मोदी के गुजरात में आर्थिक बदहाली के चलते 162% तो बेरोज़गारी 21% बढ़ गई आत्महत्या की घटना

Update: 2020-03-16 12:22 GMT

प्रधानमंत्री मोदी के मुख्यमंत्री रहते विकास मॉडल के रूप में पेश किये जाने वाले गुजरात में आर्थिक बदहाली के चलते आत्महत्या करने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है। अकेले २०१८ में सरकारी विभाग ने ‘ग़रीबी’ के चलते आत्महत्या के २९४ मामले दर्ज़ किये।

जनज्वार। प्रधानमंत्री मोदी के मुख्यमंत्री रहते विकास मॉडल के रूप में पेश किये जाने वाले गुजरात में आर्थिक बदहाली के चलते आत्महत्या करने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है। अकेले २०१८ में सरकारी विभाग ने 'ग़रीबी' के चलते आत्महत्या के २९४ मामले दर्ज़ किये। टाइम्स ऑफ़ इंडिया में छपी खबर के अनुसार National Crimes Report Bureau की जनवरी माह में 'Accidental Deaths & Suicides in India' नाम से जारी रिपोर्ट बताती है कि गुजरात में २०१८ में 'बेरोज़गारी' कारण बताते हुये ३१८ लोगों ने अपनी जान दे दी।

 

बेरोज़गारी के कारण जहाँ अहमदाबाद में ३१ लोगों ने अपनी जान की आहुति दे डाली वहीं वड़ोदरा में १८ लोगों को बेरोज़गारी निगल गयी। रिपोर्ट ने ये भी खुलासा किया है कि गुजरात में ६७ लोगों ने इसलिए आत्महत्या को चुना क्योंकि वे दिवालिया हो चुके थे और १३६ लोगों ने जीवनयापन के संकट के चलते आत्महत्या का कदम उठाया। रिपोर्ट में किये गए ख़ुलासे में सबसे ज़्यादा चिंता की बात ये है कि २०१७ की तुलना में २०१८ में आत्महत्या की बढ़ी हुयी घटनाओं में मज़दूरों की संख्या ज़्यादा थी। २०१७ में जहां २,१३१ मज़दूरों ने आत्महत्या की थी वहीं २०१८ में २,५२२ मज़दूरों को आत्महत्या करने पर मजबूर होना पड़ा। यानी कि आत्महत्या करने वाले मज़दूरों की संख्या में १८.३ फीसदी की बढ़ोत्तरी हो गयी।

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वहीं बेरोज़गारी के चलते आत्महत्या करने वालों की संख्या में भी ११.३ फीसदी का इजाफा हो गया यानी २०१७ में जहां बेरोज़गारी से परेशान हो कर ३६९ युवाओं ने आत्महत्या का रास्ता चुना वहीं २०१८ में ऐसे युवाओं की संख्या बढ़कर ४११ हो गयी। एक और चौंकाने वाली बात इस रिपोर्ट में सामने आई। आत्महत्या करने वालों में ऐसे लोगों की संख्या ८९१ थी जो खुद का रोज़गार कर रहे थे यानी सेल्फ एम्प्लॉयड थे। २०१७ में ऐसे लोगों की संख्या ८७२ ही थी।

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आत्महत्या करने वालों में ७५ सरकारी मुलाजिम थे। यह संख्या २०१७ की ६९ की संख्या से कुछ ज़्यादा है। रिपोर्ट बताती है कि आर्थिक बदहाली के चलते ना केवल नौकरीपेशा लोगों ने आत्महत्या का रास्ता चुना बल्कि सरकारी नौकरी से रिटायर हुए लोगों को भी इस रास्ते पर चलने को मजबूर होना पड़ा। और ऐसे लोगों का प्रतिशत कोई कम नहीं है। २०१७ के मुकाबले २०१८ में ऐसे लोगों के प्रतिशत में ११.४ फीसदी का इजाफा हुआ है।

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आत्महत्या की इन घटनाओं की अगर आर्थिक विवेचना की जाये तो यह बात सामने आती है कि २०१८ में आत्महत्या के शिकार ७,७९३ लोगों में से ७३.३ फीसदी सालाना १ लाख रुपये से कम कमा रहे थे वहीं २५.५ फीसदी लोग १ लाख से ५ लाख रुपये कमा रहे थे जबकि ५ से १० लाख कमाने वाले १ फीसदी ही थे और १० लाख से ऊपर कमाने वाले मात्र ०.२ फीसदी थे। रिपोर्ट में एक खास बात ये भी सामने आई कि गुजरात में ५ लाख से ज़्यादा कमाने वालों में आत्महत्या की प्रवृत्ति कम हुयी है। इस आय वर्ग के लोगों के बीच २०१७ में जहाँ १८२ आत्महत्याएं की घटनाएं दर्ज़ की गयीं वहीं २०१८ में ये आंकड़ा घट कर ८१ हो गया।

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