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अंधविश्वास

भारत में अंधविश्वास के खिलाफ लड़ाई समाज सुधार की सबसे बड़ी जिम्मेदारी

Janjwar Desk
29 May 2021 2:20 PM GMT
भारत में अंधविश्वास के खिलाफ लड़ाई समाज सुधार की सबसे बड़ी जिम्मेदारी
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(उच्च शिक्षित और विकसित लोग भी सिर्फ उनके बारे में उतना ही देखते हैं जितना धर्म के दुकानदार खुद उन्हें दिखाते हैं)

सदियों से धर्म के दुकानदारों को अपनी पोल खुलने का खतरा बराबर बना रहता है। वे यह भी जानते हैं कि अगर भोली भाली जनता ने जागरूक होकर अपने दिमाग के दरवाजे खोल लिए तो उनकी दुकानदारी बंद हो जाएगी इसलिए वे जनता को जगाने वालों को हमेशा अपना दुश्मन समझते हैं....

वरिष्ठ पत्रकार वीरेंद्र पाल का विश्लेषण

जनज्वार। हमारे देश में धर्म व अंधविश्वासों का साथ चोली दामन की तरह है। उनके बीच फर्क की लकीर अब बेहद महीन व धुंधली सी हो गई है, अंधभक्ति के खिलाफ बोलना भी सामूहिक जुर्म करने वालों के खिलाफ जैसा जोखिम भरा काम है। हमारे देश में पढ़े लिखे लोग भी तकदीर संभालने के लिए अंगूठी पहन लेते हैं। शराब के ठेके व बार उद्घाटन के मौके पर धर्मगुरु बुला लिए जाते हैं और वह अपने धर्मग्रंथ समेत आकर पाठ करके दान दक्षिणा लेकर चले जाते हैं।
कुछ साल पहले चंडीगढ़ में बार के उद्घाटन समारोह के बाद लोगों को सूचना मिली कि धर्म ग्रंथ शराबखाने में रखा है, उस पर वहां बड़ा तमाशा मच गया बाद में माफी मांगने पर मामला शांत हुआ। धर्म के इन फरेबी दुकानदारों द्वारा धार्मिक कर्मकांडो के जरिए धर्म का ऐसा विकृत स्वरूप प्रदर्शित करते हैं,और हमारा अंधभक्त समाज जिसमें शिक्षित धनवान प्रशासनिक अधिकारी और यहां तक कि वैज्ञानिक भी शामिल हैं उसे ही कर्मकांड मान लेता है। ऐसी धार्मिकता किस काम की है जो बुराई का साथ दें।

सच को नजरअंदाज और अंधविश्वास को बढ़ावा

धर्म की दुकानदारी करने वाले पंडित पुरोहित यह नहीं देखते कि वह किस के बुलावे पर कहां और क्या करने जा रहे हैं उन्हें सिर्फ अपनी दान-दक्षिणा झटक कर जेब गर्म करने से मतलब होता है। धर्म के दुकानदार सत्य व अहिंसा की दुहाई तो देते हैं लेकिन सिर्फ दिखावे के लिए, उनकी बुनियाद तो गढ़े हुए भगवान के झूठ पर टिकी रहती है अपने मतलब के लिए तो वे हिंसा करने से भी बाज नहीं आते हैं इसलिए आए दिन बहुत ही चौंकाने वाली घटनाएं मीडिया में सुर्खियां बनती रहती है।

सदियों से धर्म के दुकानदारों को अपनी पोल खुलने का खतरा बराबर बना रहता है। वे यह भी जानते हैं कि अगर भोली भाली जनता ने जागरूक होकर अपने दिमाग के दरवाजे खोल लिए तो उनकी दुकानदारी बंद हो जाएगी इसलिए वे जनता को जगाने वालों को हमेशा अपना दुश्मन समझते हैं,ऐसे लोगों को भी अधर्मी बता कर वे लोगों को उकसाते हैं साथ ही उनके गुरगे अंधविश्वासों की पोल खोलने वालों पर जानलेवा हमले भी करते रहते हैं मामला लाखों का नहीं अरबों का है सारे धर्म दुनिया भर में एक ही थैली के चट्टे बट्टे हैं।

दुनिया भर में जुल्म और हिंसा की इंतिहा

धर्म के नाम पर मौत के घाट उतारना नई बात नहीं है। भारत में आसाराम केस में छ: गवाह जान गवा चुके हैं धर्म की खिलाफत में 5 फरवरी 2015 को कोल्हापुर महाराष्ट्र के गोविंद पंसारे की हत्या भी हुई थी। गोविंद पंसारे के हत्यारों की हिट लिस्ट में एक नाम मराठी पत्रकार निखिल वागले का भी था।

