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भारत में कोरोना महामारी से होने वाली मौतों से ज्यादा भयावह हैं आत्महत्या के मामले

Janjwar Desk
2 Nov 2020 3:18 AM GMT
भारत में कोरोना महामारी से होने वाली मौतों से ज्यादा भयावह हैं आत्महत्या के मामले
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कोरोना लॉकडाउन के बाद आत्महत्या करने वालों की संख्या में और इजाफा होगा, इसमें कोई शक नहीं है। हो सकता है यह आंकड़ा इतना भयावह हो कि इसमे भी भारत पहले नंबर पर विराजमान हो जाये....

जनज्वार। देश में आत्महत्या के मामले कम होने की बजाय तेजी से बढ़ रहे हैं। शनिवार 31 अक्टूबर को ही छत्तीसगढ़ के रायगढ़ में 2 सगे भाइयों ने आत्महत्या कर ली। पुलिस को घटनास्थल से एक सुसाइड नोट बरामद ​हुआ जिसमें लिखा है कि उन्होंने अपनी मर्जी से आत्महत्या की है। उनके मरने के बाद किसी को उनकी मौत के लिए जिम्मेदार ना ठहराया जाए। यानी कि इस आत्महत्या के लिए कोई तो तनाव जिम्मेदार होगा, जो दो जवान लड़कों ने अपनी जान दे दी।

यह तो एक घटना है इसी तरह की घटनाओं से अखबार पटे रहते हैं। अनपढ़ गरीब तो छोड़िये लॉकडाउन के बाद से पढ़े—लिखे और कोरोना के कारण आर्थिक रूप से तबाह हुए लोगों में आत्महत्या के मामले बहुत ज्यादा बढ़ रहे हैं।

विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस यानी 10 सितंबर से कुछ पहले आई नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो के ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2019 के दौरान हमारे देश में 1.39 लाख लोगों ने आत्महत्या कर ली।


आत्महत्या करने वालों में 67 प्रतिशत लोग 18 से 45 साल की उम्र के बीच थे। अब जान देने वालों में पढ़े-लिखे लोगों की तादाद भी बहुत ज्यादा बढ़ रही है। कोरोना लॉकडाउन के बाद आत्महत्या करने वालों की संख्या में और इजाफा होगा, इसमें कोई शक नहीं है। हो सकता है यह आंकड़ा इतना भयावह हो कि इसमे भी भारत पहले नंबर पर विराजमान हो जाये।

देश में कोरोना की बीमारी से मरने वाले लोगों के आंकड़ों को ध्यान में रखें तो आत्महत्या की घटनाएं कोरोना के मुकाबले ज्यादा गंभीर महामारी के तौर पर उभरी हैं। एनसीआरबी की ओर से हाल में जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2019 में प्रति चार मिनट में एक व्यक्ति ने आत्महत्या कर ली। इनमें से 35 प्रतिशत ऐसे थे, जो अपना व्यवसाय करते थे।

सुसाइड करने वालों में 17 प्रतिशत लोग ऐसे थे जिनने मानसिक बीमारी झेलने की बजाय मौत का रास्ता चुनना बेहतर समझा। आंकड़ों से यह बात सामने आती है कि सेकेंडरी स्तर तक पढ़ाई करने वाले लोग ज्‍यादा आत्‍महत्‍या कर रहे हैं। युवाओं में आत्महत्या की दर वर्ष 2018 के मुकाबले चार प्रतिशत बढ़ गई है। रिपोर्ट के मुताबिक, देश के प्रमुख महानगरों, चेन्नई, बंगलुरू, हैदराबाद, मुंबई, दिल्ली और कोलकाता में ऐसे मामलों में वृद्धि हुई है।

भारत में 10 लाख से ज्‍यादा आबादी वाले शहरों में केरल के कोल्‍लम में आत्महत्या की दर सबसे ज्यादा 43.1 प्रति लाख है। इसके बाद 37.8 व्यक्ति प्रति लाख के साथ पश्चिम बंगाल के आसनसोल का स्थान है। महानगरों में चेन्‍नई में सबसे ज्‍यादा लोगों ने आत्‍महत्‍या की। एनसीआरबी की रिपोर्ट से पता चलता है कि भारत में पारिवारिक कलह आत्‍महत्‍या की प्रमुख वजहों में शामिल है।

नशीली दवाओं और शराब के नशे की लत की वजह से भी ऐसे मामलों में तेजी आई है। वर्ष 2019 के आंकड़ों के अनुसार, आत्‍महत्‍या करने वालों में 15.4 प्रतिशत गृहिणियों के अलावा 9.1 प्रतिशत नौकरीपेशा लोग थे। आत्महत्या के मामलों में पड़ोसी देशों के मुकाबले भारत की स्थिति बेहद खराब है।

आत्महत्या मामलों में भारत दुनिया के शीर्ष 20 देशों में शुमार था, अब 21वें नंबर पर है। यहां से बेहतर स्थिति पड़ोसी देशों की है। डब्ल्यूएचओ की वर्ष 2018 की रिपोर्ट के मुताबिक आत्महत्या की दर में श्रीलंका 29वें, भूटान 57वें, नेपाल 81वें, म्यांमार 94वें, चीन 69वें, बांग्लादेश 120वें और पाकिस्तान 169वें पायदान पर हैं। नेपाल और बांग्लादेश की स्थिति जस की तस बनी हुई है।

एनसीआरबी रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2019 में देश में आत्महत्या करने वालों में से 74,629 यानी 53.6 प्रतिशत लोगों ने गले में फंदा डाल फांसी लगाकर अपनी जान दी। इस रिपोर्ट से यह तथ्य भी सामने आया है कि बीते साल के दौरान दैनिक मजदूरी करने वाले 32,500 लोगों ने भी आत्महत्या कर ली। वह स्थिति तब थी जब कोरोना की वजह से बड़े पैमाने पर लोगों की नौकरियां नहीं गई थीं। ऐसे में वर्ष 2020 के आंकड़ों के बारे में अनुमान लगाना अधिक भयानक हो सकता है।

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