दलित बालक ने टूटा हुआ आम क्या उठाया, गुस्साए सवर्ण ने सजा देने के लिए मां पर दरांती से किया हमला
(रीना देवी के मामले में आरोपी पूर्व सीएम का रिश्तेदार है इसलिए पुलिस बिलकुल भी कार्यवाही करने से बच रही है)
मनोज ठाकुर की रिपोर्ट
जनज्वार ब्यूरो/चंडीगढ़। हरियाणा में अभी भी दलित उत्पीड़न की घटनाएं कम नहीं हो रही है। स्थिति यह है कि छोटी छोटी बातों पर अमानवीय सजा दी जा रही है। ताजा मामला जींद जिले के नरवाना पुलिस स्टेशन के तहत आने वाले गांव डूमरखां कलां का है।
इस गांव की दलित महिला रीना देवी को गांव के सवर्ण समुदाय के नरेंद्र ने लकड़ी काटने वाले दरांते से धुना। गनीमत रही कि आरोपी ने दरांते को उलटा करके महिला पर वार किया। यदि दरांता सीधा होता तो पीड़िता की जान भी जा सकती थी।
पीड़िता ने बताया कि 20 मई को वह कुछ महिलाओं के साथ लकड़ी बीनने गई थी। उसके साथ उनका छोटा बेटा भी पीछे पीछे आ रहा था। रास्ते में नगेंद्र के आम के पेड़ थे। बेटे ने एक पेड़ के नीचे पड़े आम को उठा लिया।
इसी बीच नरेंद्र बाइक से आ रहा था। उसने मेरे बेटे को आम उठाते हुए देख लिया। बेटा डर के भागने लगा तो नरेंद्र ने बाइक से उसका पीछा करना शुरू कर दिया। कच्चा रास्ता होने की वजह से बेटा किसी तरह से बचते हुए मेरे पास पहुंच गया।
इसी बीच नरेंद्र भी वहां पहुंचा। उसने आते ही बेटे को गालियां देनी शुरू कर दी। वह बेटे की ओर मारने को आया, तो मैं बीच में आ गई। इस पर नरेंद्र का गुस्सा बढ़ गया। उसने मेरे हाथ से लकड़ी काटने का दरांत लेकर मुझे मारना शुरू कर दिया। उसने मुझे तब तक मारा जब तक कि मैं नीचे नहीं गिर गई।
बाद में पीड़िता ने पुलिस में शिकायत की। काफी मशक्कत के बाद पुलिस ने शिकायत दर्ज की। आरोपी नरेंद्र के खिलाफ एट्रोसिटी एक्ट सहित अन्य धाराओं में मामला दर्ज कर लिया। घटना को लेकर अनुसूचित समाज के लोगों में रोष व्याप्त होता जा रहा हैं। कई सामाजिक संगठनों ने घटना की निंदा करते हुए आरोपी को गिरफ्तार करने की मांग की हैं।
पीड़िता ने आरोप लगाया कि अब गांव में उसपर दबाव बनाया जा रहा है कि वह मामला वापस लें। लगातार आरोपी पक्ष के लोग उन्हें गांव के भाई चारे का हवाला देकर मामला वापस लेने का दबाव बना रहे हैं।
दलित एक्टिविस्ट और एडवोकेट रजत कलसन ने बताया कि हरियाणा में दलित उत्पीड़न की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। दिक्कत यह है कि पुलिस इन मामलों को संजीदगी से लेती ही नहीं। आरोपी की गिरफ्तारी में टाइम लगा दिया जाता है। यह कोशिश होती है कि आरोपी पक्ष पीड़ित पक्ष को बिठा लें।
इसके लिए सामाजिक दबाव बना कर पीड़ितों को बिठा दिया जाता है। रीना देवी के साथ भी यही हो रहा है। उसपर गांव के लोग दबाव बनाकर मामला वापस करने की कोशिश कर रहे हैं। एक पीड़ित लोगों के इस दबाव को कितना बर्दाश्त कर सकती है, इसलिए वह टूट सकती है। दलित उत्पीड़न के ज्यादातर मामलों में ऐसा ही होता है।
कलसन के मुताबिक इस साल ही हरियाणा में दलित उत्पीड़न की 10 से ज्यादा घटनाएं हो चुकी है। ज्यादातर मामलों में एफआईआर तक नहीं होती। आईपीएस अधिकारी वाई पूर्ण कुमार का मामला ही देखिए। इसमे अभी तक एफआईआर दर्ज नहीं हुई। इससे दोहरा नुकसान होता है। एक तो सवर्णों को लगता है कि उनका क्या बिगड़ सकता है? दूसरा पीड़ितों को लगता है कि जब इतने बड़े पुलिस अधिकारी की सुनवाई नहीं हुई, तो हमारी कौन सुनेगा? एफआरआई दर्ज हो भी जाए तो भी, गिरफ्तारी नहीं होती। इसे जानबूझ कर लटकाया जाता है।
टूटे हुए आम के फल की एवज में एक बच्चे की माता को किस तरह से दरांते से मारा जाता है, इससे पता चलता है कि सवर्ण मानसिकता किस तरह से काम कर रही है। कैसे सवर्ण मानसिकता के लोग दलितों को जानवरों से भी कमतर मानते हैं। वह उनके साथ अमानवीय व क्रूरता की सारी हद को पार करना अपना हक समझते हैं। वह ऐसा कर सकते हैं, क्योंकि उन्हें पता है कि कानून उनका कुछ भी बिगाड़ नहीं सकता।
मूकनायक फाउंडेशन की प्रवक्ता कविता सरोए ने बताया कि दलितों की आवाज उठाने में सरकार भी लापरवाही बरतती है। इस तरह के मामलों में तेजी से कार्यवाही हो तो समाज में इस तरह की घटनाओं को रोका जा सकता है।
रीना देवी के मामले में आरोपी पूर्व सीएम का रिश्तेदार है। जब तो पुलिस बिलकुल भी कार्यवाही नहीं करती है। क्योंकि पुलिस की पूरी कोशिश होती है कि आरोपी को कैसे भी करके बचाना है। इसलिए गिरफ्तारी में समय लगा दिया जाता है। इधर आरोपी पक्ष गांव में पंचायत कर पीड़ितों पर दबाव बनाने का काम शुरू कर देते हैं। क्योंकि वह पीड़िता है, उसके पति और अन्य पुरुष सदस्यों पर दबाव बना कर मामला वापस कराने की कोशिश होती रहती है।
होना तो यह चाहिए की इस तरह के मामलों में तुरंत एफआईआर दर्ज कर गिरफ्तारी की जाए। होता यह है कि पहले तो एफआईआर दर्ज नहीं होती, यदि हो जाए तो गिरफ्तार नहीं होती।