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क्या है PRA जिसकी वजह से CM Post से हाथ धो सकते हैं हेमंत सोरेन? सोनिया और जया भी गंवा चुकी हैं सदस्यता

Janjwar Desk
25 Aug 2022 7:59 AM GMT
क्या है PRA जिसकी वजह से CM Post से हाथ धो सकते हैं हेमंत सोरेन? सोनिया और जया भी गंवा चुकी हैं सदस्यता
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Jharkhand News : लोक सेवक होने के नाते निर्वाचित जनप्रतिनिधि, विधायक या सांसद, जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 9ए और संविधान के अनुच्छेद 102 और 191ई के तहत लाभ का पद धारण नहीं कर सकते।


खतरे में सीएम हेमंत सोरेन की कुर्सी कैसे पर धीरेंद्र मिश्र की रिपोर्ट


Jharkhand News : लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 ( PRA 1951 ) के तहत लाभ के पद ( Post of Profit ) को लेकर गुरुवार यानि 25 अगस्त को चुनाव आयोग ( Election Commission ) द्वारा लिए गए एक फैसले से झारखंड ( Jharkhand ) की राजनीति में भूचाल की स्थिति है। ईसी के इस फैसले की वजह से सीएम हेमंत सोरेन ( Hemant Soren ) अपना पद गंवा सकते हैं। ऐसा इसलिए कि चुनाव आयोग ने उन्हें अवैध खनन मामले में दोषी पाया है। साथ ही अपनी रिपोर्ट राज्यपाल को भेज दी है। खास बात ये है कि झारखंड के राज्यपाल रमेश बैस ने ही चुनाव आयोग से इस मसले पर कुछ माह पूर्व नियमानुसार कार्यवाही को लेकर राय मांगी थी। चूंकि, आयोग ने अपनी रिपोर्ट राज्यपाल को भेज दी है इसलिए सीएम सोरेन का पद गंवना लगभग तय ही माना जा रहा है। ऐसे में अहम सवाल यह है कि आखिर लोक प्रतिनिधित्व क्या है जिसकी वजह से हेमंत सोरेन का पद खतरे में आ गया है।

क्या है लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951

लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 ( PRA 1951 ) संसद के दोनों सदनों और प्रत्येक राज्य के विधानसभा या सदनों के चुनाव और उन सदनों की सदस्यता के लिए जरूरी योग्यता और अयोग्यता निर्धारण का कानूनी प्रावधान है। इसे आप चुनावों में या उसके संबंध में भ्रष्ट आचरण, अन्य अपराध और चुनाव के संबंध में उत्पन्न होने वाले संदेहों और विवादों का निर्णय करने का संवैधानिक व्यवस्था भी मान सकते हैं। यह अधिनियम देश के पहले आम चुनाव से पूर्व भारतीय संविधान के अनुच्छेद 327 के तहत अधिनियमित किया गया था।

लोक सेवक होल्ड नहीं कर सकते लाभ का पद

भारत के संविधान से मिली शक्ति के आधार पर संसद द्वारा अधिनियमित लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 में इस बात का भी उल्लेख है कि एक सांसद या विधायक की अयोग्यता पर सीट तुरंत खाली हो जाती है। 19 नवंबर, 2013 को सुप्रीम कोर्ट द्वारा लिए गए एक फैसले के मुताबिक लोक सेवक होने के नाते, निर्वाचित प्रतिनिधि, विधायक या सांसद, जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 9ए और संविधान के अनुच्छेद 102 और 191ई के तहत लाभ का पद धारण नहीं कर सकते हैं।

सोनिया और जया को भी देना पड़ा था इस्तीफा

साल 2006 में यूपीए वन के शासनकाल में सोनिया गांधी ( Sonia Gandhi ) के खिलाफ भी लाभ के पद का मामला सामने आया था। उस समय सोनिया गांधी रायबरेली से सांसद थीं। इसके साथ ही वह यूपीए सरकार के समय गठित राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की चेयरमैन भी थीं, जिसे लाभ का पद करार दिया गया था। इसकी वजह से सोनिया गांधी को लोकसभा सदस्यता से इस्तीफा देना पड़ा, जिसके बाद उन्होंने रायबरेली से दोबारा चुनाव लड़ना पड़ा था। 2006 में ही बिग बी की पत्नी जया बच्चन ( Jaya Bachchan ) को लाभ के पद को दोषी माना गया था। उस समय जया बच्चन राज्यसभा सांसद थीं। इसके साथ ही वह उत्तर प्रदेश फिल्म विकास निगम की चेयरमैन भी थीं, जिसे लाभ का पद करार दिया गया और चुनाव आयोग्य ने जया बच्चन को अयोग्य ठहराया था। हालांकि, जया बच्चन ने इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गईं लेकिन उन्हें राहत नहीं मिली। इसकी वजह से जया बच्चन की संसद सदस्यता रद्द हो गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया कि अगर किसी सांसद या विधायक ने लाभ का पद लिया है तो उसकी सदस्यता निरस्त हो जाएगी चाहे उसने वेतन या दूसरे भत्ते लिए हों या नहीं।

लाभ का पद क्या होता है?

