हिमालय के ऊंचे क्षेत्रों में ग्लेशियर झील के टूटने के बाद हजारों लोगों की होती है मौत और संपत्ति के साथ ही इंफ्रास्ट्रक्चर को भी भारी नुकसान
file photo
महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
Himalayan glaciers are melting at unprecedented rate and causing irreversible damage. काठमांडू स्थित इन्टरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट द्वारा प्रकाशित एक नई रिपोर्ट के अनुसार हिन्दुकुश हिमालय के ग्लेशियर अभूतपूर्व दर से पिघल रहे हैं, और तापमान वृद्धि के कारण इस ग्लेशियर क्षेत्र में ऐसे खतनाक बदलाव हो रहे हैं जो स्थाई हैं और भविष्य में यह क्षेत्र अपने सामान्य स्तर पर कभी नहीं आयेगा। इन ग्लेशियर से एशिया में गंगा समेत 12 प्रमुख नदियाँ निकलती हैं जो भारत समेत 16 देशों में बहती हैं और इन नदियों पर पानी के लिए लगभग 2 अरब आबादी आश्रित है।
इन ग्लेशियर से उत्पन्न नदियों से पानी की जरूरतों को पूरा करने वाली कुल आबादी में से 24 करोड़ से अधिक आबादी तो हिमालय के क्षेत्रों में ही है, पर 1.6 अरब आबादी मैदानी इलाकों में इस पानी पर आश्रित है। पिछले कुछ वर्षों के दौरान इससे पहले भी अनेक रिपोर्ट और अध्ययन हिमालय के ग्लेशियर के पिघलने और सिकुड़ने की खतरनाक तरीके से बढ़ती दर पर प्रकाश डाल चुके हैं।
इस रिपोर्ट के अनुसार यदि दुनिया ने तापमान वृद्धि और जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने के लिए सख्त कदम नहीं उठाये गए तो इस शताब्दी के अंत तक हिमालय के ग्लेशियर के आयतन में 80 प्रतिशत तक की कमी हो जायेगी। वर्ष 2010 के बाद हिमालय के ग्लेशियर के पिघलने की दर इससे पहले के समय की तुलना में 65 प्रतिशत बढ़ चुकी है।
तापमान वृद्धि को नियंत्रित करने के बारे में सरकारों की लापरवाही का आलम यह है कि पिछले कुछ वर्षों से लगभग हरेक दिन कोई न कोई अध्ययन प्रकाशित होता है, जो इसके प्रभावों के बढ़ाते दायरे की ओर इशारा करता है। कुछ दिनों पहले बताया गया था कि जून के शुरू में ही विश्व का औसत तापमान पूर्व-आद्योगिक काल की तुलना में थोड़े समय के लिए ही सही पर 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा लांघ गया था। इसके बाद बताया गया कि अटलांटिक महासागर के उत्तरी क्षेत्र में पानी का तापमान पिछले सभी रेकॉर्डों को ध्वस्त कर चुका है।
हिमालय क्षेत्र पृथ्वी के भौगोलिक तंत्र का एक महत्वपूर्ण और विशेष हिस्सा है जो पिछले कुछ वर्षों से तापमान वृद्धि की अप्रत्याशित मार झेल रहा है। इससे त्वरित बाढ़ और हिमस्खलन की दर और तीव्रता बढ़ती जा रही है। पिछले वर्ष पाकिस्तान को जलमग्न करने वाली बाढ़ भी इसी कका नतीजा थी जिसमें 1700 से अधिक लोगों की मृत्यु हो गयी। जोशीमठ के धंसने पर तो बहुत कुछ लिखा गया है। माउंट एवरेस्ट पर और आसपास के ग्लेशियर पिछले 30 वर्षों में ही इतने पिघल चुके हैं, जितना सामान्य स्थितियों में 2000 वर्षों में पिघलते।
इस रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन से जुड़े तीन प्रमुख कदम हैं – इसे नियंत्रित करना, इसके प्रभावों से आबादी को बचाना और इससे हुए नुकसान की भरपाई करना – पर दुखद यह है कि पूरी दुनिया इनमें से किसी भी कदम की तरफ नहीं बढ़ रही है। अधिकतर ग्लेशियर से बहने वाला पानी किसी नदी में जाता है, पर अनेक ग्लेशियर ऐसे भी हैं जिनसे बहने वाला पानी इसके ठीक नीचे के क्षेत्र में जमा होता है और यह पानी पत्थरों और मलबों से रूककर एक झील जैसी आकृति बना लेता है। जब इसमें अधिक पानी जमा होता है तब किनारे के पत्थरों और मलबों पर दबाव बढ़ जाता है जिससे ये टूट जाते हैं। ऐसी अवस्था में झील में जमा पानी एक साथ तीव्र वेग से नीचे के क्षेत्रों में पहुंचता है जिससे फ्लैश फ्लड या आकस्मिक बाढ़ आती है। ऐसी बाढ़ से जानमाल, संपत्ति और इंफ्रास्ट्रक्चर को नुकसान पहुंचता है।
नेचर कम्युनिकेशंस नामक जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार दुनिया के 30 देशों की 9 करोड़ आबादी लगभग 1089 ग्लेशियर झीलों के जल-ग्रहण क्षेत्र में बसती है। इसमें से लगभग डेढ़ करोड़ आबादी ग्लेशियर झीलों के जल-ग्रहण क्षेत्र के एक किलोमीटर दायरे में रहती है और इस आबादी पर ग्लेशियर झील के टूटने के बाद आकस्मिक बाढ़ का सबसे अधिक ख़तरा है। यह डेढ़ करोड़ आबादी दुनिया के महज 4 देशों में बसती है – भारत, पाकिस्तान, चीन और पेरू। इसमें से 90 लाख आबादी हिमालय के ऊंचे क्षेत्रों में है, जिसमें से 50 लाख से अधिक आबादी भारत के उत्तरी क्षेत्र और पाकिस्तान में है।
ग्लेशियर झीलों पर पहले भी अनेक अध्ययन किये गए हैं, पर यह पहला अध्ययन है जो यह बताता है कि इनका सबसे अधिक ख़तरा कहाँ है। हिमालय के ऊंचे क्षेत्रों में ग्लेशियर झील के टूटने के बाद हजारों लोगों की मौत होती है और संपत्ति के साथ ही इंफ्रास्ट्रक्चर का भारी नुकसान होता है, जबकि अमेरिका के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में हिमालय की तुलना में दुगुनी ग्लेशियर झीलें हैं, पर वहां इनके टूटने पर अधिक नुकसान नहीं होता। पिछले वर्ष पाकिस्तान की अभूतपूर्व बाढ़ में ग्लेशियर झीलों का पानी भी शामिल था।