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Elgar Parishad Case : सुधा भारद्वाज की जमानत के खिलाफ NIA की याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने किया खारिज

Anonymous
7 Dec 2021 1:06 PM IST
Elgar Parishad Case : सुधा भारद्वाज की जमानत के खिलाफ NIA की याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने किया खारिज
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(सुधा भारद्वाज की जमानत को चुनौती देने वाली एनआईए की याचिका खारिज)

Elgar Parishad Case : जस्टिस यू.यू.लित और जस्टिस बेला त्रिवेदी की बेंच ने एजेंसी की याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि उसे जमानत देने के बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं मिला....

Elgar Parishad Case : सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने मंगलवार को एल्गार परिषद मामले (Elgar Parishad Case) में मानवाधिकार कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज (Sudha Bhardwaj) की दो गई डिफॉल्ट जमानत को चुनौती देने वाली राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) की अपील को खारिज कर दिया। जस्टिस यू.यू.लित और जस्टिस बेला त्रिवेदी की बेंच ने एजेंसी की याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि उसे जमानत देने के बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं मिला।

बॉम्बे हाईकोर्ट ने 1 दिसंबर को भारद्वाज को डिफॉल्ट जमानत इस आधार पर दी थी कि गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत उनकी नजरबंदी एक सत्र अदालत द्वारा बढ़ा दी गई थी जिसके पास ऐसा करने की कोई शक्ति नहीं थी।

हाईकोर्ट ने कहा था कि जब एनआईए एक्ट, 2008 के तहत नामित पुणे की एक विशेष अदालत में मौजूद थी सेशन जज के पास निर्धारित नब्बे दिनों से अधिक हिरासत बढ़ाने का अधिकार नहीं था। हाईकोर्ट ने निर्देश दिया था कि जमानत की शर्तों और उनकी रिहाई की तारीख तय करने के लिए 8 दिसंबर को उन्हें स्पेशल एनआईए कोर्ट के समक्ष पेश किया जाए।

हालांकि अदालत ने वरवरा राव, सुधीर धावले, वर्नोन गोंसाल्विस, रोना विल्सन, सुरेंद्र गाडलिंग, शोमा सेन, महेश राउत और अरुण फरेरा द्वारा दायार डिफॉल्ट जमानत याचिकाओं को खारिज कर दिया था।

एल्गार परिषद मामले में गिरफ्तार 16 आरोपियों में से सुधा भारद्वाज पहली ऐसी आरोपी हैं जिन्हें डिफॉल्ट जमानत दी गई है। कवि-कार्यकर्ता वरवरा राव फिलहाल मेडिकल जमानत पर बाहर हैं। स्टेन स्वामी की इस साल पांच जुलाई को मेडिकल जमानत का इंतजार करते हुए एक निजी अस्पताल में मौत हो गई थी।

मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में एनआईए की ओर से पेश हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अमन लेखी ने मामले की सुनवाई कर रही अदालत और रिमांड बढ़ाने की अनुमति देने वाली अदालत आदि के बीच अंतर करने की कोशिश की, लेकिन पीठ नहीं मानी।

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