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Lakhimpur Kheri Case : एसआईटी जांच टीम में एक ऐसी अधिकारी जिस पर मानवाधिकार आयोग लगा चुका है 5 लाख का जुर्माना
लखीमपुर खीरी हिंसा मामले में SIT की जांच टीम में शामिल विवादस्पद आईजी पद्मजा चौहान
Lakhimpur Kheri Case : लखीमपुर खीरी की घटना में मारे गए किसानों के मामले की जांच की निगरानी के लिए सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश का नाम तय कर दिया है। साथ ही एसआईटी में 3 आईपीएस अधिकारियों को निगरानी के लिए शामिल किया है। लखीमपुर खीरी हिंसा के मामले में बड़ी मुश्किलों के बाद एसआईटी जांच टीम का गठन हुआ है लेकिन इस जांच टीम में एक ऐसी अधिकारी है। जिसकी छवि नकारात्म रही है। एसआईटी जांच टीम में शामिल एन पद्मजा चौहान पर मानवाधिकार आयोग एक पत्रकार के उत्पीड़न का दोषी पाते हुए पांच लाख का जुर्मना लगा चूका है। साथ ही इस अधिकारी पर किसान नेताओं का शोषण समेत उत्पीड़न करने का आरोप है। जांच टीम को लेकर अखिल भारतीय किसान महासभा का कहना है कि 'अखिल भारतीय किसान महासभा सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय का स्वागत करती है और इसे पीड़ितों के अंदर न्याय के प्रति भरोसा जगाने वाला निर्णय मानती है। परन्तु एसआईटी में शामिल किए गए तीन वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों में से एन पद्मजा चौहान एक विवादास्पद अधिकारी रही हैं। लखीमपुर खीरी जिले में ही अपनी तैनाती के दौरान आईपीएस पद्मजा चौहान किसान आंदोलन के दमन में संलिप्त रही हैं। यही नहीं किसानों, शोषित पीड़ितों व पुलिसिया उत्पीड़न के शिकार लोगों की आवाज उठाने वाले लोकतंत्र के चौथे स्तंभ प्रेस पर भी उन्होंने हमला किया।'
मानवाधिकार आयोग ने लगाया था 5 लाख का जुर्माना
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार मानवधिकार ने 2010 में आईजी पद्मजा चौहान पर पुलिस उत्पीड़न की शिकार अमर उजाला की पत्रकार नीलू को पांच लाख रुपए देने जुर्माना लगाया था। समीउद्दीन उर्फ नीलू ने आयोग को भेजी अपनी शिकायत में आरोप लगाया था कि उसकी अखबारी रिपोर्टों से नाराज होकर जिले की पुलिस कप्तान पदमजा ने 2004 से लगातार उसका उत्पीड़न जारी रखा। इन खबरों में नीलू ने पुलिस के काले कारनामों और बेकसूर लोगों पर अत्याचारों का भंडाफोड़ किया था। बाद में उक्त पत्रकार ने पांच मई, 2006 को आयोग से फिर शिकायत की कि जिले की एसओजी की एक टीम ने नौ फरवरी को रात साढ़े दस बजे फर्जी मुठभेड़ में हत्या के इरादे से उसका अपहरण कर लिया था। उस वक्त वह अपने दफ्तर से घर लौट रहा था। उसे एसओजी के लोगों ने तब छोड़ा जब उसने उन्हें बताया कि वह पहले ही मानवाधिकार आयोग से शिकायत कर यह आशंका जता चुका है कि पुलिस उसे फर्जी मुठभेड़ में मौत के घाट उतार सकती है। इसके बावजूद उस पर वन्य जीवों के अवैध शिकार का झूठा आरोप लगाकर उसे हवालात में डाल दिया गया। दस दिन बाद वह जमानत पर छूटा तो भी कोतवाली के एसएचओ ने उसकी शिकायत दर्ज नहीं की। लिहाजा उसने आयोग से शिकायत कर मामले की जांच करने और पुलिस कप्तान पदमजा व एसओजी टीम के खिलाफ कार्रवाई की फरियाद की।
