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उत्तराखण्ड के इस दलित गांव को नहीं मिला आज तक किसी सरकारी योजना का लाभ, ग्रामीण बोले दलित हैं इसलिए हो रहा भेदभाव
दलित महिला सुधा देवी कहती हैं, मैं 65 साल की एक गरीब महिला हूँ। न जाने कितनी बार वृद्वावस्था पेंशन का फार्म भर चुकी हूँ। मेरी पेंशन आज तक नहीं लगी, ग्राम प्रधान और ब्लॉक में बैठे अधिकारी बोलते हैं तुमको नहीं मिलेगी पेंशन और फार्म वापस कर देते हैं। ऐसा हमारे साथ हमारी जाति के कारण करते हैं या गरीबी के कारण मैं नहीं जानती...
अल्मोड़ा से विमला की ग्राउंड रिपोर्ट
अल्मोड़ा जिले के सल्ट विधानसभा का सुदूरवर्ती पनूवाघोखन गांव आज भी सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक रूप से अति पिछड़ा गांव है। यहां तकरीबन 45 से 50 परिवार निवास करते हैं।
इस गांव में केवल अनूसूचित जाति के लोग ही रहते हैं। भले ही गांव में जातिगत भेदभाव न हो, लेकिन सरकार और अधिकारियों के द्वारा इनके साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार ही किया जा रहा है। आज भी यहाँ पर सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल रहा है।शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, सडक इन मूलभूत आवश्यकताओं से इन्हें वंचित रखा गया है।
ग्रामीण कहते हैं, भले ही यह गांव दलितों का है, सवर्णों का कोई आधिपत्य नहीं है, मगर सरकार हमारे साथ दोएम दर्जे का व्यवहार ही करती है। केन्द्र और राज्य सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाओं, जो समाज कल्याण विभाग, ब्लॉक स्तर पर और जिला स्तर पर ग्रामीणों, वंचित व गरीब तबके के विकास के लिए की जाती हैं, उन तमाम योजनाओं से हमें वंचित रखा जाता है। यहां के ग्रामीणों को वृद्धावस्था पेंशन, विधवा पेंशन, आवास योजना किसी भी योजना का लाभ नहीं मिल रहा है।
65 वर्षीय सुधा देवी बताती हैं, 'मैं 65 साल की एक गरीब महिला हूँ। न जाने कितनी बार वृद्वावस्था पेंशन का फार्म भर चुकी हूँ। मेरी पेंशन आज तक नहीं लगी, ग्राम प्रधान और ब्लॉक में बैठे अधिकारी बोलते हैं तुमको नहीं मिलेगी पेंशन और फार्म वापस कर देते हैं। ऐसा हमारे साथ हमारी जाति के कारण करते हैं या गरीबी के कारण मैं नहीं जानती।
गांव में ऐसी और सारी महिलाएं हैं जो 60 साल से ऊपर की हैं। उनके साथ भी यही सब हो रहा है, जबकि 1995 में ही वृद्धावस्था पेंशन की शुरुआत हो चुकी है। इस पेंशन का क्रियान्वयन केंद्र सरकार व राज्य सरकार द्वारा मिलकर किया जाता है।
सरकारी की तमाम योजनाओं और विकास के दावों से दूर है उत्तराखण्ड का ये दलित गांव
सरकारी आकड़ों के हिसाब से इस समय देश में 3.5 करोड़ लोगों को इसका लाभ मिल रहा है। केंद्र सरकार की योजना में 3.19 करोड़ और राज्य सरकार की योजना में 28.74 लाख को लाभ मिला है, लेकिन एक छोटे से गांव के लोगों को इसका लाभ नहीं मिल पा रहा।
वहीं विधवा पेंशन के संबंध में गांव की भागुली देवी कहती हैं, मेरे पति को गुजरे 18 साल से ऊपर होने को हैं। दसियों बार फार्म जमा कर दिया है, ब्लॉक जाकर भी देख लिया है, मुझे पेंशन नहीं मिल रही है। मेरे तीन बच्चे ,हैं जिनको मैंने मेहनत, मजदूरी करके पढ़ाया।
