
इसमें सरकारी निर्देश के बाद देश की चार एयरलाइन द्वारा कुणाल कामरा को अपने विमानों में उड़ने की अनुमति नहीं देने का आदेश सुनाया जाता है। एयरलाइन ने मंत्री को खुश कर दिया और मंत्री ने गिरोह के नायक प्रधानमंत्री को। अब देश का तथाकथित लोकतंत्र यही है।
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यह खतरा अब स्पष्ट नजर आने लगा है, और अर्णब गोस्वामी तो महज एक सरकारी जमूरे हैं जो मदारी की बातों को दुहरा रहे हैं, आगे बढ़ा रहे हैं। वैसे भी मदारी के बिना जमूरे का कोई अस्तित्व नहीं होता।