Indian Student Stranded Ukraine : यूक्रेन में पढ़ने वाले 90% भारतीय छात्र मेडिकल की प्रवेश परीक्षा NEET नहीं कर पाते पास : प्रह्लाद जोशी
Indian Student Stranded in Ukraine : रूस और यूक्रेन के बीच जारी जंग में फंसे हजारों भारतीय छात्रों को लेकर मोदी के मंत्री ने परेशान करने वाला बयान दिया है। केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी का ये बयान यूक्रेन में फंसे करीब 18 हजार छात्रों और उनके अभिभावकों के लिए जले पर नमक छिड़कने वाला है। संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने बताया है कि मेडिकल की पढ़ाई करने के लिए विदेश जाने वाले 90% स्टूडेंट्स भारत में NEET एग्जाम पास नहीं कर पाते हैं।
मोदी के मंत्री प्रह्लाद जोशी ने कहा कि विदेश जाने वाले 90% मेडिकल स्टूडेंट्स वो होते हैं जो नीट क्लियर नहीं कर पाते हैं। हालांकि, उन्होंने कहा कि इस पर बहस करने का सही वक्त अभी नहीं है।
बता दें कि भारत में हर साल लाखों छात्र NEET की परीक्षा देते हैं। इनमें से कई कटऑफ लिस्ट में आ जाते हैं लेकिन उन्हें सरकारी मेडिकल कॉलेज में जगह नहीं मिलती है। ऐसे छात्रों को डॉक्टर बनने का सपना पूरा करने के लिए निजी मेडिकल कॉलेजों में एक करोड़ रुपए से अधिक फीस चुकानी पड़ती है। हर कोई इतनी फीस चुकाने में सक्षम नहीं होता है। ऐसे में डॉक्टर बनने का सपना पूरा करने के लिए छात्र यूक्रेन, रूस, फिलीपींस और यहां तक कि बांग्लादेश जैसे देशों का रुख करते हैंं भारत की तुलना में इन देशों में डॉक्टरी की पढ़ाई का खर्च बहुत कम है।
यूक्रेन में 6 साल में मिल जाती है MBBS की डिग्री
जहां तक यूक्रेन की बात है तो वहां पर फॉरन मेडिकल ग्रैजुएट लाइसेंसिएट रेग्युलेशंस के नए नियमों के मुताबिक कोई स्टूडेंट एमबीबीएस का कोर्स 10 वर्षों में पूरा कर सकता है। एमबीबीएस के लिए कम से कम 4.5 वर्ष का कोर्स वर्क होता है। दो वर्ष का इंटर्न और एक वर्ष उस देश में जहां से कोर्स पूरा किया और एक वर्ष भारत में। यूक्रेन में एमबीबीएस की डिग्री छह वर्षों में मिल जाती है।
60% भारतीय करते हैं इन देशों का रुख
एमबीबीएस की पढ़ाई के लिए बाहर जाने वाले 60% भारतीय स्टूडेंट्स चीन, रूस और यूक्रेन पहुंचते हैं। इनमें भी करीब 20% अकेले चीन जाते हैं। इन देशों में एमबीबीएस के पूरे कोर्स की फीस करीब 35 लाख रुपए पड़ती है जिसमें छह साल की पढ़ाई, वहां रहने, कोचिंग करने और भारत लौटने पर स्क्रीनिंग टेस्ट क्लियर करने का खर्च शामिल होता है। इसकी तुलना में भारत के प्राइवेट कॉलेजों में एमबीबीएस कोर्स की केवल ट्यूशन फीस ही 45 से 55 लाख रुपये या इससे भी ज्यादा पड़ जाती है।
हर साल 25 हजार मेडिकल स्टूडेंट्स जाते हैं विदेश
ताजा अनुमान के मुताबिक करीब 25 हजार मेडिकल स्टूडेंट्स हर वर्ष विदेश जाते हैं। भारत में मेडिकल की पढ़ाई के लिए NEET एंट्रेंस एग्जाम पास करना होता है। यहां हर वर्ष सात से आठ लाख स्टूडेंट्स NEET क्वॉलिफाइ करते हैं। लेकिन देशभर में मेडिकल की सिर्फ 90 हजार से कुछ ही ज्यादा सीटें हैं। इनमें आधे से कुछ ज्यादा सीटें सरकारी मेडिकल कॉलेजों में हैं जहां से पढ़ाई सस्ती है। एडमिशन तभी मिल सकता है जब नीट में बेहतरीन स्कोर मिले। प्राइवेट कॉलेजों की सरकारी कोटा वाली सीटों में एडमिशन के लिए भी नीट में हाई स्कोर हासिल करना होता है। अगर स्कोर कम है तो प्राइवेट कॉलेजों में सरकारी कोटा सीटों पर एडमिशन नहीं हो पाता है। मैनेजमेंट कोटे से एडमिशन की फीस बहुत ज्यादा हो जाती है।
भारत में मेडिकल की सिर्फ 60 हजार सीटें
देश में प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों और डीम्ड युनिवर्सिटीज में 60,000 सीटें हैं। ये इंस्टीट्यूट्स सालाना 18 लाख से 30 लाख रुपए तक फीस चार्ज करते हैं। पांच साल के कोर्स के लिए यह राशि 90 लाख से 1.5 करोड़ रुपये तक होती है। देश में मेडिकल की करीबन 1,00,000 सीटों के लिए 16,00,000 से अधिक छात्र से परीक्षा देते हैं। कोचिंग के लिए भी छात्रों को लाखों रुपये खर्च करने पड़ते हैं। तमिलनाडु सरकार द्वारा गठित एक समिति के मुताबिक कोचिंग के लिए समृद्ध परिवारों के छात्र 10 लाख रुपए तक खर्च करते हैं।
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक यूक्रेन में 18 हजार से ज्यादा भारतीय छात्र-छात्राएं पढ़ाई करते हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि वहां मेडिकल में भारत जैसी गलाकाट प्रतिस्पर्द्धा नहीं है। यूक्रेन की मेडिकल डिग्री की मान्यता भारत के साथ-साथ डब्ल्यूएचओ, यूरोप और ब्रिटेन में है। यानी यूक्रेन से मेडिकल करने वाले छात्र दुनिया के किसी भी हिस्से में प्रैक्टिस कर सकते हैं। यूक्रेन के कॉलेजों में एमबीबीएस की पढ़ाई की सालाना फीस 4-5 लाख रुपये है जो कि भारत के मुकाबले काफी कम है।