भारत में गरीब बढ़ी, अमीरों ने की तरक्की (प्रतीकात्मक फोटो)
प्रत्यूष चन्द्र की 5 कविताएं
महासभा
आज सूरज की तीव्रता,
आसमान के नीलेपन को ढांपते
बेमौसम कालिख कैसे पुत गई?
इतने गिद्ध और चील कहाँ से आ गए?
झोपड़ों, बहुमंजिलों और मैदानों पर मंडराते
मानो भक्षियों की विशाल महासभा हो रही है।
प्रतिनिधित्व के काँव काँव में
सड़कों और घरों की आवाजें दब गई हैं
जैसे मेजों पर रखे फाइलों के नीचे
जिंदा आदमी की ज़िन्दगी...
संसद में कविता
आज जब संसद में कविताओं की बारिश हो रही है
शब्द बेधड़क टपकते हैं
जैसे सिर पर ओले
हमें यह मान लेना चाहिये कि कविताओं के दिन लद गए
ये कविताएं नहीं नश्तर हैं
जो सीधे हमारी ओर बढ़ रहे
जहां आदमी और आदमियत
थक कर सड़ रहे
मगर इसके हर वार का जवाब हमारे पास है
हम उनके नश्तर का जवाब खाली कनस्तर से देंगे
जिनके शोर के आगे अच्छे अच्छे गामाओं को
हमने पिद्दी बनते देखा है
हमारी भूख के आगे कितने शेर को
गीदड़ बनते देखा है
भागते देखा है
अपने दुर्ग की ओर
फिर अन्दर से मुर्ग के शोर
अपना किला जगाने के लिए
बस्तियों में आग लगाने के लिए
भाइयों को लड़ाने के लिए
फिर पंचों में सरपंच बनने के लिए
कविताओं की बारिश हो रही है
नया आंदोलन
सुना है नया आंदोलन छिड़ेगा
स्वच्छता में तरलता लानी है
देवगण गाड़ियों से उतरेंगे
पेप्सी बिसलेरी रम स्कॉच के बोतलों में
अब बारिश का पानी है
बूंद बूंद बटोरेंगे
पानी राष्ट्र निर्माण के लिये बचाना है
बिसलेरी बहुत महंगा है
हम सस्ता पानी बेचेंगे
हम वैदिक पानी बेचेंगे
क्लोरीन, आर ओ की ज़रूरत नहीं
गोमूत्र काफी है
जैसे रक्त के लिए साफ़ी है
गोमूत्र हरेक के पास नहीं है तो क्या
एक बूंद उसका हर मूत्र को गोमूत्र बना देता है
तुम नहीं जानते एक मछली पूरे तालाब को गंदा करती है?
गजब है उसकी शक्ति
माता की शक्ति कैसी होगी
जो सारी गंदगी को मंदा करती है
गजब है उसकी शक्ति
गजब है अपनी भक्ति
वैंगार्ड
कौन कहता है कि तुम गलत हो मैं नहीं मानता
जब तक तुम दिखते थे सड़कों पर जागते और जगाते
हम सबने देखा किया तुम पर पूरा विश्वास
मसीह के समान तुम्हारी तेज़ी जो आज भी कम नहीं है
जब तुम मशीन में लद चुके हो इंतजार है हमें
कि यकायक थम जायेगा तुम्हारे दम से इसका चलना
तुममें हमने अपना अग्रज देखा तुम्हारा धैर्य
तुम्हारी चतुराई जो आज भी कम नहीं हैं
जब तुम बह गए या पिस गए मशीन ने ढाल लिया
अपने रूप में तुम्हें तुम गलत नहीं हो
सरकार है
बात बात पर निकल आते हैं खंजर
सचमुच किसी ज़ोरदार सरकार की ज़रूरत पड़ी है
जिसके हाथों में चुम्बक है
सारे खंजरों को हरेक हाथ से छीन ले
फिर करे मुद्रित जिसे चाहता करना
बाकियों को पड़ेगा मरना
सरकार है सरकार के आगे झुको
फिर करो मारने मरने का पर्व
अगर आखेट में भी मृत्यु हो
गम न कर सरकार है
मारने वाला जवां
मरने वाला आततायी या कोई हुतात्माई