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शिक्षा

बीएचयू छात्र की हत्या के बाद मामला बना ब्राह्मण बनाम ठाकुर

Prema Negi
4 April 2019 4:45 AM GMT
बीएचयू छात्र की हत्या के बाद मामला बना ब्राह्मण बनाम ठाकुर
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जिस विश्वविद्यालय में हत्या का आरोपी चीफ प्रॉक्टर हो, वहां विश्वविद्यालय की कानून व्यवस्था की हालत अच्छी तरह समझी जा सकती है...

जनज्वार, वाराणसी। डेढ़ दशक पहले तक छात्रों के बीच गैंगवार और जातिगत गुंडागर्दी के लिए चर्चित रहने वाला बीएचयू फिर एक बार यूनिवर्सिटी से निलंबित छात्र गौरव सिंह की हत्या के बाद चर्चा में है और चुनाव के इस माहौल में पूरे मामले को ब्राह्मण बनाम ठाकुर का रूप देने की कोशिश की जा रही है। जबकि सच यह है कि यह दो छात्रों क बीच आपसी रंजिश का मामला लगता है, जिसमें गौरव सिंह की मंगलवार 2 अप्रैल को कट्टे से गोली मारकर हत्या कर दी गई है।

जानकारी के मुताबिक बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में 2 अप्रैल की रात बिरला हॉस्टल के बाहर गैंगवार में एक छात्र की हत्या कर दी गई। गंभीर हालत में छात्र को ट्रामा सेंटर में एडमिट कराया गया, जहां देर रात उसने दम तोड़ दिया। इस हत्या मामले में यूनिवर्सिटी के चीफ प्रॉक्टर प्रो. रोयना सिंह और अन्य 4 अन्य लोगों के खिलाफ केस दर्ज कराया गया है। हालांकि पुलिस ने दो छात्रों को इस मामले में गिरफ्तार भी किया है।

बीएचयू के छात्रों का कहना है कि यह मामला गैंगवार का है। मरने वाला एमसीए छात्र गौरव सिंह की पृष्ठभूमि भी आपराधिक रही है। इस मामले में बीएचयू के ही छात्र पवन मिश्रा का नाम सामने आ रहा है। पुलिस ने भीशुरुआती जांच के बाद कहा है कि यह हत्या वहीं के छात्र पवन मिश्रा के इशारे पर की गई है।

एमसीए प्रथम वर्ष का छात्र बीएचयू का सस्पेंड छात्र था। गौरव सिंह के पिता राकेश कुमार सिंह बीएचयू सेंट्रल आफिस में बड़े बाबू हैं। बिड़ला हॉस्टल में गौरव की दबंगई की बात उसके साथी छात्र भी स्वीकारते हैं। कहा जा रहा है कि अनुशासनहीनता के चलते ही उसे यूनिवर्सिटी से निष्कासित किया गया था। पहले भी उसे कई बार वार्निंग मिलती रहती थी, मगर उसके पिता राकेश कुमार सिंह चूंकि बीएचयू सेंट्रल आफिस में बड़े बाबू हैं, उन्हीं की धौंस दिखा वह दबंगई करता रहता था।

विश्वविद्यालय की यह स्थिति इसलिए भी है क्योंकि प्रॉक्टर छात्रों के बीच गुटबाजी कराने और जातिगत गोलबंदी कराने के आरोप लगते रहे हैं। नाम न छापने की शर्त पर बीएचयू का एक छात्र कहता है, प्रॉक्टर रोयना सिंह खुद ही छात्रों की वाजिब मांगों को दबाने के लिए दबंग छात्रों को शह देती रहती हैं। जिस विश्वविद्यालय में हत्या का आरोपी चीफ प्रॉक्टर हो, वहां विश्वविद्यालय की कानून व्यवस्था की हालत अच्छी तरह समझी जा सकती है।

विश्वविद्यालय के कुलपति राकेश भटनागर अपने डेढ़ साल के कार्यकाल में आधे से भी ज्यादा समय छुट्टियों पर रहते हैं। घटना के 4 दिन पहले से प्रॉक्टर छुट्टी पर हैं, वीसी और पहले से छुट्टियों पर चल रहे हैं। घटना के वक्त भी ये दोनों छुट्टियों पर थे। गौरव सिंह की हत्या के दूसरे दिन 3 अप्रैल को यूनिवर्सिटी बंद रही, उसके बाद भी छात्र खौफ में हैं।

शुरुआती जांच के बाद पुलिस का कहना है कि बिहार के बक्‍सर जनपद के रहने वाले छात्र पवन मिश्रा ने बीएचयू कैंपस में कुछ दिनों पहले ही एक अन्य छात्र अभिजीत पर कट्टे की मुठिया से प्रहार करने के साथ हवाई फायरिंग भी की थी। इस मामले में मुकदमा दर्ज होने के बाद पुलिस ने उसे गिरफ्तार किया था। तभी से पवन मिश्रा जेल में बंद है। पुलिस के मुताबिक मुकदमा दर्ज कराने को लेकर पवन मिश्रा गुट की गौरव सिंह और उसके साथियों से तकरार चल रही थी। इसको लेकर गौरव को अंजाम भुगतने की धमकी मिली थी।

गौरतलब है कि बीएचयू में हाल वर्षों में हुई कई घटनाओं में मृतक छात्र गौरव का नाम सामने आ चुका है। 20 दिसम्‍बर, 2017 को छात्रनेता आशुतोष की गिरफ्तारी के बाद हुई तोड़फोड़ और आगजनी की घटना में भी पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर जेल भेजा था। यही नहीं विश्वविद्यालय प्रशासन ने गौरव पर जुर्माना भी ठोका था, बाद में उसे विश्‍वविद्यालय से निष्‍कासित कर दिया गया। गौरव ही नहीं उसका भाई सौरभ भी कुछ दिनों पहले हुए बवाल में शामिल रहा था, जिसके चलते उसे भी निष्‍कासित किया गया है।

जानकारी के मुताबिक गौरव को तब गोलियों से भून दिया गया जब वह बीएचयू में बिरला 'ए' हॉस्टल के बाहर अपने कुछ साथियों के साथ खड़ा था। गौरव हत्याकांड के बाद उसके साथियों ने आक्रोशित हो ट्रामा सेंटर में पहुंच तोड़फोड़ की। अभी भी बीएचयू कैंपस में स्थिति बेहद तनावपूर्ण बनी हुई है।

मगर इस घटना के बाद बीएचयू कैंपस सुरक्षा व्यवस्था को लेकर तमाम सवाल उठने शुरू हो गए हैं। बीएचयू की सुरक्षा व्यवस्था पर प्रतिवर्ष करोड़ों रुपये खर्च होते हैं, मगर बावजूद इसके यहां इस तरह की घटना का होना प्रबंधन पर सवालिया निशान लगाता है। यहां आए दिन आप​राधिक घटनाएं होती रहती हैं, मगर चीफ प्रॉक्टर और कुलपति के कान में जूं भी नहीं रेंगती, अगर रेंगती तो इस तरह की घटनाएं नहीं होती। छात्र कट्टा लेकर कैंपस में नहीं घूमते।

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