संविधान के अनुच्छेद 102 के तहत सांसद या विधायक ऐसे किसी अन्य पद पर नहीं हो सकते जहां वेतन, भत्ते या अन्य दूसरी तरह के फायदे ( Post of Profit ) मिलते हों। इसके अलावा संविधान के अनुच्छेद 191 और जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 9 के तहत भी सांसदों और विधायकों को अन्य पद लेने से रोकने का प्रावधान है।

EC ने हेमंत सोरेन को भी माना लाभ के पद का दोषी

ताजा मामले में चुनाव आयोग ( Election Commission ) ने अवैध खनन मामले का आरोप सही पाये जाने के बाद सीएम हेमंत सोरेन को लाभ के पद का दोषी पाया है। इस आधार पर ईसी ने विधानसभा सदस्यता रद्द करने की सिफारिश राज्यपाल रमेश बैस से की है। पिछले कई महीने से चुनाव आयोग इस मसले पर काम कर रहा था। इस बाबत चुनाव आयोग ने हेमंत सोरेन से जवाब भी मांगा था। हाल ही में हेमंत सोरेन ने चुनाव आयोग को अपना जवाब भेज दिया था। तभी से कयास लगाए जा रहे थे कि लाभ के पद के मामले में उनकी कुर्सी छिन सकती है। चूंकि, विधानसभा सदस्यता रद्द करने की चुनाव आयोग ने सिफारिश की है इसलिए उनका सीएम के पद पर बने रहना मुश्किल है। बताया जा रहा है कि चुनाव आयोग ने जन प्रतिनिधित्व कानून के तहत ये कार्रवाई की है।

पोस्ट ऑफ प्रोफिट का ये है पूरा मामला

दरअसल, पोस्ट ऑफ प्रोफिट ( Post of Profit ) का मामला हेमंत सोरेन द्वारा खुद को खनन पट्टा देने से जुड़ा है। यानि सीएम सोरेन पर खुद को लाभ के पद रखने के आरोप है। हेमंत सोरेन पर झारखंड का सीएम रहते खनन पट्टा खुद को और अपने भाई को जारी करने का आरोप है। चौंकाने वाली बात ये है कि खनन मंत्रालय भी सीएम के पास ही है। चूंकि सीएम का पद लोक सेवक का पद माना जाता है, इसलिए सोरेन लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम के दायरे में भी आते हैं। लोक सेवक होते हुए कोई भी व्यक्ति अन्य लाभ का पद धारण नहीं कर सकता और न ही परिवार के सदस्य को लाभ पहुंचा सकता है। इस बाबत राज्यपाल से सुझाव मांगने पर चुनाव आयोग ने इस मामले की जांच की और जांच की रिपोर्ट चुनाव आयोग ने राज्यपाल को भेज दी है। अब संविधान के अनुच्छेद 192 के तहत किसी सदस्य को आयोग्य ठहराने को लेकर आखिरी फैसला राज्यपाल को करना है।

BJP ने लाभ के पद को बनाया था मुद्दा

झारखंड ( Jharkhand ) भाजपा ( BJP ) ने काफी जोर शोर से सीएम हेमंत सोरेन ( Hemant Soren ) के खिलाफ लाभ के पद का मसला उठाया था। भाजपा ने सीएम सोरेन की सदस्यता रद्द करने की मांग की थी। भाजपा ने राज्यपाल से सीएम की विधायकी रद्द करने की मांग की थी। राज्यपाल से चुनाव आयोग से राय देने को कहा था। ईसी ने इस मामले की सुनवाई 18 अगस्त को पूरी कर ली थी। अब चुनाव आयोगी अपनी जांच रिपोर्ट भी राज्यपाल को भेज दी है। अब फैसला राज्यपाल को करना है। ये तो वक्त ही बाताएगा कि सीएम सोरेन की सदस्यता रद्द होती है या नहीं।

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