भागुली देवी कहती हैं, 'सरकार की तरफ से बेटियों को 12वीं पास करने पर कन्याधन के रूप में पैसा मिलता है, मगर मेरी बेटी ने 12वीं पास की तो जो कन्याधन के रूप में समाज कल्याण विभाग से पैसे मिलते हैं वह भी नहीं मिले। सरकार हमारे गांव में वोट मांगने तो आती ,है जब वोट मिल जाये तब वह भूल जाती है। हमारे पास रहने के लिए पक्का मकान तक नहीं है। बस ऐसे ही गुजर-बसर कर रहे हैं।
भागुली देवी आगे कहती हैं, पता नहीं कब सरकार हमारे गांव का विकास करेगी। विकास करना तो दूर की बात है, कम से कम मुझे विधवा पेंशन तो दे दे।
गौरतलब है कि इस गांव की यह हालत तब है जबकि विधवा पेंशन योजना उत्तराखंड सरकार द्वारा वित्तीय बजट में घोषित की गई है। इस योजना के तहत सरकार विधवाओं को प्रतिमाह 1000 रुपये पेंशन देती है। यह योजना समाज कल्याण विभाग द्वारा संचालित की जाती है।
इस बारे में समाज कल्याण अधिकारी अल्मोड़ा राजीव तिवारी कहते हैं, हम इसकी जाँच करेंगे और आगे की कार्यवाही करेंगे, मगर साथ ही वह यह कहना भी नहीं भूलते कि मुझे नहीं लगता ऐसी कोई समस्या होगी, अगर ऐसी समस्या किसी गांव में होती तो उन्हें इसकी जानकारी जरूर होती।
पनूवाघोखन गांव में रहने वाले लोगों के पास पक्के मकान नहीं हैं, जो हैं वो बहुत जीर्ण-शीर्ण हालत में हैं, जो कभी भी गिर सकते हैं। गांव की लीला देवी बताती हैं, स्वच्छ भारत अभियान के तहत ग्रामीणों के लिए जो शौचालय बनाये जाते हैं, उनका लाभ हमें नहीं मिला। शौचालय के लिए ब्लॉक से 12 हजार रुपये दिये जाते हैं, लेकिन ग्राम प्रधान बोल रहा है कि 3 हजार देंगे, लेकिन वो तीन हजार भी हमें नहीं मिला।
सरकारी की तमाम योजनायेंऔर विकास के दावे सिर्फ सपना हैं पनूवाघोखन के ग्रामीणों के लिए
लीला देवी कहती हैं, इसके बारे में पता करने जब मैं ब्लॉक गयीं तो वहाँ के बीडीओ रवि कुमार सैनी बोलते हैं आपको शौचालय के लिए पैसा मिल चुका है, यहां पर आपके नाम के साथ रिकॉर्ड में दर्ज है। जब मैंने बोला कि मुझे कोई पैसा नहीं मिला तो वो कहते हैं, मुझे नहीं जानकारी कि यह कैसे हुआ। लीला देवी कहती हैं, जब मैं मना करती रही कि मुझे शौचालय का पैसा नहीं मिला तो वीडीओ ने मुझे डांटते हुए वहां से चले जाने को कहा।
गांव की एक और एक ऐसी ही भुक्तभोगी महिला है, जिसको घर नहीं मिल रहा है। ऐसी और महिलायें खष्टी देवी, जयन्ती देवी, पुष्पा देवी, विशना देवी समेत तमाम लोग हैं, जो इस समस्या को झेल रहे हैं।
इस संबंध में जब जनज्वार ने सल्ट ब्लॉक के बीडीओ रवि कुमार सैनी से फोन पर बात की तो पहले तो उन्होंने कहा कि ब्लॉक आके बात करो। फिर यह कहकर फोन काट दिया कि मुझे पता है कि कैसे काम करना है और हम काम कर रहे हैं।
जगदीश कुमार जो गांव के अन्य लोगों में थोड़ा पढ़े-लिखे हैं, कहते हैं हमारे साथ जातिगत भेदभाव के कारण ऐसा होता है। अधिकारी नहीं चाहते कि हम गरीब दलित लोग आगे बढ़े, पढ़ें—लिखें। आज भी हमारे गांव में रोड नहीं है, एएनएम सेन्टर नहीं है, प्राथमिक स्कूल तक नहीं है। कक्षा एक में पढ़ने वाले बच्चों को भी 10-12 किलोमीटर दूर स्कूल जाना पड़ता है।
दलित युवा जगदीश कुमार आगे कहते हैं,हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पता नहीं किस डिजिटल इंडिया की बात करते हैं। ग्राम प्रधान, ब्लॉक में बैठे अधिकारी, ये सभी लोग मिलकर हमारा शोषण कर रहे हैं। प्रधान अनूसूचित जाति का है, पर अन्य अधिकारियों के साथ मिलकर वो भी हम गांव वालों का शोषण ही कर रहा है। और तो और जातिगत भेदभाव के चलते मुझे जनता दरबार में अन्दर तक नहीं जाने दिया गया।