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स्वास्थ्य

कोरोना के कारण केरल में दवाओं की बिक्री में आई भारी गिरावट, 36 हजार करोड़ का कारोबार सिमटा 20 हजार करोड़ पर

Janjwar Desk
4 Oct 2020 5:01 PM GMT
कोरोना के कारण केरल में दवाओं की बिक्री में आई भारी गिरावट, 36 हजार करोड़ का कारोबार सिमटा 20 हजार करोड़ पर
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टोरेन्ट फार्मास्युटिकल के रीजनल हेड प्रमोद आर जी ने द लीड से कहा, "केरल में हर साल औसतन 36,000 करोड़ रुपयों की दवाएं बिकती हैं...

रेजीमों कुट्टपन की रिपोर्ट

जनज्वार । दवा कंपनियों के अधिकारियों का कहना है कि कोविड-19 के डर की वजह से लोगों के हॉस्पिटल नहीं जाने, मास्क पहनने, सैनिटाइज़र का इस्तेमाल करने और ग़ैर-ज़रूरी यात्राओं को स्थगित करने के चलते केरल में दवाओं की बिक्री में 16000 करोड़ रुपयों तक की गिरावट आ गई।

टोरेन्ट फार्मास्युटिकल के रीजनल हेड प्रमोद आर जी ने द लीड से कहा, "केरल में हर साल औसतन 36,000 करोड़ रुपयों की दवाएं बिकती हैं। लेकिन इस साल यह आंकड़ा 20,000 करोड़ पर ही रुक जाएगा।"

प्रमोद ने बताया,"एंटीबायटिक,सांस सम्बन्धी और बच्चों की बीमारियों से जुडी दवाओं की बिक्री में बहुत तेजी से गिरावट आ रही है। इन सभी की बिक्री में लगभग 50 फीसदी की गिरावट देखी जा रही है।"

प्रमोद का दावा है कि केरल में एन्टीबायटिक की औसतन बिक्री 1500 करोड़ रुपयों की है और कोविड-19 महामारी शुरू होने के बाद से यह 750 करोड़ रुपयों तक सीमित हो गयी है। उन्होंने यह भी कहा कि महामारी से पैदा हुए डर ने बच्चों और बूढ़ों को घर के भीतर ही रहने पर मजबूर कर दिया है।

प्रमोद का कहना था,"गर्म और ठंडे मौसम में बाहर निकलने पर बच्चे और बूढ़े साँस की तकलीफों का सामना करने लगते हैं। अगर उन्हें सांस संबंधी हल्की बीमारी लग जाती है तो भी आजकल उन्हें हॉस्पिटल नहीं ले जाया जाता है। इसलिए दवाओं की बिक्री गिर गई है।" उसका यह भी कहना था कि सर्जरी से जुडी दवाओं की बिक्री भी गिर गई है, क्योंकि हॉस्पिटल में कोविड-19 से पैदा हुए डर के चलते मरीज अपनी सर्जरी स्थगित करा दे रहे हैं।

हालाँकि प्रमोद का यह भी कहना था कि डायबटीज़, दिल की बीमारी और ब्लड प्रेशर से जुडी दवाओं का बिक्री पहले जैसी ही है। उसने कहा,"जीवन शैली से जुडी बीमारियों की जीवन रक्षक दवाओं को लोग बंद नहीं कर सकते हैं। इसलिए इन बीमारियों की दवाओं की बिक्री पहले जैसी ही है।"

चर्म रोग क्लीनिक बंद हो गए

प्रमोद ने बताया कि चर्म रोगों से जुड़ी दवाओं की बिक्री में भी अप्रत्याशित गिरावट आयी है। प्रमोद की बात का समर्थन करते हुए चर्म रोग विशेषज्ञ और कोचि में फसीआ डर्माटोलॉजी एन्ड कॉस्मेटोलॉजी सेंटर के प्रबंध निदेशक शिबू मोहम्मद ने बताया कि मरीजों की संख्या घट कर इकाई अंक पर पहुँच गई है।

शिबू ने द लीड को बातचीत में बताया "एक दिन में मेरे पास 40 से 60 मरीज आते थे। अब कोविड-19 के दर से यह संख्या घट कर 10 पहुंच गई है। अगंभीर किस्म के चर्म रोगों के लिए लोग घरेलू उपचार करने की कोशिश कर रहे हैं।"

शिबू आगे बोला, "इसके अलावा, चूंकि सौंदर्य प्रसाधन से जुडी दवाएं बहुत महगी हैं इसलिए केवल मशहूर हस्तियां ही इनका इस्तेमाल कर रही हैं। फिल्म और टीवी सीरियल्स के कलाकारों के केंद्र इस कोचि में आजकल सौंदर्य से जुड़े इलाज के लिए कोई भी नहीं आ रहा है, क्योंकि लॉकडाउन की वजह से वे भी वित्तीय संघर्ष कर रहे हैं।"

शिबू का दावा है कि कोविड-19 से पैदा हुई आर्थिक तंगी के चलते केरल में बहुत सारे चर्म रोग चिकित्सकों ने अपने क्लीनिक बंद कर दिए हैं।

