Booker for Geetanjali Sri : क्या है बुकर पुरस्कार? हिंदी लेखिका गीजांजलि श्री से पहले और कौन से भारतीय जीत चुके हैं बुकर
Booker Prize विजेता गीतांजलि श्री पर शिव-पार्वती का अपमान करने का आरोप, विवाद के कारण सम्मान कार्यक्रम रद्द
Booker for Geetanjali Sri : सिनेमा की दुनिया में काम करने वाले हर शख्स का सपना होता है कि वह एक दिन ऑस्कर अवॉर्ड हासिल करे। हालांकि कुछ अद्भुत प्रतिसंपन्न कलाकारों को ही यह पुरस्कार मिल पाता है। ऑस्कर की तरही ही साहित्य के क्षेत्र में भी दुनियाभर में सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार दिए जाते हैं इनमें नोबल, बुकर और साहित्य अकादमी पुरस्कार जैसे पुरस्कार शामिल है। आज हम बात करते हैं इन्हीं पुरस्कारों में से एक पुरस्कार बुकर की।
भारतीय लेखिका गीतांजलि श्री के उपन्यास टॉम्ब ऑफ सैंड को प्रसिद्ध इंटरनेशनल बुकर प्राइज से सम्मानित किया गया है। ये उपन्यास हिंदी में रेत की समाधि के नाम से छपा था जिसे अमेरिकन ट्रांस्लेटर डेजी रॉकवेल ने अंग्रेजी में ट्रांसलेट किया है और इसका नाम टॉम्ब ऑफ सैंड रखा है. ये दुनिया की उन 13 किताबों में शामिल हो गई है जिन्हें इंटरनेशनल बुकर पुरस्कार से नवाजा गया है।
भारतीयों के लिए गीतांजलि श्री को बुकर मिलने की खबर इसलिए भी खास है क्योंकि गीतांजलि हिंदी भाषा की पहली लेखिका हैं जिनकी साहित्यिक कृति को बुकर पुरस्कार पाने का सम्मान मिला है। बीते गुरुवार 26 मई को लंदन में गीतांजलि श्री को इस किताब के लिए पुरस्कार मिला है। इस पुरस्कार के रूप में गीतांजलि श्री को 50 हजार पाउंड ;भारतीय रुपयों में लगभग 4905908 रुपए द्ध की इनामी राशि मिलेगी जिसे वो डेजी रॉकवेल के साथ शेयर करेंगी।
क्या है बुकर प्राइज?
बुकर प्राइज एक लिटररी प्राइज है जो हर साल अंग्रेजी भाषा में लिखे गए और राष्ट्रमंडल, यूके या आयरलैंड में पब्लिश हुए सर्वश्रेष्ठ नोवल को दिया जाता है। यह एक हाई-प्रोफाइल साहित्यिक पुरस्कार (Literary Prize) है और यही कारण है कि हर साल दिए जाने वाले इस पुरस्कार का इंतजार लगभग हर पुस्तक प्रेमी को होता है।
बुकर प्राइज का इतिहास
बुकर प्राइज (Booker Prize) की शुरुआत 1969 में मैन बुकर इंटरनेशनल प्राइज के रूप में हुई थी। यह शुरू में एक द्विवार्षिक पुरस्कार था, और इसमें कोई शर्त नहीं थी कि लिटरेचर का कार्य अंग्रेजी के अलावा किसी अन्य भाषा में लिखा जाना चाहिए। मैन बुकर इंटरनेशनल प्राइज के शुरुआती विजेताओं में एलिस मुनरो, लिडिया डेविस और फिलिप रोथ, साथ ही इस्माइल काडारे और लास्ज़लो क्रास्ज़नाहोर्काई जैसे नाम शामिल हैं।
इस प्राइज में दी जाने वाली पुरस्कार राशि मूल रूप से 21,000 पाउंड थी और 2002 में इसे बढ़ाकर 50,000 पाउंड कर दिया गया। 1971 में बुकर के नियम बदल दिए गए जिसका अर्थ है कि 1970 में प्रकाशित पुस्तकों पर 1970 या 71 में विचार नहीं किया गया था। 2010 में फाउंडेशन द्वारा एक विशेष पुरस्कार 'लॉस्ट मैन बुकर पुरस्कार' बनाया गया ताकि इसकी मदद से 1970 की 22 नोवल की एक लंबी लिस्ट में से एक विजेता का चुनाव किया जाए।
कौन चुनता है बुकर प्राइज विनर?
पुरस्कार के लिए विजेताओं का चयन करने के लिए फाउंडेशन एक एडवाइजरी कमेटी का चयन करती है। इस एडवाइजरी कमेटी में राइटर, दो पब्लिशर, एक लिटरेरी एजेंट, एक बुकसेलर, एक लाइब्रेरियन और एक चेयरपर्सन होते हैं। उसके बाद कमेटी एक जजिंग पैनल को सेलेक्ट करती है जो हर साल बदलती है। प्राइज के लिए लीडिंग क्रिटिक्स, राइटर्स और एकेडमिक से जज चुने जाते हैं।
गीतांजलि श्री से पहले इन भारतीय लेखकों को मिला है बुकर प्राइज
1. वी.एस. नायपॉल, किताब- इन ए फ्री स्टेट (1971)
2. सलमान रुश्दी, किताब- मिडनाइट्स चिल्ड्रन (1981)
3. अरुंधति रॉय, किताब- द गॉड ऑफ़ स्मॉल थिंग्स (1997)
4. किरण देसाई, किताब- द इनहेरिटेंस ऑफ़ लॉस (2006)
5. अरविंद अडिगा, किताब- द व्हाइट टाइगर (2008)