मर्द बिनब्याहे स्पर्म कर सकते हैं डोनेट तो बिनब्याही स्त्री क्यों नहीं बन सकती मां?
आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर यह सवाल बहुत मौजू है कि जब मर्द बिनब्याहे स्पर्म कर सकते हैं डोनेट तो बिनब्याही स्त्री क्यों नहीं बन सकती मां...
जनज्वार। पिछले दिनों फेसबुक पर स्त्री मुद्दों पर सोशल मीडिया के माध्यम से आवाज उठाने वाले गीता यथार्थ ने अपनी एक तस्वीर शेयर की थी, जिसमें वह टॉयलेट में बैठी हैं और दरवाजा पॉट पर बैठने के दौरान आधा खुला रखा है, ताकि वह अपने छोटे बच्चे पर भी नजर रख सके। सोशल मीडिया पर इस फोटो को लेकर खूब हंगामा बरपा था। इस फोटो के बाद तमाम नैतिकताओं के पाठ पढ़ाये जाने लगे। कहा जाने लगा अगर किसी स्त्री के बस में नहीं है कि वह अकेले बच्चे की परवरिश नहीं कर सकती तो बच्चा पैदा करने का कोई हक नहीं। यह भी कि हो सकता है किन्हीं परिस्थितियों में कोई महिला ऐसा कर सकती है, मगर ऐसा बेहूदा तस्वीर कोई सोशल मीडिया पर कैसे शेयर कर सकता है।
अब इसके बाद फेसबुक पर एक नई बहस छिड़ गयी है कि अगर मर्द बिनब्याहे स्पर्म डोनेट कर सकते हैं तो स्त्री बिनब्याही मां क्यों नहीं बन सकती।
फेसबुक पर खुशबू मिश्रा नाम की यूजर ने लिखा है, 'जब मर्द बिन ब्याहे रिश्ता बना रहे और स्पर्म डोनेट कर रहे पैसों के लिए, तो अगर कोई स्त्री बिन ब्याही मां बनना चाहे तो हर्ज़ क्या है।' उनकी इस टिप्पणी के बाद सोशल मीडिया पर कई लोग उनके पक्ष में उतरे हैं तो कई ने गाली-गलौज के साथ तमाम उपाधियों से भी नवाज दिया है कि स्त्री की आजादी के नाम पर र्कुछ भी बकवास न करें।
ट्रोलर्स को जवाब देते हुए खुशबू मिश्रा लिखती हैं, 'मां अकेले काफी होती है बच्चे को नाम से लेकर परवरिश तक देने को। खजुराहो, कामाख्या और काली माता को पूजने के बावजूद तुम किसी महिला को हर रुप में इज्जत नहीं दे सकते तो अपने संस्कार और संस्कृति को खुद ही गाली दे रहे हो। बेटी पैदा करने के बाद एक बेटा पैदा करने और कोख में बेटियों को मार कर बेटा जन्म देने वाले के बच्चे डस्टबिन में मिलते हैं। वैश्यालय में सेठ साहूकार से लेकर मजदूर तक के बच्चे पलते हैं जाओ उनका भला करो। ज्ञान मत दो।'
खुशबू ने आगे कहा है, 'महिलाएं जैसे जैसे अपने फैसले खुद लेने लगेंगी और अपनी आज़ादी अपनी सोच के हिसाब से तय करेंगी वैसे वैसे तुम लोग की जलन बढ़ती रहेगी। जलते रहो इसके सिवा कुछ कर भी नहीं पाओगे हम बदलते रहेंगे।'
इस पर गीता यथार्थ ने टिप्पणी की है, 'और बड़ी बात है कि मां बनकर वो बच्चे को छोड़कर नहीं भागेगी।'