केरल में छोटे स्तर पर दवा डिस्ट्रिब्यूशन के धंधे में लगे के.ओ.विन्सेंट ने बताया कि कम मांग की वजह से वे अब हर महीने केवल 1 लाख रुपये तक की दवाएँ ही स्टोर कर रहे हैं।

विन्सेंट ने आगे बताया,"हम दामों में छूट मुहैय्या करने वाली मेडिकल शॉप्स में दवाएं पहुंचते हैं। हम हर महीने के लिए 5 लाख की दवाएँ स्टोर करते थे लेकिन अब हम १ लाख कीमत की ही दवाएं स्टोर कर रहे हैं।

तिरुवंतपुरम में अजय के. नामक एक दवा डिस्ट्रीब्यूटर ने बताया कि शहर में पैरासिटामोल की बिक्री भी गिर गयी है।

उसने बताया, "ज़्यादातर दुकानों ने पर्ची के बिना पैरासिटामोल बेचना बंद कर दिया है। ये एक अच्छा कदम है। जिन्हें जुखाम और बुखार है उन्हें डॉक्टर के पास जाना चाहिए और दवा लेनी चाहिए। इसके चलते पैरासिटामोल की बिक्री गिर गई है।"

इस बीच केरल में सरकारी अस्पतालों को ज़रूरी और जीवन रक्षा से जुड़ी दवाओं की आपूर्ति करने वाली सरकारी इकाई केरल स्टेट ड्रग्स एंड फार्मास्युटिकल्स के एक अधिकारी ने बताया कि दवाओं के उत्पादन में कमी अगले साल ही आने की उम्मीद है।

उसका कहना था,"इस साल सरकारी अस्पतालों को दवाएं आपूर्ति करने के लिए हमें पहले ही 70 लाख रुपये का ऑर्डर मिल चुका है। हम इनका उत्पादन कर रहे हैं और आपूर्ति भी कर रहे हैं। यहां बनाई गई दवाओं की न्यूनतम जीवन अवधि 18 महीनों की है। इसलिए हॉस्पिटल्स को पहुंचाई गई दवाएं अगर मरीजों को नहीं दी जाती हैं तो उन्हें स्टोर कर लिया जाएगा और फिर उन्हें अगले साल इस्तेमाल किया जा सकता है।" वह यह भी कहता है कि अगले साल वे ऑर्डर में कमी की उम्मीद इसलिए रख रहे हैं क्योंकि इस साल हॉस्पिटल्स को स्टॉक की आपूर्ति नहीं हो पाई है।

अगस्त माह में गिरावट

डाटा रिसर्च कंपनी AIOCD-AWACS की रिपोर्ट के मुताबिक दो महीनों की बढ़त के बाद एक बार फिर अगस्त महीने में भारत में दवाओं की बिक्री में गिरावट दर्ज़ हुई। इसका कारण था कि कोविड-19 महामारी में संक्रमण की काट करने वाली दवाओं के लिए मारा-मारी।

रिपोर्ट में दावा किया गया है कि अगस्त माह में भारत की दवा बाजार में कुल बिक्री 12,162 करोड़ रुपये थी जो पिछले साल की तुलना में 2.2 फीसद गिर गई। रिपोर्ट दावा करती है, "अगस्त माह में दिल की बीमारी और डायबटीज़ की दवाओं की बिक्री में क्रमशः 11.5 और 1.6 फीसदी का इजाफा हुआ था।" साथ ही संक्रमण रोकने वाली दवाओं की बिक्री में अगस्त माह में लगातार 5 महीनों से चली आ रही गिरावट दर्ज़ की गई थी, जो यह दिखाता है कि संक्रमित हो जाने की संभावना की डर से लोगों ने डॉक्टर्स के क्लिनिक और हॉस्पिटल्स की ओ पी डी में जाना बंद कर दिया था।

हाल ही में फिच रेटिंग एजेंसी ने कहा है कि अप्रैल से जून तक दवा बाज़ार में भारी अवरोध पैदा करने वाले लॉकडाउन के कदम जैसे-जैसे हटते चले जायेंगे, भारतीय दवा कंपनियों की बिक्री बढ़ती जाएगी।

फिच के अनुसार, महामारी को रोकने के लिए आवागमन पर लगाए गए अंकुश ने डॉक्टर के क्लीनिक में जाने को कम कर दिया और अस्पतालों में अन्य बीमारियों की तुलना में कोविड-19 के इलाज को ज़्यादा महत्व दिया गया।

फिच की रिपोर्ट कहती है, "इसने वित्तीय वर्ष 2021 की पहली तिमाही में डॉक्टर द्वारा लिखी जाने वाली पर्चियों और बिक्री हुई दवा की संख्या को काफी प्रभावित किया, खासकर वो दवाएं जिनका इस्तेमाल गंभीर बीमारियों में किया जाता था, सभी बाज़ारों में मासिक बिक्री की मात्रा में गिरावट एक अंक से ले कर दो अंकों तक भी पहुँच गई।"

(रेजीमों कुट्टपन की यह रिपोर्ट पहले द लीड में प्रकाशित, इसे जनज्वार में अनूदित कर प्रकाशित किया गया है।)

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