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अंधविश्वास

डायन के पास हजारों को मारने की असीमित शक्ति तो जब किसी महिला को डायन घोषित कर मारते हैं क्यों नहीं बचा पाती खुद की जान?

Janjwar Desk
12 Feb 2023 4:49 PM GMT
डायन के पास हजारों को मारने की असीमित शक्ति तो जब किसी महिला को डायन घोषित कर मारते हैं क्यों नहीं बचा पाती खुद की जान?
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एक और बात सुनने में आती है कि डायन से सिर्फ तांत्रिक ही मुकाबला कर सकता है, कहते हैं कि तांत्रिक के पास भी बड़ी-बड़ी शक्तियां होती हैं, वह कितनी भी बीमारी हो एक ही बार में ठीक कर देता है। तब मैं ये पूछता हूं कि हमारे देश में और छत्तीसगढ़ में इतने अस्पताल और डॉक्टरों की बाढ़ कैसे आ गई है...

गनपत लाल की महत्वपूर्ण टिप्पणी

Superstition and Society : गांव और शहर, अनपढ़ और पढ़े-लिखे व्यक्ति सब लोग डायन और भूत के भय के कारण थरथर कापते रहते हैं। जब हम छत्तीसगढ़ की बात करते हैं तो यहां के लोग डायन और भूत की कहानी सुनाने लग जाते हैं। और डर के कारण अच्छे-अच्छे लोग के पसीने निकल जाते हैं। कोई झूठी बात को बार-बार और जगह-जगह बोलने से वे बातें सच्ची जैसी लगती हैं। अभी तक मैं जितनी भी बात सुना हूं, उसके लिए मुझे सख्त प्रमाण नहीं मिला। सब हवा-हवाई बातें बताते हैं।

गांव के कुछ ओझा-तांत्रिक (बइगा-गुनिया) से भी बातचीत की, फिर वे लोग भी गोल-मटोल और उल्टा-पुलटा ढंग से जवाब दिए। हमारे पढ़े-लिखे समाज में आज भी महिलाओं को डायन के नाम पर लगातार मारने की घटना घोर अंधविश्वास को दिखाती है। सोचने की बात यह है कि आज पढ़े-लिखे व्यक्ति भी गांव के अनपढ़ व्यक्ति की काल्पनिक कहानी को मानकर उससे भी आगे निकल गयी हैं। जबकि पढ़े-लिखे व्यक्ति को चाहिए कि अंधविश्वास के कुंआ में डूबते हुए जनमानस को निकाले। लेकिन क्या करें ये लोग अंधविश्वास और झूठी बातों के तूफान में उड़ रहे हैं।

छोटी सी उम्र से सुनते आ रहा हूं कि डायन (टोनही) के पास ऐसी शक्ति होती है कि वे हजारों लोगों को एक अकेले मार सकती है। आग और पानी भी उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकते। तब मैं ये पूछना चाहता हूं कि गांव में कोई महिला को डायन कहकर लोग मारते हैं, तब उस समय वह अपनी जान को क्यों नहीं बचा पाती। अपनी जान को नहीं बचा सकती वह बेचारी क्या दूसरे की जान ले सकती है और दूसरे के अहित कर सकती है।

एक और बात सुनने में आती है कि डायन से सिर्फ तांत्रिक ही मुकाबला कर सकता है, कहते हैं कि तांत्रिक के पास भी बड़ी-बड़ी शक्तियां होती हैं। वह कितनी भी बीमारी हो एक ही बार में ठीक कर देता है। तब मैं ये पूछता हूं कि हमारे देश में और छत्तीसगढ़ में इतने अस्पताल और डॉक्टरों की बाढ़ कैसे आ गई है।

तांत्रिक से बीमारियों का इलाज होता तो अस्पताल में भीड़ नहीं होती

गांव के तांत्रिक के पास सभी बीमारियों का इलाज होता तो ये भीड़ अस्पताल में नहीं दिखती। जो तांत्रिक सभी बीमारियों और समस्या के निपटारे की बात करते हैं वे खुद डॉक्टर के अस्पताल में क्यों इलाज कराते हैं, उसके पास तो सभी बीमारियों से निपटने की शक्ति है, तो खुद का इलाज क्यों नहीं करते। जादू-टोना, ओझा-तांत्रिक समाज के अंदर समा गए हैं जो समाज के लिए बहुत खतरनाक है। जब तक इस बीमारी का नाश नहीं होता है, तब तक लोग डर-डर कर मरते रहेंगे।

