एक तरफ धड़ल्ले से हो रही है वन्यजीवों की तस्करी तो दूसरी तरफ सुंदरबन में रहने वाले रॉयल बंगाल टाइगर्स का भविष्य है खतरे में, वैज्ञानिकों का अध्ययन बताता है जलवायु परिवर्तन और सागर तल में हो रही बेतहाशा वृद्धि है इसका मुख्य कारण....
महेंद्र पाण्डेय, वरिष्ठ लेखक
फरवरी के महीने में चेन्नई के अन्तरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर कस्टम अधिकारियों को बैंकाक से आये एक व्यक्ति के बैग से अजीब सी आवाजें सुनाई दीं। जब बैग की तलाशी ली गयी, तब उसमें एक पिंजरे में चीता के एक शावक रखा मिला। देश के अनेक हवाई अड्डों पर इस तरह की घटनाएँ होती रहती हैं।
जाहिर है भारत दुनिया में वन्यजीवों की तस्करी का एक मुख्य केंद्र बन चुका है। समुद्री कछुए, सी कुकुम्बर, पैन्गोलिन इत्यादि देश के बाहर भेजे जाते हैं और दूसरे देशों से खूबसूरत प्रजातियाँ देश के अन्दर अवैध तरीके से लाई जातीं हैं।
वन्यजीवों का सबसे बड़ा बाजार चीन और दक्षिण-पूर्व एशिया के अन्य देश हैं। इसके अतिरिक्त खाड़ी के देश, यूरोप और अमेरिका में इसमें शामिल है। पूरे व्यापार में भारत समेत नेपाल, बांग्लादेश, भूटान, श्रीलंका और म्यांमार जैसे देश सक्रिय तौर पर शामिल हैं। भारत से बाहर भेजे जाने वाले सामानों में बाघ और तेंदुए का चमड़ा, हड्डियां और शरीर के अंग, गैंडे की सींघ, हाथी दांत, कछुए, सी हॉर्सेज, सांप का चमडा और विष, नेवले के बाल, टोके गीको, सी कुकुम्बर, चिरु, मुश्क पॉड्स, भालू के अंग, विभिन्न प्रकार के पक्षी, औषधि गुण वाले पौधे और चन्दन की लकड़ी है। इसमें भी सबसे अधिक तस्करी कछुए, सी हॉर्सेज और पेंगोलिन की होती है।
ट्रैफिक इंडिया की 2018 की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2009 से 2017 के बीच कुल 5772 पेंगोलिन तस्करी के लिए पकड़े गए थे, पर इन्हें तस्करों से बचाकर वापस वनों में छोड़ दिया गया। पेंगोलिन दुनिया में सबसे अधिक तस्करी किया जाने वाला जानवर है। सी हॉर्सेज की तस्करी इसके तथाकथित औषधीय गुणों के लिए की जाती है, जबकि कछुओं को पालतू बनाया जाता है। टोके गेको छिपकली की एक प्रजाति है और कहा जा रहा है कि इससे एड्स की औषधि तैयार की जा सकती है। पिछले वर्ष ही लगभग 1000 टोके गेको को तस्करों से मुक्त कराया गया है, और लगभग 200 तस्कर पकड़े गए।
हमारे देश की जैविक विविधता अतुलनीय है। दुनिया की भूमि का कुल 2.4 प्रतिशत हमारे देश में है जबकि दुनिया के वन्यजीवों में से 8 प्रतिशत हमारे देश में हैं। यहाँ वनस्पतियों की 45000 प्रजातियाँ और जंतुओं की 91000 प्रजातियाँ मिलतीं हैं। हमारे देश में जनसंख्या का घनत्व अत्यधिक होते हुए भी 662 क्षेत्र ऐसे है जो वन्य प्राणियों के लिए संरक्षित हैं, इनमें से 5 क्षेत्र तो यूनेस्को की धरोहर सूची में शामिल हैं। पूर्वी हिमालय, पश्चिमी घाट, भारत-म्यांमार सीमावर्ती क्षेत्र और अंडमान और निकोबार द्वीप समूह तो जैव-विविधता के केंद्र हैं।
वन्यजीवों के संरक्षण और इन्हें तस्करी से बचाने के लिए नियम-क़ानून सख्त हैं फिर भी हमारे देश से वन्यजीवों की तस्करी बड़े पैमाने पर होती है और दुनियाभर के तस्करों के लिए यह एक केंद्र जैसा काम करता है। तस्करी के अतिरिक्त वन्यजीवों की दूसरी भी समस्याएं हैं।
हाल में ही साइंस ऑफ़ टोटल एनवायरनमेंट नामक जर्नल में प्रकाशित शोधपत्र के अनुसार सुंदरबन में रहने वाले रॉयल बंगाल टाइगर्स का भविष्य खतरे में है। बांग्लादेश और ऑस्ट्रेलिया के वैज्ञानिकों के संयुक्त दल ने अध्ययन कर बताया है कि जलवायु परिवर्तन और सागर तल में हो रही बेतहाशा वृद्धि इसका मुख्य कारण है।
संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार केवल रॉयल बंगाल टाइगर्स ही नहीं बल्कि जमीन पर रहने वाली लगभग 5 लाख प्रजातियों का अस्तित्व खतरे में है। भारत और बांग्लादेश के लगभग 10400 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में सुंदरबन स्थित है और अपने मैन्ग्रोव वनों और रॉयल बंगाल टाइगर्स के लिए पूरी दुनिया में विख्यात है। इसका लगभग 70 प्रतिशत भाग सागर तल से कुछ सेंटीमीटर ही ऊपर है।
अभी के सागर तल में बढ़ोत्तरी की दर के अनुसार वैज्ञानिकों का अनुमान है कि वर्ष 2070 तक सुंदरबन पूरा का पूरा बंगाल की खाड़ी में समां जाएगा। वर्ष 2010 में वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फण्ड ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि वर्ष 2050 तक इस क्षेत्र में सागर तल लगभग 28 सेंटीमीटर तक ऊंचा होगा और ऐसी अवस्था में सुंदरबन का 96 प्रतिशत क्षेत्र डूब चुका होगा।
यहाँ यह भी ध्यान रखना आवश्यक है कि इस क्षेत्र में ज्वारभाटा की ऊँचाई की दर विश्व के औसत से कहीं अधिक है। रॉयल बंगाल टाइगर्स की संख्या भी लगातार कम हो रही है। वर्ष 1900 के आसपास लगभग एक लाख टाइगर थे, जबकि अब महज 4000 टाइगर ही बचे हैं।
दूसरी तरफ इस क्षेत्र में भी इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट लगने लगे हैं और एक बड़ी आबादी बसती भी है। इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स तिगेर्स के स्वच्छंद विचरण में बाधा पहुंचाते हैं और उन्हें विस्थापित करते हैं। दूसरी तरफ इसमें बसने वाली और मैन्ग्रोव वनों पर गुजर-बसर करने वाली आबादी और टाइगर्स के मुठभेड़ की खबरें आती रहतीं हैं। जब, सागर तल के बढ़ने से यहाँ भूमि की कमी होगी, जब ऐसे मुठभेड़ और बढ़ेंगे और इसमें नुकसान टाइगर्स का ही होना है।