खाकी ने जब मजदूर की पत्नी की अर्थी को कंधा दिया तो बिलख पड़े घरों में बंद लोग
जब वक्त के हाथों लाचार बेबस पति के साथ खाकी वर्दी पहने पुलिसवालों को अर्थी को कंधा देते घरों में बंद बैठे लोगों ने देखा, तो क्या जवान, क्या बूढ़ा, क्या महिला, जिसने भी दिल द्रवित कर देने वाला दृश्य आंखों से देखा वही बिलख पड़ा...'
संजीव कुमार सिंह चौहान
जनज्वार ब्यूरो। सब वक्त वक्त की बात है। जिस पुलिस के देहरी पर पहुंचने पर लोग दरवाजे बंद कर लेते थे, कोरोना के कहर में उसी पुलिस का मानवीय चेहरा देख, लॉकडाउन के चलते घरों में बैठे लोग बिलख भी पड़ रहे हैं। किसी के भी दिल को हिला देने वाला ऐसा ही वाकया सोमवार 18 मई को राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में देखने को मिला। घरों में दुबके बैठे लोगों ने चार पुलिसकर्मियों को एक अर्थी को कंधा देते देखा, तो वे बिलख पड़े।
दिल को झकझोर देने वाला यह वाकया दक्षिणी पूर्वी दिल्ली जिले के जैतपुर थाना क्षेत्र का है। बिना किसी घरेलू-खानदानी रिश्ते के जिन पुलिसकर्मियों ने एक गरीब श्रमिक की बुजुर्ग पत्नी को कंधा दिया, दिल्ली पुलिस के इन जवानों के नाम हैं सिपाही धर्मेंद्र सिंह, राहुल, सुनील और रविकांत। इनको इस नेक कार्य के लिए प्रोत्साहित करने वाले हैं जैतपुर थाने के एसएचओ इंस्पेक्टर आनंद स्वरुप। आनंद स्वरुप दिल्ली पुलिस में 1994 में बहैसियत सब-इंस्पेक्टर भर्ती हुए थे।
डीसीपी दक्षिण पूर्वी जिला आर.पी.मीणा ने इस पूरी घटना की जानकारी दी। उन्होंने कहा, जसपाल सिंह कश्यप करीब 40-50 साल पहले पंजाब से दिल्ली आ गये थे। जसपाल सिंह कश्यप कुछ समय से जैतपुर थाना क्षेत्र में परिवार के साथ रहने पहुंचे थे। परिवार में 26 साल का एक बेटा है जो बेहद कमजोर है। जसपाल की 62 साल की पत्नी सुधा कश्यप बीते अक्टूबर-नवंबर (2019) से गंभीर रूप से बीमार चल रही थीं। बीती रात सुधा की मौत हो गयी।
एसएचओ जैतपुर आनंद स्वरुप ने कहा कि सुधा कश्यप के अंतिम संस्कार में सहयोग के लिए उनके पति ने आसपास के लोगों से गुजारिश की। चूंकि सोशल डिस्टेंसिंग और लॉकडाउन का पालन करना था, इसलिए लोगों ने सुधा कश्यप के अंतिम संस्कार में मदद करने में असमर्थता जाहिर कर दी। चारों ओर से थके हारे और पत्नी की मौत से बेहाल जसपाल सिंह कश्यप थाने आये। तब मैंने थाने से सिपाही धर्मेंद्र सिंह, सुनील, राहुल और रविकांत को मदद के लिए भेजा।
मौके पर पहुंचे दिल्ली पुलिस के जवानों ने देखा कि बुजुर्ग और पत्नी की मौत के सदमे से बेहाल जसपाल की स्थिति अंतिम संस्कार कराने की भी नहीं थी। लिहाजा इन जवानों ने तय किया कि अब वे सिर्फ वर्दी तक की ही जिम्मेदारी नहीं निभायेंगे। उससे आगे भी बहुत कुछ करेंगे। पुलिसकर्मियों ने इंसानियत को आगे रखते हुए खुद ही अर्थी, कफन व अंतिम संस्कार संबंधी बाकी तमाम चीजों का इंतजाम किया।
सुधा कश्यप के अंतिम संस्कार की जब तैयारी पूरी हो गयी, तब उनके पति के सामने दूसरी समस्या आई। अब 'शव-यात्रा' मोलड़बंद शमशान घाट तक कैसे पहुंचाई जाये? न कोई वाहन और लॉकडाउन में कोई घर से बाहर आकर अंतिम यात्रा की रस्म पूरी कराने को भी राजी नहीं। ऐसे में इन्हीं बहादुर सिपाहियों ने फिर एक बार तुरंत जो फैसला लिया, उसने दिल्ली पुलिस के पन्नों में आने वाली पीढ़ियों के लिए एक खूबसूरत इबारत लिख दी।
सिपाही धर्मेंद्र सिंह, राहुल, रविकांत और सुनील ने खुद ही यह सोचकर कंधा देने का निश्चय किया कि, सुधा की जगह अगर उनका अपने कुल-खानदान रिश्ते का कोई होता तो वे क्या करते? इंसानी भावनाओं ने जो कहा, उसके मुताबिक दिल्ली पुलिस के चारों जवान सुधा कश्यप की अर्थी को कंधा देकर खुद ही शमशान घाट (मोलड़बंद, जैतपुर) पहुंच गये। हिंदू रीति रिवाज के मुताबिक, पत्नी की अर्थी को अंतिम यात्रा के वक्त पति द्वारा कंधा देने की रस्म भी दिल्ली पुलिस के यह रणबांकुरे पूरी कराना नहीं भूले। लिहाजा शव-यात्रा में बीच बीच में सुधा के पति जसपाल सिंह कश्यप भी पत्नी की अर्थी को कंधा देते देखे गये।
जब वक्त के हाथों लाचार बेबस पति के साथ खाकी वर्दी पहने पुलिस के जवानों को अर्थी को कंधा देते घरों में बंद बैठे लोगों ने देखा, तो क्या जवान, क्या बूढ़ा, क्या महिला, जिसने भी दिल द्रवित कर देने वाला दृश्य आंखों से देखा वही बिलख पड़ा। मुंह से अल्फाज किसी के नहीं फूट रहे थे, मगर रो सब रहे थे। घरों की खिड़कियों से बाहर सूनी सड़क पर, पुलिस वालों के कंधो पर जा रही एक सुहागिन की अंतिम शव-यात्रा देखकर।