इरफान मशकूर ने टिप्पणी की है, 'औरत को क़ुदरत ने इंसानों को पैदा करने व नई नस्ल को परवान चढ़ाने की सलाहियत दी है इसलिए वह मर्द से बेहतर है। मैं समझता हूँ कि औरत को अपनी ज़िन्दगी अपने ढ़ंग से जीनी चाहिये हर बात में मर्द की नकल करना उसे शोभा नहीं देता।'
अभिनव शुक्ला ने लिखा है, 'ये सब छोड़ो ये बताओ मैडम आपको तो वाशरूम का भी समय नहीं मिलता न, फिर इतने सारे फेसबुक पोस्ट और कमेन्ट करते वक्त बच्चे की देखभाल कौन करता है? मुझे उस बच्चे की बड़ी फ़िक्र है। इस सिंगल मदर के विक्टिम हुड ने बहुत सारे बच्चों के जीवन बर्बाद किए हैं, आपका बेटा वैसे भी पुरुष है, उसे बड़े होने पर आप जैसे तमाम फेमिनिस्टों से गाली सुननी पड़ेगी। दुखद।'
निधि नित्या कहती हैं, पुरुष पैसे लेकर स्पर्म डोनेट कर रहे हैं और महिलाएं सेरोगेसी कर रही हैं। सेरोगेट प्रेग्नेंसी की मेडिकल केयर का फुल एग्रीमेंट, अच्छी खासी रकम और डिलेवरी के बाद एक साल की मेडिकल केयर के एग्रीमेंट के साथ।'
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वो आगे कहती हैं, 'माँ बनकर गर्ल चाइल्ड को छोड़कर चली जाती हैं महिलाएं हॉस्पिटल में, स्टेशन पर या कूड़े में भी फेंककर। हमारे शहर में तो 4 माह की बच्ची को खुद उसकी माँ जीवित जंगल में छोड़ आयी थी जिसे कुत्तों ने नोचकर खाया। उसने ऐसा अपने बेटे की अच्छी देखभाल करने के लिए किया कि उससे दो बच्चे नहीं संभल रहे थे। कोर्ट में मेरे सामने ऐसे बहुत मामले आते हैं जहां माँ बेटे या बेटी को छोड़कर अपने दूसरे रिश्ते में जाना चाहती है। आखिर मां भी एक इंसान है और इंसान बहुत बार स्वार्थी हो जाता है। इसमें अचरज नहीं मुझे। हर बार माँ को ग्लोरीफाई करना अब ओवर रेटेड होता जा रहा है। बेहतर होगा माँ या स्त्री को भी एक इंसान की तरह देखा जाय औऱ उससे भी सामान्य इंसानी व्यवहार की उम्मीद रखी जाए। बजाय उसे देवी और माँ बनाकर महानता का दर्जा देने के। इससे स्त्रियों का जीवन कहीं अधिक सरल हो जाएगा। उनकी गलतियों को भी सामान्य भूल की तरह स्वीकार किया जाने लगेगा। ना कि पाप या अपराध की तरह।'
रूपम बाजपेयी शर्मा कहती हैं, 'माएं भी जाती है बच्चों को छोड़कर और पिता भी...मुझे नहीं लगता कि हर चीज़ में हर बात में पुरुष ही दोषी होता है या बुरा होता है... पिता के लिये भी बच्चे उनकी जान होते हैं...जिन बच्चों के पिता या माँ उन्हें छोड़कर भाग जाते हैं निस्संदेह वो अपनी जबाबदारी से भागते हैं। मैं फिर से यही कहूँगी की गलत, गलत होता है फिर चाहे वो औरत हो या आदमी...'
आलोक पाठक ने चुटकी ली है, 'देखना ये महिला एक दिन कहेगी जब औरत प्रेग्नेंट हो सकती है फिर मर्द क्यों नहीं...और इतना कहते ही यह अन्न जल त्यागकर धरने पर बैठ जाएगी...'
