Begin typing your search above and press return to search.
जनज्वार विशेष

भाई-भतीजावाद, जातिवाद, संप्रदायवाद, क्षेत्रवाद, अपराध की गहरी और मजबूत जड़ों से भारत की लोकतांत्रिकता पर उठते सवाल !

Janjwar Desk
21 Nov 2022 12:24 PM GMT
भाई-भतीजावाद, जातिवाद, संप्रदायवाद, क्षेत्रवाद, अपराध की गहरी और मजबूत जड़ों से भारत की लोकतांत्रिकता पर उठते सवाल !
x

ग्लोबल स्टेट ऑफ़ डेमोक्रेसी रिपोर्टजारी (प्रतीकात्मक तस्वीर)

राजनेता पहले लोगों तक पहुंच बनाने के लिए जनसभा, रैली, धरना-प्रदर्शन, हड़ताल जैसे औजारों के जरिए जनता में पैठ बनाते थे, अब पैठ बनाने के लिए मीडिया का सहारा लेते हैं....

राजेश पाठक की टिप्पणी

अभी बीते सप्ताह विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने उच्च शिक्षण संस्थानों और उनसे संबद्ध कॉलेजों/ संस्थानों द्वारा 26 नवंबर को संविधान दिवस कार्यक्रम आयोजित करने से संबंधित आग्रह पत्र सभी कुलपतियों एवं कॉलेज प्राचार्यों को भेजा है। आयोग ने -भारत : लोकतंत्र की जननी- विषय वस्तु पर व्याख्यान आयोजित करने का भी निर्णय लिया है।

पत्र में यह कहा गया है कि भारतीय लोकतंत्र समावेशिता व विविधता की ताकत के आधार पर 75 वर्षों से आगे बढ़ रहा है और यह न केवल दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है बल्कि लोकतंत्र की जननी भी है कारण कि वैदिक काल से लेकर इस विषय में काफी साक्ष्य मौजूद हैं जो भारत की लोकतांत्रिक परंपरा को रेखांकित करती है।

गौरतलब है कि भारत सरकार द्वारा वर्ष 2015 से डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के महान योगदान के रूप में 26 नवंबर को संविधान दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया। इससे पूर्व इस तिथि को कानून दिवस के रूप में मनाया जाता रहा था। वर्ष 2015 से सरकार के निर्णयानुसार इस दिन सभी सरकारी कार्यालयों व प्रतिष्ठानों में संविधान के पिता माने जाने वाले अंबेडकर एवं संविधान निर्माण में उनके अमूल्य योगदान पर उपयोगी चर्चाएं की जाती हैं एवं संविधान के प्रति प्रतिबद्धता का भाव प्रदर्शित किया जाता है साथ ही संविधान की प्रस्तावना को शपथ के रूप में समूह में पढ़कर उसके प्रति निष्ठा व आदर का भाव उजागर किया जाता है।

इस बार संविधान दिवस के अवसर पर जो विषय वस्तु निर्धारित है उसके मूल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का वह वक्तव्य है जिसे उन्होंने बीते जुलाई महीने में बिहार विधानसभा के शताब्दी समारोह के दौरान प्रमुखता से दिया था कि भारत न केवल विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है बल्कि यह लोकतंत्र की जननी भी है।इस संदर्भ में उन्होंने लिक्ष्वी गणराज्य का उदाहरण भी दिया था।

सिंधुघाटी सभ्यताओं के पुरातात्विक सर्वेक्षण के दौरान राखीगढ़ी व अन्य स्थानों से प्राप्त अवशेषों से भी भारतीय लोकतंत्र के सबसे पुराने लोकतंत्र होने के तथ्य प्रमाणित होने लगे हैं। बहरहाल जब लोकतंत्र पर चर्चा होगी तो इसके सभी पहलुओं पर चर्चा स्वमेव इसका विषय बन जाता है।

लोकतंत्र के संदर्भ में यह कहना गलत नहीं होगा कि इस शब्द के बुनियादी अर्थ संयुक्त राज्य अमेरिका के 16वें राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन के गैटिसबर्ग स्पीच से प्रमाणित व संपुष्ट होते हैं जिसमें उन्होंने लोकतंत्र को जनता का, जनता के लिए और जनता द्वारा शासन बताया था। आज भी यह अभिभाषण लोकतंत्र की समीक्षा का आधारभूत स्तंभ है।

इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट के डेमोक्रेसी इंडेक्स की मानें तो वर्तमान में लगभग 200 देशों में कुल 166 संप्रभु राष्ट्र हैं, जहां की शासन व्यवस्था लोकतांत्रिक है। निश्चित रूप से भारत, जहां 912 मिलियन मतदाता हैं, एक विशाल लोकतांत्रिक देश का प्रतिनिधित्व करता है। इतने बड़े लोकतांत्रिक व्यवस्था का प्रतिनिधि होने के कारण भारत, लोकतंत्र के विभिन्न पहलुओं पर शोध किए जाने के लिए एक उर्वर भूमि है। लोकतांत्रिक व्यवस्था की सफलता-असफलता को लेकर पूरे विश्व के राजनीतिक शोधकर्ताओं की नजरें भारत में लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं, लोकतंत्र के संस्थानीकरण, संस्थाओं के लोकतंत्रीकरण आदि जैसे मूलभूत राजनीतिक सिद्धांतों पर टिकी रहती हैं।