उसने साल 2011 में अंधविश्वास उन्मूलन बिल पर एक टेलीविजन शो किया था जिसमें तर्क से झुंझलाकर एक कट्टरपंथी प्रोग्राम के बीच में उठकर चला गया था। तब से इस पत्रकार को धमकियां मिलने लगी। यूरोप में गैलीलियो, कोपरनिकस और ब्रूनो जैसे महान वैज्ञानिकों की हत्या हुई क्योंकि उनकी खरी-खरी सच्ची बातें धर्म के दुकानदारों के गले नहीं उतरती थी।

इस्लामिक कट्टरपंथी सामूहिक नरसंहार करते हैं ताकि लोग दहशत में रहे व मजहब के नाम पर फैलाए गए उनके झूठ से पर्दा उठाने की हिम्मत ना करें।

महाराष्ट्र के मशहूर लेखक डॉक्टर नरेंद्र दाभोलकर अपनी कलम से 30 वर्ष तक धार्मिक अंधविश्वास के खिलाफ उन्होंने मराठी भाषा में अंधविश्वास पर किताब लिखी। उन्होंने एक समिति भी बनाई इस समिति के जरिए उन्होंने लोगों को जागरूक करने के लिए बड़ा ही जबरदस्त व कामयाब आंदोलन चलाया था।

इस वजह से धर्म के दुकानदारों को उनसे खतरा पैदा हो गया था और 20 अगस्त 2013 को गोली मारकर उनकी हत्या कर दी गई। एक और धर्म का जालिम दुकानदार गुरमीत राम रहीम अपनी खिलाफत करने वालों को मरवा कर जमीन में गढ़वा कर ऊपर से पेड़ लगवा देता था।

इस तरह धर्म के नाम पर खतरनाक तत्वों का गुलाम तंत्र तैयार करने वाले यह धर्म के दुकानदार बेहद जालिम होते हैं वे चाहते हैं कि लोग उनकी तस्वीर का सिर्फ एक ही रूप देखें बहस ना करें उनका कहा व उनके नियम माने, सच बोलने पर धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के मामले दर्ज करा दिए जाते हैं।

उच्च शिक्षित और विकसित लोग भी सिर्फ उनके बारे में उतना ही देखते हैं जितना धर्म के दुकानदार खुद उन्हें दिखाते हैं, इससे आगे जाकर सोचने व बोलने वाले को बुरा व नास्तिक बता दिया जाता है। ऐसी बहुत सी तरकीबें चलाक लोगों ने अपने हक में इजाद कर रखी हैं ताकि धर्म की अफीम पीकर लोगों का दिमाग कुंद रहे, वह उनके चंगुल में फंसे रहे।

ऐसे लोग दिन रात धर्म के नाम पर लूट कर अकूत धन-दौलत इकट्ठी करने में लगे रहते हैं बेहिसाब चढ़ावे को हथियाने हड़पने, गद्दी के वारिस बनने के लिए लड़ाई झगड़े मुकदमेबाजी व खून खराबा करते हैं साथ ही अपनी खिलाफत करने वालों को खत्म करने के लिए वे मरने मारने तक को तैयार रहते हैं।

यह भी भारत का दुर्भाग्य है कि ईशनिंदा के कानून अब मर से गए हैं लेकिन फिर भी धर्म के दलालों को शिकायत करने से तो कोई रोक नहीं सकता एक शिकायत के बाद अदालतों में पेशियों का लंबा सिलसिला चलता है।

यह बात दीगर है कि सब देख सुन कर भी लोगों की आंखें नहीं खुलती है वह धर्म की आड़ में तिजारत करने वालों के झांसे में आ ही जाते है। मंगलयान छोड़ने से पहले इसरो के आला अफसर वैज्ञानिक तिरुपति मंदिर जाकर कामयाबी के लिए प्रार्थना करते हैं डॉक्टर इंजीनियर तरक्की के लिए वास्तु के नाम पर फेरबदल करा लेते हैं दुखों से छुटकारा पाने के लिए औरतें बाबाओं के पास चली जाती है जहां चढ़ावा चढ़ाती हैं और उनके झांसे में आकर आबरु तक गवां देती हैं।

आज जरूरत है समाज का उच्च शिक्षित वर्ग ,प्रशासनिक अधिकारी, उधमी, वैज्ञानिक इंजीनियर, चिकित्सक, प्रोफेसर,लेखक, फिल्ममेकर्स, मीडिया, पत्रकार सभी आगे बढ़कर देश की अल्प शिक्षित जनता को धर्म के इन पाखंडी दुकानदारों के फरेब से बचाव संबंधित जागरूकता अभियान के पहल की।

देश के संविधान में मूल कर्तव्य के तहत लिखा गया है कि सभी नागरिकों को वैज्ञानिक नजरियों को बढ़ावा देना चाहिए इसलिए हम सब का फर्ज भी यही है कि बिना डरे सच व तर्क का साथ दें , सभी बातों को विज्ञान की कसौटी पर कसें और धर्म के दुकानदारों का भंडाफोड़ करें। धर्म की दुकानदारी कर रहे मक्कार अभी भी मजे से अपना धंधा चला रहे हैं उनका राजपाट अभी तो कहीं नहीं जाता दिख रहा है।

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