गांव में आज भी कोई व्यक्ति को बुखार और दूसरी बीमारी होती है तो वे डॉक्टर को नहीं दिखा कर ओझा-तांत्रिक के पास जाते हैं। भले उसकी जान चली जाए। एक मेरे करीबी के पढ़े-लिखे व्यक्ति जिसकी बच्ची के शरीर में खाज-खुजली हो गई थी, वे तांत्रिक के पास झाड़-फूंक करवाता था। इस ओझा-तांत्रिक के चक्कर में डॉक्टरी इलाज नहीं हो पाया तो उसकी बच्ची की खुजली शरीर में फैलने लगी तब मैं इसको कहा कि इसका इलाज कोई चर्म रोग विशेषज्ञ से कराए, तब वे मेरी बात को बहुत मुश्किल से माना और डॉक्टर के पास ले गए तब जाकर वह बच्ची ठीक हुई।

सरकार आंख बंदकर देख रही तमाशा

अब जो कॉलेज और यूनिवर्सिटी में पढ़े हैं और जो पढ़-पढ़ा रहे हैं। वे भी ऐसे झाड़-फूंक में विश्वास करते हैं तो गांव के साधारण व्यक्ति से क्या उम्मीद कर सकते हैं। गांव के अनपढ़ लोग तो ये पढ़े-लिखे (डिग्रीधारी) लोगों को देखकर उसके पीछे-पीछे जाते हैं। इस प्रकार के समाज में अंधविश्वास को फैलाने में ये पढ़े-लिखे अंधविश्वासी लोग का बड़ा हाथ है। वैसे अगर तांत्रिक की बात करें तो ये लोग बीमार व्यक्ति को टोटके और भूत-प्रेत, डायन, प्रेत के भय दिखा के पैसा लूटता है। ऐसे अंधविश्वास फैलाने वालों पर कठोर कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए। जिससे हमारा समाज को अंधविश्वास की दलदल से बचाया जा सके, लेकिन सरकार आंख बंदकर तमाशा देख रही है।

बचपन में सुनी हुई काल्पनिक कहानियां कोमल मन में डालती है खतरनाक प्रभाव

जानकार लोग कहते हैं कि बचपन में सुनी हुई काल्पनिक कहानियां बच्चों के कोमल मन में खतरनाक प्रभाव डालती है। जिससे वे व्यक्ति जीवन भर नहीं निकल पाता है। मनुष्य बच्चे के जन्म होते ही उसके गले पर ताबीज और हाथ में काला धागा, यहां तक के उसके पैर में भी काला धागा बांध देते हैं। ये अंधविश्वास के धागे फिर जीवन भर नहीं छूटते। जब बच्चे अपने माता-पिता से पूछते हैं कि ये धागे और ताबीज-कंडा को किसलिए पहने, तब वे बच्चे को डांटकर चुप करा देते हैं। नहीं तो तरह-तरह के प्रेत और डायन की कहानियां सुनाकर बच्चे का मनोबल गिराया जाता है, जो उस बच्चे की उम्रभर कष्ट देता है।

ऐसे में कैसे विज्ञान को पढ़ और समझ पाएंगे बच्चे

जब वे बच्चे जानने-समझने के लायक बड़े हो जाते हैं,तब भी से वे वैज्ञानिक सोच को नहीं अपना सकता और अंधविश्वास की बेड़ी में बंधे रहते हैं। अब सोचने वाली बात यह है कि जो बच्चे विज्ञान और गणित की पढ़ाई करते हैं, वे भी मंत्र-तंत्र, भूत-प्रेत, डायन जैसी चीजों पर विश्वास करते हैं और ताबीज-कंडा लटकाकर घूमते हैं। तब उस बच्चे पर मुझे तरस आता है कि ये क्या विज्ञान को समझ पाएगा और क्या मिसाइल और विज्ञान के क्षेत्र में खोज कर पाएगा और क्या डॉक्टर बनकर मरीज को बचा पाएगा? अब देश-समाज को बचाना है तो अपने बच्चे को वैज्ञानिक और प्रगतिशील विचार को बताएं और सिखाएं। काल्पनिक बातों और अंधविश्वासों का खुलकर विरोध करें, तब हमारी आने वाली पीढ़ी बच पाएगी।

(मूल रूप से छत्तीसगढ़ी में लिखे इस लेख का हिंदी अनुवाद मनोवैज्ञानिक टिकेश कुमार ने किया है।)

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