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स्वास्थ्य

स्वास्थ्य सेवाओं के प्राइवेटाइजेशन से व्यवस्थायें लगातार हो रहीं बदतर, प्राइवेट अस्पताल बिज़नेस एंटरप्राइज की तरह कर रहे काम

Janjwar Desk
20 May 2024 11:07 AM GMT
स्वास्थ्य सेवाओं के प्राइवेटाइजेशन से व्यवस्थायें लगातार हो रहीं बदतर, प्राइवेट अस्पताल बिज़नेस एंटरप्राइज की तरह कर रहे काम
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फरवरी 2024 में सर्वोच्च न्यायालय ने सवाल उठाया था कि अलग-अलग अस्पताल एक ही तरीके के इलाज के लिए अलग-अलग कीमत क्यों वसूलते हैं और कई बार तो एक ही अस्पताल एक ही जैसे इलाज के लिए दो मरीजों से बिलकुल अलग-अलग कीमत वसूलता है, सरकार विभिन्न इलाजों के लिए एक निश्चित कीमत क्यों नहीं तय करती है? इस सवाल के बाद सभी निजी अस्पतालों में इस वक्तव्य का विरोध किया गया था....

महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

Privatisation of health care sector never produces any positive effect on quality of care of the major population, reveals a new study published in the journal The Lancet Public Health. प्रतिष्ठित जर्नल लांसेट पब्लिक हेल्थ में प्रकाशित एक विस्तृत अध्ययन के अनुसार स्वास्थ्य सेवाओं के निजीकरण से स्वास्थ्य सेवायें पहले से अधिक बदतर हो जाती हैं, और स्वास्थ्य लाभ के क्षेत्र में असमानता बढ़ती जाती है। इस अध्ययन को ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक आरोन रीव्ज के नेतृत्व में किया गया है और इसके लिए अमेरिका, जर्मनी, कनाडा, साउथ कोरिया, क्रोएशिया, इंग्लैंड, इटली और स्वीडन जैसे अमीर देशों में इस विषय पर पहले किये गए 15 विस्तृत और दीर्घकालीन अध्ययनों का गहराई से विश्लेषण किया गया है।

इन अध्ययनों में एक भी ऐसा अध्ययन नहीं था, जो स्वास्थ्य सेवाओं के निजीकरण से जनस्वास्थ्य के क्षेत्र में प्रगति की ओर इशारा करता हो। हालांकि इस अध्ययन का आधार केवल अमीर देशों में किये गए अध्ययन हैं पर आरोन रीव्ज के अनुसार इसके निष्कर्ष पूरी दुनिया के देशों पर सटीक बैठते हैं और तमाम सरकारों को जनस्वास्थ्य के निजीकरण के बारे में गंभीरता से विचार करना चाहिए।

पूंजीवादी तंत्र में हरेक समस्या का समाधान जन-सेवाओं के निजीकरण में बताया जाता है। पिछले 40-50 वर्षों से दुनियाभर की सरकारों ने एक-एक कर लगभग सभी सार्वजनिक क्षेत्र की सेवाओं को निजी हाथों में सौप दिया है, जाहिर है लगभग सभी सार्वजनिक क्षेत्र की सेवाओं पर पूंजीपतियों का एकाधिकार होता जा रहा है। जहां पूरी तरह से निजी क्षेत्र के हवाले सेवायें नहीं की गईं हैं, वहां सेवाओं को अनेक टुकड़ों में बांटकर उनकी आउटसोर्सिंग की जा रही है। जिन सेवाओं को बड़े पैमाने पर निजी हाथों में पूजीपतियों के हवाले किया गया है, उसमें स्वास्थ्य सेवायें सबसे आगे हैं। पूरी दुनिया में यह किया गया है।

आरोन रीव्ज के अनुसार पूंजीपति या कार्पोरेट घराने केवल मुनाफे के लिए काम करते हैं, न कि किसी क्षेत्र को बेहतर बनाने के लिए या फिर जनता को सुविधा मुहैया कराने के लिए। निजी क्षेत्रों में मुनाफ़ा बढ़ाने के लिए कर्मचारियों की संख्या कम कर दी जाती है, जिससे सेवायें प्रभावित होती हैं। इस अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष हैं – निजीकरण के बाद स्वास्थ्य सेवायें पहले से अधिक लचर हो जाती हैं, कर्मचारियों और मरीजों की संख्या कम कर पूजीपति अपना मुनाफा बढ़ाते हैं, साफ़-सफाई कर्मचारियों की संख्या कम करने से अस्पतालों के अन्दर मरीजों में नए इन्फेक्शन पनपने का खतरा बढ़ जाता है। इस अध्ययन का सबसे प्रमुख निष्कर्ष है कि स्वास्थ्य सेवाओं के निजीकरण के बाद से अस्पतालों में मरीजों की मृत्यु दर में बढ़ोत्तरी हो गयी है, इसमें से अधिकतर मृत्यु को सामान्य चिकित्सा से रोका जा सकता था।

