संकट में गन्ना उत्पादक किसान: देश में 250 चीनी मिल बंद, पंजाब में सात और हरियाणा में दो पर लगा ताला
(70 प्रतिशत चीनी की खपत भारत में होती है।)
मनोज ठाकुर की रिपोर्ट
जनज्वार ब्यूरो/चंडीगढ़। देश में करीब 250 चीनी मिल बंद हो गई है। इसमें पंजाब की सात चीनी मिल शामिल है। फरीदकोट, तरनतारन, जीरा, बुढलाडा, मलोट में सहकारी चीनी मिलें, जगराओं और रखड़ा, और पतरन में निजी मिल बंद हो गई है। पंजाब में लगभग 2.34 लाख एकड़ गन्ने की खेती का रकबा है। प्रति एकड़ औसतन 350 से 400 क्विंटल गन्ना उत्पादन होता है। बंद होेने वाली चीनी मिलों में हरियाणा की भी दो चीनी मिल शामिल है। ग्रामीण विकास और उपभोक्ता मामले, खाद्य और राज्य मंत्री सार्वजनिक वितरण साध्वी निरंजन ज्योति ने यह जानकारी दी है।
संसद के मॉनसून सत्र में उन्होंने बताया कि देश में कुल 756 चीनी मिल में से 250 मिलें बंद हो गई है। महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा 66, उत्तर प्रदेश में 38, कर्नाटक में 22, बिहार और तमिलनाडु में 18-18, गुजरात में 14 और हरियाणा में दो हैं। इसके अलावा यह, अन्य राज्यों में 64 चीनी मिल चल नहीं रही है।
मंत्री ने बताया कि जो चीनी मिल आर्थिक दिक्कतों का सामना कर रही है, वह बंद हो गई है। कई जगह पर्याप्त मात्रा में गन्ना नहीं है। इसी तरह से कुछ जगह पर गन्ने से चीनी की रिकवर कम है,गन्ने के बढ़ते दाम की वजह से भी चीनी मिल घाटे में जा रही है।
भारत सरकार के अधीन कार्य करने वाले कृषि मूल्य एवं लागत आयोग के अनुसार भारत में हर साल चीनी की खपत 275 लाख टन की है, जो कि कुल उत्पादन का करीब 65-70 प्रतिशत होती है। भारत का चीनी उद्योग करीब एक लाख करोड़ रुपये का है।
70 प्रतिशत चीनी की खपत भारत में होती है। शीतल पेय बनाने वाली कंपनियां, आइसक्रीम, मिठाई की दुकानों, शादी समारोहों पर सबसे अधिक चीनी की खपत होती है।
युवा किसान संघ हरियाणा के अध्यक्ष प्रमोद चौहान ने बताया कि चीनी मिलों को लेकर केंद्र की कोई नीति नहीं है। हो यह रहा है कि हरियाणा और पंजाब में गन्ने के दो तरह के रेट है। एक रेट केंद्र की ओर से निर्धारित है। दूसरा रेट प्रदेश सरकार निर्धारित करती है। इस पर जम कर राजनीति होती है। इसमें समस्या यह है कि केंद्र अपने रेट के मुताबिक चीनी के भाव तय करता है। इस वजह से चीनी मिल लगातार घाटे में जा रहे हैं।
दूसरा कारण है कि यह है कि प्रदेश सरकार कोआपरेटिव चीनी मिल में अपनी राजनीतिक चमकाती रहती है। इस वजह से कोआपरेटिव चीनी मिल घाटे जाती रहती है। हरियाणा की बात करें तो यहां एक भी चीनी मिल मुनाफे में नहीं है। प्रदेश में 14 चीनी मिलों में 10 सहकारी चीनी, मिल, एक हैफेड की और तीन चीनी मिलें प्राइवेट हैं। इन चीनी मिलों का घाटा करीब पांच सौ करोड़ रुपये है।
प्रमोद चौहान ने बताया कि पिछले साल हरियाणा के सहकारिता मंत्री डॉ. बनवारी लाल ने तो चीनी मिल में गुड़ बनाने की योजना बना ली थी। यह एक दम अव्यवहारिक योजना है। जब तरह की लीडरशिप के हाथ में चीनी मिल होंगे तो इनका बंद होना निश्चित है।
इधर हरियाणा के अंबाला जिले के गांव मुगलाई के गन्ना उत्पादक किसान किरण दीप 32 ने बताया कि एक चीनी मिल के बंद होने का मतलब है,पांच हजार किसानों की आर्थिक िबदहाली। किसानों को एक एक साल गन्ने का भुगतान नहीं मिलता। इसके बाद भी वह चीनी मिल को गन्ना देते हैं। इस उम्मीद में कि मिल चलता रहेगा तो उनका भुगतान हो जाएगा। गन्ने को चीनी मिल में डालने के सिवाय किसानों पास दूसरा विकल्प नहीं है। इसका फायदा मिल प्रबंधन उठाता है।
इनेलो नेता अभय चौटाला ने कहा कि सरकार की चीनी मिल को चलाने की मंशा ही नहीं है। यह कोशिश नहीं की गई कि चीनी मिल मुनाफे में अाए। अब आर्थिक तंगी की बात कहते हुए बंद किया जा रहा है। यह गलत बात है। इससे किसान पूरी तरह से बदहाल हो जाएगा।
अभय चौटाला ने बताया कि गन्ने की खेती एक साल की होती है, यदि चीनी मिल बंद हो जाती है तो गन्ना उत्पादक कहां जाएगा? उसे तो गन्ना घास के भाव बेचना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि एक ओर तो सरकार दावा करती है कि तीन कृषि कानून किसानों के हित में है। यदि ऐसा है तो फिर देश में चीनी मिल क्यों बंद हो रहे हैं। इसके पीछे क्या कारण है? ज्यादातर चीनी मिल में गन्ने की खरीद का वहीं प्रावधान है, जो सरकार कृषि कानूनों के तहत दूसरी फसलों में करना चाह रही है।
इस से यहीं साबित हो जाता है कि सरकार फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य से बचते हुए निजी कंपनियों को खेती में लाना चाह रही है। जिससे किसानों का शोषण होता रहे। अब जो प्राइवेट क्षेत्र की चीनी मिल संचालक है, वह भी आर्थिक तंगी का बहना बनाते हुए गन्ना उत्पादक किसानों को शोषण करेंगे। क्योंकि वह यह दाव करेंगे कि यदि उनकी बात नहीं मानी गई तो वह चीनी मिल बंद कर देंगे।
कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहा कि भाजपा सरकार किसानों को बर्बाद करने पर तुली हुई है। कृषि कानून बना कर किसानों को बदहाली के कगार पर पटक दिया। बंद होते चीनी मिलों की वजह से गन्ना उत्पादक किसानों भुखमरी के शिकार हो जाएंगे। इस सरकार की किसानों को लेकर किसी भी तरह की नीति नहीं है।