परवेज कुरैशी कहते हैं, 'बहुत से पति पत्नी में सम्बन्ध विच्छेद हो जाने पर या पत्नी के निधन हो जाने पर पति भी अपने बच्चों को अकेले पाल लेते हैं और कई बार स्त्रियां अपने प्रेमी के चक्कर मे आकर अपने बच्चों का कत्ल भी कर देती हैं। कई स्त्रियां पति से सम्बन्ध खत्म होने या पति के गुज़र जाने पर बच्चों को अकेला पाल लेती हैं। स्त्री पुरुष दोनों बच्चों को पाल लेते हैं हैं केवल अकेले स्त्री ही नही पालती। अब आप टॉयलेट का गेट खोले या बन्द करें वो आपका निजी मामला हैं, लेकिन वो पिक सोशल मीडिया पर अपलोड करके आप जो लाइम लाइट में आना चाहती थी आप आ चुकीं, बहुत बधाई आप अपने मकसद में कामयाब हो गईं।'
संतोष विंद ने सवाल उठाया है, खुशबू मैडम और यथार्थ मैडम जरा उन महिलाओं के बारे में भी बात करो जो मजदूर हैं, और अकेली हैं फिर भी अपने बच्चों को बखूबी संभालती हैं और फोटो भी नहीं छापती कभी आओ हमारे गाँव दिखाते हैं।'
हरिओम मीणा ने लिखा है, 'अपने बदन को बिस्तर पर सजा के प्रेग्नेंट होने वाली लड़कियां अक्सर डस्टबिन में बच्चे फेंकती हैं, वो प्रजाति वामपंथी और खुले विचार वाली लड़कियां ही होती हैं। कुछ मिला कर तेरे जैसे बच्चे फेंकती रहती हैं।'
अनु क्षेत्री कहती हैं, 'आजकल पुरुष औरतों को गलत साबित करने में लगा हुआ है और औरत पुरुष को। अपने अपने गिरेबान में झाँक लो सब ठीक होगा, ये नयी ही लड़ाई शुरू हों चुकी है औरत और मर्द के नाम पर।'
कुलदीप सिंह ने कहा है, 'मर्द क्या कर रहे हैं, क्या नही्ं इस पर आपका फोकस नही होना चाहिए? एक अविवाहित बालिग स्त्री के लिए कोई कानूनी अड़चन नहीं है माँ बनने के लिए। पर जैविक मां बनने लिए स्पर्म की जरूरत होगी, जिनको पुरुषों की शक्ल अच्छी नहीं लगती उनके लिए डोनर ठीक रहेगा।'
मोइन शेख ने लिखा है, 'पिछले कुछ दिनों से भसड़बाजी का अड्डा बन गया है आपका वाल। खैर, सिर्फ माँ ही नहीं बाप को भी बच्चों की परवरिश करने के लिये बहुत कुर्बानी देनी पड़ती है। पर ये आप नही समझेंगी। हर माँ आपकी तरह जॉब करने वाली नही होती। ज्यादातर घरेलू महिलाएं हैं भारत में, जिनका पति यदि न कमाए तो घर चलना और बच्चों की परवरिश बहुत मुश्किल है।'
विशाल प्रताप सिंह ने चुटकी ली है, 'मुझे बड़ा दुःख होता है जब मर्द मर्डर इत्यादि करते हैं और औरत उस अनुपात में मर्डर नहीं कर पातीं। नारियों का इतना शोषण हुआ है के वो पुरुषों के बराबर अपराध नहीं करती, क्या ये patriarchy नहीं है? स्त्रियों को भी बढ़-चढ़ के मर्डर चोरी डकैती पुरुषों के बराबर करनी चाहिए, तभी समतामूलक समाज बनेगा। जय नारीवाद।'
एक यूजर ने टिप्पणी की है, 'आपके लेगा कौन मैडम? बच्चे भी वामी ओर मंदबुद्धि करवाने हैं क्या लोगों को, आपने शुक्राणु तो लिखा लेकिन वो मेल के अधिकार क्षेत्र में आता है तो आपको दीदी अंडे लिखना चाहिए था, बस मेरी जानकारी में कोई अगर आपको अंडे बेचने से रोक रहा है तो वो कानूनन पाप का भागी है, कानूनन आप बेच भी सकती हैं और कानून ओर पेपरवर्क के बाद जिसको चाहें उसे सिरींज से निस्तारित भी करवा सकती हैं।'
प्यारे लाल ने कमेंट किया है, 'प्यारे लाल कोई हर्ज नहीं जी... कोई हर्ज नहीं... हहहहह हहहहह... लेकिन ये खुशबू हमारी माँ बहन बेटी बहू बुआ भाभी मौसी चाची आदि से नहीं आनी चाहिए... होल सेल कारोबारियों के दल्ला अल्ला की बनाई चपटी चकोर धरती पर यत्रतत्र बिखरी ऐरी गैरी नत्थू खैरी खुशबुओं की कमी नहीं... कहीं भी नाक घुसेड़ कर सूंघ लो...और उसे फोटोग्राफर दे दो...'