बढ़ता जा रहा पीएम मोदी का आत्मनिर्भरता ज्ञान और डूबती जा रही है अर्थव्यवस्था
Dictionary of Martyrs of India’s Freedom Struggle (1857-1947) किताब पर मची रार
पढ़िये वरिष्ठ लेखक महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण कि वो क्यों कह रहे हैं, जब पीएम मोदी और उनकी सरकार गरीबों की बात करे तो समझ जाइये तब अडानी-अंबानी जैसे गरीबों को पहुंच रहा है फायदा...
इस कोविड 19 के दौर में जब देश की जीडीपी महासागर की गहराइयों में गोते लगा रही है, तब प्रधानमंत्री जी, वित्त मंत्री और दूसरे मंत्री पूरी तरह खामोश हैं, या फिर नई शिक्षा नीति पर प्रवचन दे रहे हैं।
करोड़ों लोग बेरोजगार हो गए, करोड़ों का वेतन कम हो गया, अनेक उद्योग बंद हो गए, सर्विस सेक्टर डूब रहा है, लोग परेशान होकर आत्महत्याएं कर रहे हैं – पर इसी दौर में अडानी नए-नए क्षेत्र में कूद रहे हैं और मुकेश अम्बानी दुनिया के पांचवें सबसे धनी व्यक्ति बन गए।
यह पहला मौका नहीं है, जब देश की डूबती अर्थव्यवस्था के बीच अडानी और अम्बानी की संपत्ति बढ़ रही हो, बल्कि हरेक बार यही होता है। इसीलिए, जब प्रधानमंत्री या फिर उनके मंत्री-संतरी जब भी बार-बार गरीबों की बात करते हैं तब समझ जाइए कि इस वक्त अडानी-अम्बानी सरीखे गरीबों को फायदा पहुंचाया जा रहा है।
मोदी जी तो उदाहरण भी मुकेश अम्बानी का ही देते हैं। हिन्दुस्तान टाइम्स में 9 अप्रैल 2015 को प्रकाशित इंटरव्यू में उन्होंने कहा था, 'अब रेड टेप नहीं होना चाहिए मतलब मुकेश अम्बानी के लिए रेड टेप न हो और एक कॉमन मैंन के लिए रेड टेप हो – वैसा नहीं चल सकता।'
वर्ष 2014 के चुनाव जीतने के लगभग डेढ़ वर्ष बाद प्रधानमंत्री जी ने सीएनएन न्यूज़ 18 को एक इंटरव्यू दिया था, जिसे सभी समाचारपत्रों ने लगभग पूरे पृष्ठ पर प्रमुखता से प्रकाशित किया था। इसमें उन्होंने कहा था, "आप 2014 में जो मुझे अर्थव्यवस्था मिली उसपर यकीन भी नहीं कर सकते। उसकी हालत कल्पना से भी बदतर थी और यदि इसे उजागर किया जाता तो पूरे देश में खलबली मच जाती। एक राजनीतिज्ञ के अनुसार मुझे देश को यह स्थिति बतानी चाहिए थी, पर राष्ट्रीय हित में यह था कि इस बदहाली को उजागर नहीं किये जाए, और मैंने राष्ट्रीय हित को चुना और उस अर्थव्यवस्था पर कोई श्वेतपत्र प्रकाशित नहीं किया गया।"
जाहिर है, वर्ष 2014 की अर्थव्यवस्था पर प्रधानमंत्री ने बिना किसी सबूत के आक्षेप लगा दिया, और उनके भक्तों की फ़ौज ने उसे सही मान लिया। किसी भी देश की अर्थव्यवस्था की हालत देश चाहे या न चाहे पर विश्व बैंक, एशियन डेवलपमेंट बैंक, आईएमऍफ़, वर्ल्ड इकनोमिक फोरम आयर सभी रेटिंग एजेसियाँ लगातार उजागर करती हैं और अपने आकलन सार्वजनिक करती रहतीं हैं।
दिलचस्प तथ्य यह है कि 2014 की जिस अर्थव्यवस्था का जिक्र रहस्यमय अंदाज में बिना सबूतों के मोदी जी अपने इंटरव्यू में कर रहे थे, उसका जिक्र किसी बैंक या फिर रेटिंग एजेंसी की रिपोर्ट में नहीं मिलता। इस समय जब देश-विदेश के सभी वित्तीय संस्थान देश की डूबती अर्थव्यवस्था की चर्चा कर रहे हैं, तब प्रधानमंत्री जी खामोश हैं और नई शिखा नीति से न्यू इंडिया और आत्मनिर्भर भारत गढ़ रहे हैं।