इस संदर्भ में एंथोनी डाउन की एक शोधपरक पुस्तक -इकोनोमिक थ्योरी आफ डेमोक्रेसी - की चर्चा जरूरी है। इस पुस्तक में राजनेताओं और मतदाताओं के संबंध में कुछ निष्कर्ष निकाले गए थे।उनका मानना रहा है कि मतदाता उसी नेता को वोट देते हैं, जिससे उन्हें अधिकतम फायदे की उम्मीद होती है। नेता भी फायदे को विकास, सामाजिक सुरक्षा, सामाजिक न्याय जैसे मखमली शब्द जालों में लपेटकर पेश करते हैं। नेताओं के वायदों को मतदाता अपनी अपेक्षाओं के तराजू पर तौलते हैं और जिसका पलड़ा भारी होता है,उसे ही वोट देते हैं।

दूसरे शब्दों में जनता और नेताओं का संबंध लेनदेन पर टिका होता है। आगे चलकर वर्ष 1999 में जॉन जेलर ने डाउन के सिद्धांतों में कुछ संशोधन लाए और अपनी पुस्तक -थ्योरी आफ मीडिया पॉलिटिक्स - में जनता, नेता के साथ तीसरा घटक मीडिया को जोड़ा। राजनेता पहले लोगों तक पहुंच बनाने के लिए जनसभा, रैली, धरना-प्रदर्शन, हड़ताल जैसे औजारों के जरिए जनता में पैठ बनाते थे। अब पैठ बनाने के लिए इन सबों के साथ-साथ मीडिया का सहारा लेते हैं। प्रेस कॉन्फ्रेंस, लाइव कवरेज के माध्यम से ज्यादा सक्रिय होकर अपनी बात जनता तक पहुंचाते हैं। अपनी छवि बनाने और चुनाव जीतने के लिए टी.वी. अखबार, रेडियो, न्यूज मीडिया का जमकर इस्तेमाल करते हैं। यह सच भी है कि मीडिया को भी न्यूज की जरूरत है और इसके लिए वह नेताओं पर निर्भर करने लगा है।

आज शोधोपरांत हम मान भी लें कि भारत लोकतंत्र की जननी है तो इससे यह साबित तो जरूर हो जाता है कि भारत में लोकतांत्रिक वृक्ष की जड़ें गहरी हैं, वृक्ष भी घने हैं परंतु यह प्रश्न कि इस लोकतंत्र रूपी घने वृक्ष पर उगने वाले फल कितने रस भरे हैं, सदैव ही अनुत्तरित ही रह जाते हैं। इतने वर्षों के लोकतांत्रिक इतिहास समाए राष्ट्र में जिन कारकों को आज प्रभावी होना चाहिए उनका स्थान भाई-भतीजावाद, जातिवाद, संप्रदायवाद, क्षेत्रवाद, अपराध, धन और बाहुबल ने ले लिया है।

देश में धनबल, बाहुबल, परिवारवाद ने किस तरह लोकतंत्र का चीरहरण किया है, यह किसी से छिपा नहीं है। हालांकि विज्ञान के प्रचार-प्रसार, एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म जैसी शोधपरक संस्थाओं द्वारा समय-समय पर दिए गए महत्वपूर्ण सुझावों आदि पर प्रमुखता से विचारोपरांत भारत का निर्वाचन आयोग प्रक्रियाओं व ढांचों में वस्तुनिष्ठता लाने का हर संभव प्रयास करता रहा है तथापि मतदाताओं के जनतांत्रिक मूल्यों के प्रति कटिबद्धता एवं उससे जुड़े नैतिक आदर्शों के अनुकरण में उतना सफल नहीं हो सका है। कारण स्पष्ट है। जहां देश की एक चौथाई जनता गरीबी रेखा से नीचे गुजर-बसर करती हो वहां लोकतंत्रिक आदर्श की बात बेमानी है।

लोकतंत्र के सुदृढ़ीकरण के लिए आमजनों की बुनियादी जरूरतों के प्रति सरकार को अधिक संवेदनशील होना होगा। रोजगारविहीन संवृद्धि दर की स्थिति से निपटने की कोशिश करनी होगी और इस संबंध में सबसे जरूरी है रोजगार की खोज कर रहे लोगों की स्किल मैपिंग। स्किल मैपिंग के माध्यम से हम पता लगा सकते हैं कि कोई भी व्यक्ति किस रोजगार के लिए ज्यादा वांछनीय व कौशलयुक्त है एवं तद्नुसार रोजगारों की श्रृंखला से उन्हें आबद्ध किया जा सके।

इसके लिए सरकार स्तर पर दीर्घकालिक या मध्यकालिक पर्सपेक्टिव प्लान बनाए जाने की जरूरत महसूस की जा रही है ताकि निकट भविष्य में या फिर अधिक से अधिक जब भारत अपनी आजादी की सौवीं वर्षगांठ मना रहा हो तो उस वक्त भारत एक स्वस्थ, समुन्नत व दृढ़निश्चयी लोकतंत्र के रूप में पूरे विश्व में प्रतिष्ठापित हो सके। परंतु यह भी कि इस लंबी अवधि के दौरान सरकार स्तर पर उक्त दिशा में किए जा रहे प्रयासों को जनता के विश्वास के साथ जोड़े रखना भी उतना ही जरूरी है।

(राजेश पाठक झारखंड स्थित जिला सांख्यिकी कार्यालय गिरिडीह में सहायक सांख्यिकी पदाधिकारी हैं।)

Next Story

विविध