जम्मू कश्मीर के डोडा में आतंकी मुठभेड़ में 4 जवान शहीद, राहुल बोले BJP की गलत नीतियों का खामियाज़ा भुगत रहे हमारे जवान और उनके परिवार
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4 soldiers martyred in terrorist encounter in Doda : आतंकवाद प्रभावित राज्यों में शुमार जम्मू-कश्मीर से फिर से एक बार एक दिल दहलाने वाली खबर आयी हैं। खबरों के मुताबिक कल 15 जुलाई को जम्मू कश्मीर के डोडा जिले के एक जंगली क्षेत्र में आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ में 4 जवान शहीद हो गये। शहीदों में एक सैन्य अधिकारी समेत 4 सुरक्षाकर्मी शामिल हैं। सेना द्वारा मीडिया को दिये बयान के मुताबिक राष्ट्रीय राइफल्स और जम्मू-कश्मीर पुलिस के विशेष अभियान समूह के जवानों ने कल 15 जुलाई की रात करीब पौने आठ बजे देसा वन क्षेत्र के धारी गोटे उरबागी में संयुक्त घेराबंदी और तलाशी अभियान शुरू किया, जिसके बाद मुठभेड़ शुरू हुई। 20 मिनट से अधिक समय तक चली गोलीबारी में एक अधिकारी सहित चार सैन्यकर्मी और एक पुलिसकर्मी गंभीर रूप से घायल हो गए। घायलों को अस्पताल ले जाया गया था, जहां उनकी हालत गंभीर थी और अब इनमें से आज 16 जुलाई को चार जवानों शहीद हो गये हैं।
पिछले कुछ समय से आतंकी घटनाओं में हमारे कई जवान शहीद हो गये हैं। ऐसी घटनाओं पर सवाल उठाते हुए नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने अपने एक्स एकाउंट पर लिखा है, 'आज जम्मू कश्मीर में फिर से एक आतंकी मुठभेड़ में हमारे जवान शहीद हो गए। शहीदों को विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए शोक संतप्त परिजनों को गहरी संवेदनाएं व्यक्त करता हूं। एक के बाद एक ऐसी भयानक घटनाएं बेहद दुखद और चिंताजनक हैं।'
राहुल गांधी आगे लिखते हैं, 'लगातार हो रहे ये आतंकी हमले जम्मू कश्मीर की जर्जर स्थिति बयान कर रहे हैं। भाजपा की गलत नीतियों का खामियाज़ा हमारे जवान और उनके परिवार भुगत रहे हैं। हर देशभक्त भारतीय की यह मांग है कि सरकार बार-बार हो रही सुरक्षा चूकों की पूरी जवाबदेही लेकर देश और जवानों के गुनहगारों पर कड़ी से कड़ी कार्रवाई करे। दुख की इस घड़ी में पूरा देश आतंकवाद के खिलाफ एकजुटता से खड़ा है।'
इस घटना के बारे में सेना की तरफ से जो जानकारी दी गयी है उसके मुताबिक डोडा के देसा इलाके में आतंकियों के होने की खबर स्थानीय पुलिस को मिली थी, जिसके बाद स्थानीय पुलिस के साथ मिलकर सेना ने इस इलाके में सर्च ऑपरेशन शुरू कियाह, जहां आतंकी पहले से आतंकी लगाकर बैठे थे। आतंकियों ने सुरक्षाबलों के जवानों पर फायरिंग कर दी, जिसमें 4 जवान शहीद हो गए। सेना की तरफ से दिये गये बयान के मुताबिक, लगभग 25 आतंकियों का ग्रुप इस समय घाटी में मौजूद है, जो हमलों को अंजाम दे रहा है। ये पाकिस्तान समर्थित आतंकी है, जो नाम बदलकर घाटी से ऑपरेट हो रहे हैं।
वहीं जवानों की शहादत पर प्रियंका गांधी भी मोदी सरकार पर हमलावर होते हुए अपने एक्स एकाउंट पर लिखती हैं, 'जम्मू-कश्मीर में 4 जवानों की शहादत पर पूरा देश दुखी है और एकजुटता से आतंकवाद के खिलाफ खड़ा है। लेकिन लगातार बढ़ते आतंकवादी हमले गंभीर सवाल खड़े करते हैं। क्या देश के राजनीतिक नेतृत्व की भूमिका सिर्फ इतनी होनी चाहिए कि हर शहादत पर दुख जताकर मौन हो जाएं? पिछले 78 दिन में जम्मू-कश्मीर में 11 आतंकवादी हमले हो चुके हैं। इन हमलों में सेना और पुलिस के 13 जवान शहीद हुए। 9 जून को एक यात्री बस पर हुए हमले में 9 श्रद्धालु मारे गए। ये हमले और हमारे सैनिकों की शहादतें रोकने के लिए सरकार कूटनीतिक-रणनीतिक मोर्चे पर क्या उपाय कर रही है? कभी नोटबंदी, कभी अनुच्छेद 370 के बहाने आतंकवाद को नेस्तनाबूद करने के फर्जी दावे की कीमत हमारे जवान अपनी जान देकर चुका रहे हैं। हम कब तक अपने शहीदों की लाशें गिनते रहेंगे?'
पिछले लगभग सालभर से आतंकियों ने जम्मू को अपना निशाना बनाना शुरू किया है। जहां पहले कश्मीर में ज्यादातर आतंकी घटनाओं को अंजाम दिया जाता है, वही अब जम्मू में ज्यादा आतंकी घटनायें सामने आ रही हैं। पिछले एक माह में सेना पर जम्मू-कश्मीर में आतंकियों द्वारा किया गया यह 9वां बड़ा हमला है। जहां वर्ष 2000 में यहां आतंकवाद लगभग खत्म हो गया है, माना जा रहा था, अब फिर से यहां एक बड़ा आतंकी नेटवर्क बन चुका है। चिनार वेली रीजन, जिसमें डोडा, किश्तवाड़, रियासी और कठुआ जिले शामिल हैं, में आतंकी नेटवर्क बहुत ज्यादा सक्रिय है।
वहीं जम्मू कश्मीर में बढ़ती आतंकी घटनाओं पर राज्य के डीजीपी ने एक बड़ा बयान जारी किया है, जिसके बाद राजनीतिक गलियारों में सनसनी मच गयी है। डीजीपी आरआर स्वैन ने दावा किया है कि स्वैन ने कहा कि घाटी में आतंकवादियों के मारे जाने पर उनके परिवारों के प्रति हमदर्दी दिखाना न्यू नॉर्मल का हिस्सा है। राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि आतंकियों के घर जाते हैं और सहानुभूति जताते हैं। घाटी में तथाकथित मुख्यधारा या क्षेत्रीय राजनीति की बदौलत पाकिस्तान ने नागरिक समाज के सभी महत्वपूर्ण पहलुओं में सफलतापूर्वक घुसपैठ की है। इसके पर्याप्त सबूत भी हैं। इन्होंने अपनी चालाकी से यहां के आम लोगों और सुरक्षाककर्मियों दोनों ही हैरान, भयभीत और भ्रमित किया। मारे गए आतंकवादियों के घर जाना और सार्वजनिक रूप से सहानुभूति व्यक्त करना सामान्य है। जब आतंकवाद में नए भर्ती होने वालों को खत्म करने की अनुमति दी गई तो इन्होंने मौन रूप से प्रोत्साहित किया गया। ऐसा करने वालों और फंडिंग की व्यवस्था करने वालों की कभी जांच नहीं की गई है।