वर्ष 2016 से लगातार वर्ष 2024 तक भारतीय अर्थव्यवस्था को 5 ख़रब तक पहुंचाने के सपने प्रधानमंत्री समेत सभी बड़े मंत्री लोगों को दिखा रहे थे। आज के संदर्भ में अर्थव्यवस्था का आकार महज 2.6 ख़रब है, यानि अगले चार वर्षों में इसे लगभग दुगना करना होगा। पर, क्या देश की वर्तमान अर्थव्यवस्था को देखकर यह प्रतीत होता है? एक अमेरिकी पत्रिका, न्यूज़वीक, में पिछले वर्ष भारत के बारे में एक लेख में एक कटाक्ष था।
इसके अनुसार, वर्तमान सरकार काम से अधिक आंकड़ों की बाजीगरी में भरोसा करती है। पहले की सरकारों में जब एक किलोमीटर सड़क पूरी बन जाती थी तब उसे गिना जाता था, पर इस सरकार में डीवाईडर के एक तरफ की सड़क एक किलोमीटर होती है, डिवाईडर के दूसरे तरफ उसी सड़क के दूसरे हिस्से को अगला किलोमीटर गिना जाता है और यदि उसके किनारे कोई लेन है तो उसे अगले किलोमीटर में शामिल किया जाता है। यानी, पिछली सरकारों की एक किलोमीटर सड़क अब दो किलोमीटर से लेकर चार किलोमीटर तक पहुँच गयी है।
देश की अर्थव्यवस्था को भी सड़क के लम्बाई की तरह जबर्दस्ती बढ़ा दिया जाता है, पर सरकारी आंकड़े ही समय-समय पर इसे झूठा साबित कर देते हैं। कोविड 19 दौर के पहले से ही अर्थव्यवस्था बदहाल थी। न्यूजवीक में ही दो वर्ष पहले एक लेख में बताया गया था कि सरकार कितना भी दावा करे, पर विश्व की सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था भारत नहीं है। अर्थव्यवस्था बढ़ रही है, पर इसकी गति धीमी है।
अनेक अर्थशास्त्री मानते हैं कि सरकार द्वारा जारी आंकड़ों में तमाम गलतियां रहती हैं और ये आंकड़े अर्थव्यवस्था की सही स्थिति नहीं बताते हैं। पिछले वर्ष जून के महीने में अरविन्द सुब्रमण्यम ने इसकी खामियों को उजागर किया था और बताया था कि वर्तमान सरकार जब सकल घरेलू उत्पाद में 7 प्रतिशत की बृद्धि बताती है तब वह वास्तविकता में महज 4।5 प्रतिशत की बृद्धि होती है।
जाहिर है इस समय भी जब सरकार जीडीपी को माइनस में 24 प्रतिशत बता रही है तब वास्तविकता कुछ और ही होगी। ऐसे विचार पहले भी अनेक अर्थशास्त्री रख चुके हैं, पर उम्मीद के मुताबिक़ सरकार इन दावों को लगातार खारिज करती रही है। चलिए आंकड़ों को दरकिनार कर भी दें, तब भी अरविन्द सुब्रमण्यम की एक बात से तो कोई इंकार नहीं कर सकता है। उनके अनुसार, अर्थव्यवस्था के बढ़ने के लिए बढ़ते रोजगार के अवसर, आयात-निर्यात में बढ़ोत्तरी, रिज़र्व खजाने में बढ़ोत्तरी, बढ़ता औद्योगिक उत्पादन, उत्पादों की बढ़ती मांग और बढता कृषि उत्पादन जिम्मेदार है, पर इनमें से कुछ भी तेजी से नहीं बढ़ रहा है तो फिर अर्थव्यवस्था तेजी से कैसे बढ़ सकती है?
जेपी मॉर्गन चेज के विशेषज्ञ जहांगीर अज़ीज़ बताते हैं कि जब सरकार के आंकड़े ही भ्रामक हैं तब इसपर आधारित विकास हमेशा भ्रामक ही रहेगा। ऐसे में केवल जनता को बेवक़ूफ़ बनाकर और आंकड़ों को तोड़-मरोड़कर ही वर्ष 2024 तक 5 ख़रब के आंकड़े तक पहुंचा जा सकता है और कम से कम यह इस सरकार के लिए सबसे आसान काम है।
अभी जब 14 सितम्बर से संसद का सत्र शुरू होगा, तभी आंकड़ों की बाजीगरी से जनता को सब्जबाग दिखाने की शुरुआत हो जायेगी।