अध्ययन में बताया गया है कि स्वास्थ्य सेवाओं के निजीकरण के साथ ही स्वास्थ्य बीमा का भी चलन शुरू हुआ था। निजी क्षेत्र के अस्पताल स्वास्थ्य बीमा वाले मरीजों को ही प्राथमिकता देते हैं और प्रभावी स्वास्थ्य बीमाधारी समाज का अमीर तबका ही है। स्वास्थ्य बीमा के व्यापक चलन के बाद से स्वास्थ्य सेवायें पहले की तुलना में कई गुना महंगी हो गईं हैं। जाहिर है, निजी क्षेत्र की स्वास्थ्य सेवायें केवल अमीरों की पहुँच में रह गईं हैं। दूसरी तरफ सार्वजनिक क्षेत्र की स्वास्थ्य सेवायें भी आउटसोर्सिंग के बाद महंगी होने के साथ ही पहले की तुलना में अधिक लचर होती जा रही हैं।

यदि आप किसी मरीज के साथ किसी बड़े निजी अस्पताल पहुँच जाएँ तो एक अलग ही अनुभव होता है। पहुंचते ही आप तमाम काउंटर के चक्कर मारते हैं, पर कोई भी इलाज का खर्च नहीं बताता। सबसे पहले आप से ही पूछा जाता है कि हेल्थ इंश्योरेंस है, यदि है तो प्राइवेट या सरकारी है, लिमिट कितनी है, इसमें से आप कितना खर्च कर चुके हैं, यदि इन्सुरेंस नहीं है तो कार्ड से पेमेंट करेंगे या फिर कैश, और भी बहुत कुछ।

इतनी जानकारी लेने के बाद स्टाफ की आपसी खुसर-फुसुर के बाद आपको एक अदद पैकेज बताया जाता है। इस पैकेज में आप कुछ भी बदलना चाहें – मसलन डबल बेड वाले रूम के बदले सिंगल बेड वाले कमरे की सुविधा – तब भी आपको दोनों में अंतर नहीं नहीं बताया जाएगा, बल्कि एक नए पैकेज का ऐलान किया जाएगा। निजी अस्पतालों में इलाज का पैकेज तो होता ही है, वहां भर्ती होकर मरीज स्वयं एक पैकेज से अधिक कुछ नहीं होता। मरीज के साथ का तीमारदार बड़े अस्पतालों में महज एक चलते-फिरते एटीएम मशीन से अधिक कुछ नहीं होता, जो अस्पताल में पार्किंग से लेकर पांच-सितारा होटल जैसे कैंटीन में बस पैसे ही लुटाता रहता है।

सितम्बर 2022 में माननीय सर्वोच्च न्यायालय की एक पीठ ने एक सुनवाई के दौरान कहा था कि प्राइवेट अस्पताल एक बिज़नेस एंटरप्राइज की तरह काम करते हैं और अत्यधिक मुनाफा कमाते हैं। फरवरी 2024 में सर्वोच्च न्यायालय ने सवाल उठाया था कि अलग-अलग अस्पताल एक ही तरीके के इलाज के लिए अलग-अलग कीमत क्यों वसूलते हैं और कई बार तो एक ही अस्पताल एक ही जैसे इलाज के लिए दो मरीजों से बिलकुल अलग-अलग कीमत वसूलता है, सरकार विभिन्न इलाजों के लिए एक निश्चित कीमत क्यों नहीं तय करती है? इस सवाल के बाद सभी निजी अस्पतालों में इस वक्तव्य का विरोध किया गया था, और केंद्र सरकार ने भी इसका विरोध किया था।

सन्दर्भ:

New study links hospital privatisation to worse patient care - https://www.ox.ac.uk/news/2024-02-29-new-study-links-hospital-privatisation-worse-patient-care

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