आयोग ने नीलू की शिकायत के बारे में राज्य सरकार से जवाब तलब किया। साथ ही सूबे के अपर पुलिस महानिदेशक (मानवाधिकार) को भी जांच कर आयोग के पास पुख्ता जानकारी भेजने का आदेश दिया। लेकिन इस जांच रिपोर्ट में अपर पुलिस महानिदेशक ने एक तो नीलू का पक्ष ही नहीं लिया और दूसरे पूरी जांच रिपोर्ट गुमराह करने वाली भेज दी। लिहाजा आयोग ने व्यवस्था दी कि एक प्रेस रिपोर्टर के अपने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का इस्तेमाल करने पर लखीमपुर की पुलिस ने उसका जमकर उत्पीड़न किया। उसे झूठे मामले में फंसाया गया और यह सब पुलिस कप्तान के इशारे पर हुआ।
नेताओं पर लगाया था गैंगस्टर एक्ट
लखीमपुर तहसील के गुठना बुजुर्ग गांव में जमीन की फर्जी विरासत के खिलाफ और गरीब किसानों की पट्टे की जमीन दिलाने के सवाल पर चले किसान आंदोलन में तत्कालीन एसपी पद्मजा ने आंदोलन की अगुवाई कर रहे अखिल भारतीय किसान महासभा के नेता कामरेड रामदरस, क्रांति कुमार सिंह सहित कई कार्यकर्ताओं पर गैंगस्टर एक्ट लगाया।
यही नहीं एसपी पद्मजा की इन दमनात्मक कार्यवाहियों का विरोध करने पर तराई के चर्चित किसान नेता अलाउद्दीन शास्त्री, ऐपवा की तत्कालीन राज्य सचिव अजंता लोहित (अब दोनों दिवंगत) सहित कई किसान कार्यकर्ताओं को जेल भेज दिया गया। इसके अलावा बुलंदशहर और बदायूं में तैनाती के दौरान भी उनका कार्यकाल विवादों में रहा।
जारी प्रेस विज्ञप्ति
भाकपा (माले) ने तिकुनिया कांड की जांच को सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित एसआईटी में आईजी पद्मजा चौहान को रखने पर पुनर्विचार की अपील की है।
पार्टी के राज्य सचिव सुधाकर यादव ने कहा कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने लखीमपुर खीरी में पुलिस अधीक्षक पद पर रहने के दौरान उक्त आईपीएस अधिकारी को एक मीडियाकर्मी का अमानवीय उत्पीड़न करने का दोषी पाया था। आयोग ने आईपीएस पद्मजा के विरुद्ध आदेश पारित किए थे और उनकी उत्पीड़नात्मक कार्रवाइयों पर पांच लाख रुपया बतौर मुआवजा पीड़ित पत्रकार को देने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार को निर्देश जारी किए थे। उक्त अधिकारी ने माले के दो आंदोलनकारी नेताओं के विरुद्ध गैंगस्टर लगाकर उन्हें भी परेशान किया था।
यही नहीं, भारतीय प्रेस परिषद ने भी उन्हें पत्रकार के उत्पीड़न का दोषी पाया था और उनकी पोस्टिंग को लेकर प्रतिकूल टिप्पणी की थी। हालांकि कोर्ट द्वारा आयोग के आदेश पर 'स्टे' के चलते उक्त अधिकारी का प्रोमोशन होता रहा, मगर मामला पूरी तरह अभी भी खत्म नहीं हुआ है।
कामरेड सुधाकर ने कहा कि तिकुनिया कांड में चार किसानों के अलावा एक पत्रकार को भी कुचल कर मारा गया है।आईपीएस पद्मजा की प्रेस व जन आंदोलन-विरोधी अतीत का दृष्टांत मौजूद रहते हुए एसआईटी में रखने से जांच की निष्पक्षता का मकसद प्रभावित होने का अंदेशा बना रहेगा, जो निराधार नहीं है। ऐसे में उन्हें विशेष जांच दल में रखे जाने पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए।