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स्वास्थ्य

मानव के सबसे सुरक्षित अंग दिमाग में भारी मात्रा में भर रहा है प्लास्टिक, वैज्ञानिकों ने किया चौंकाने वाला खुलासा

Janjwar Desk
25 Aug 2024 12:59 PM GMT
मानव के सबसे सुरक्षित अंग दिमाग में भारी मात्रा में भर रहा है प्लास्टिक, वैज्ञानिकों ने किया चौंकाने वाला खुलासा
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शरीर के किसी भी दूसरे अंग, जैसे लीवर, किडनी, फेफड़े इत्यादि से 10 से 20 गुना तक अधिक प्लास्टिक मस्तिष्क में मिले। वर्ष 2024 में मृत 24 व्यक्तियों के मस्तिष्क में तो प्लास्टिक की मात्रा मस्तिष्क के कुल वजन का 0.5 प्रतिशत या अधिक था....

महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

Many studies reveal presence of plastics in almost every organ of human beings, but a new study finds plastic in our brain. बचपन से एक कहावत सुनते आये हैं, मंद बुद्धि वालों के लिए “दिमाग में गोबर भरा है” आम तौर पर कहा जाता है। इस कहावत की उत्पत्ति कैसे हुए होगी यह तो पता नहीं और न ही यह पता है कि कभी किसी के दिमाग में वाकई में गोबर भरा होगा। गोबर वैसे भी उर्वरता का प्रतीक है, इसका इस्तेमाल खाद और इंधन के तौर पर सदियों से किया जाता रहा है और ग्रामीण क्षेत्र में गोबर का उपेक्षित ही सही पर अपना एक विशिष्ट और प्रभावी अर्थशास्त्र है।

दूसरी तरफ वैज्ञानिक मस्तिष्क को अब तक मानव शरीर का सबसे सुरक्षित अंग मानते रहे हैं, जिसके आवरण को बाहरी रसायन, पदार्थ और रोग फैलाने वाले वायरस और बैक्टीरिया आसानी से प्रभावित नहीं कर सकते, पर एक नए अध्ययन से पहली बार स्पष्ट हुआ है कि मानव मस्तिष्क के भीतर भारी मात्र में प्लास्टिक पहुँचने लगे हैं। यदि मुहावरों को बदला जा सकता है, तब अब “दिमाग में प्लास्टिक भरा है” कहा जाना चाहिए।

यूनिवर्सिटी ऑफ़ न्यू मेक्सिको के वैज्ञानिक मैथ्यू कैम्पेन के नेतृत्व में वैज्ञानिकों के एक दल ने नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ हेल्थ के जर्नल में एक अध्ययन प्रस्तुत किया है। इस दल ने अस्पतालों की मदद से कुल 91 शवों का प्लास्टिक के सन्दर्भ में गहन विश्लेषण किया। सभी शवों में शरीर के किसी भी दूसरे अंग, जैसे लीवर, किडनी, फेफड़े इत्यादि से 10 से 20 गुना तक अधिक प्लास्टिक मस्तिष्क में मिले। वर्ष 2024 में मृत 24 व्यक्तियों के मस्तिष्क में तो प्लास्टिक की मात्रा मस्तिष्क के कुल वजन का 0.5 प्रतिशत या अधिक था।

अध्ययन करने वाले वैज्ञानिकों के अनुसार मस्तिष्क में प्लास्टिक की मात्रा उनकी कल्पना से भी परे थी, और इस अध्ययन के बाद स्पष्ट है कि मानव शरीर में मस्तिष्क की सर्वाधिक प्लास्टिक प्रदूषित उत्तक है। विक्षिप्त या पागलपन के शिकार व्यक्तियों के शवों के मस्तिष्क में प्लास्टिक की मात्रा सामान्य मस्तिष्क की तुलना में 10 गुना तक अधिक थी। मस्तिष्क में प्लास्टिक की मात्रा समय के साथ बढ़ती जा रही है – वर्ष 2016 के मस्तिष्क की तुलना में वर्ष 2024 के मस्तिष्क में प्लास्टिक की मात्रा लगभग 50 प्रतिशत अधिक मिली।

एक शब्द है, सर्वव्यापी – इसका इस्तेमाल भगवान् के लिए किया जाता है। दुनिया की स्थिति देखकर भगवान भले ही सर्वव्यापी नहीं लगें – पर प्लास्टिक का कचरा निश्चित तौर पर सर्वव्यापी है। पृथ्वी के सबसे ऊंचे शिखर माउंट एवरेस्ट से लेकर महासागरों के सबसे गहरे गटात स्थान, मारियाना ट्रेंच, तक प्लास्टिक बिखरा पड़ा है। यह रेगिस्तान में है, हवा में है, पानी में है, खाद्यान्न में है, मांस में है, सब्जियों में हैं, फलों में है, जलीय जीवों में है, नदियों में है, निर्जन द्वीपों पर है, भूमि पर है। मानव शरीर के हरेक अंग में है – हड्डियों, मांसपेशियों, रक्त, ह्रदय, किडनी, लंग्स, आँतों, प्लेसेंटा, बोन मैरो – हरेक जगह है। प्लास्टिक कचरा मवेशियों के शरीर में है, कृषि उत्पादों में है, दूध में है – हरेक जगह है।

प्लास्टिक कचरा भले ही सर्वव्यापी हो गया हो, पर इसका उपयोग और उत्पादन बढ़ता जा रहा है। कभी-कभी इसके उपयोग को समाप्त करने की सुगबुगाहट होती है, पर कुछ दिनों बाद ही इसका उपयोग पहले से भी अधिक बढ़ जाता है। हमारे देश में भी प्रधानमंत्री मोदी अनेक बार सिंगल यूज प्लास्टिक को प्रतिबंधित करने का ऐलान कर चुके हैं। ऐसे हरेक ऐलान के बाद बाजार में कुछ छापे पड़ते हैं, छापे मारने वाले मोटी रिश्वत के आधार पर कार्यवाही करते हैं – रिश्वत देने वालों के यहाँ उन्हें प्लास्टिक नहीं मिलता और रिश्वत नहीं देने वालों पर कानूनी कार्यवाही की जाती है। कुछ दिनों तक यह तमाशा चलता रहता है, फिर अगले ऐलान तक सबकुछ सामान्य चलता रहता है।

प्लास्टिक कचरे पर हमारे समाज का रवैया भी अजीब है। कुछ वर्ष पहले तक मवेशियों के पेट में प्लास्टिक कचरा होने की चर्चा की जाती थी, प्लास्टिक कचरा खाकर मरने वाले मवेशियों की चर्चा की जाती थी, प्लास्टिक कचरे से नालियों के बंद होने की बात की जाती थी – पर अब जब हमारे अपने शरीर के हरेक अंग में प्लास्टिक मिलने लगा है – तब प्लास्टिक और प्लास्टिक कचरे पर सारी चर्चाएँ बंद हो गईं हैं। अब प्लास्टिक पर सत्ता, जनता और मीडिया – सभी खामोश हैं, पर हमारे दिमाग में अब प्लाटिक भरने लगा है। संभव है, कुछ वर्षों बाद आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस की जगह मानव के प्लास्टिक इंटेलिजेंस पर चर्चा शुरू हो जाए।

संदर्भ:

1. Bioaccumulation of Microplastics in Decedent Human Brains Assessed by Pyrolysis Gas Chromatography-Mass Spectrometry - https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pmc/articles/PMC11100893/

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