Begin typing your search above and press return to search.
विमर्श

दुनिया पर पूंजीपतियों और निरंकुश शासकों का वर्चस्व, बढ़ते जा रहे हथियारबंद युद्ध

Janjwar Desk
28 Jan 2023 3:47 AM GMT
दुनिया पर पूंजीपतियों और निरंकुश शासकों का वर्चस्व, बढ़ते जा रहे हथियारबंद युद्ध
x
प्राकृतिक आपदाएं तो एक अंतराल के बाद आती हैं, पर पूंजीवाद द्वारा निर्मित आपदाएं तो जनता को लगातार परेशान करती हैं। पूंजीवाद ही सत्ता स्थापित करता है, इसलिए जनता परेशान रहेगी, मरती रहेगी, पूंजीवाद फलता-फूलता रहेगा और दुनिया अस्थिर ही रहेगी...

महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

Armed conflict is not just limited to Ukraine, but is a global phenomenon. रूस-यूक्रेन युद्ध का एक साल पूरा होने जा रहा है और अब समाचार आने भी कम हो गए। इससे पहले कोविड 19 से पूरी दुनिया अस्त-व्यस्त थी। कोविड 19 से संक्रमितों की संख्या फिर से बढ़ने लगी है। अब दुनियाभर से भीषण तापमान, जंगलों की आग, बाढ़, सूखा और ग्लेशियर के तेजी से पिघलने की खबरें आ रही हैं। राजनीतिक तौर पर भी दुनिया अस्थिर है – इस समय पूंजीपतियों और निरंकुश शासकों का दुनिया में वर्चस्व है।

यह एक ऐसा दौर है जब दुनिया में आर्थिक सम्पदा तेजी से बढ़ रही है, पर इसका पूरा लाभ केवल अरबपतियों को ही मिल रहा है और शेष आबादी पहले से भी अधिक गरीब होती जा रही है। इस आर्थिक असमानता की खाई बढ़ने के कारण दुनियाभर में हथियार-बंद झड़पें और युद्ध की संख्या बढ़ती जा रही है। इन दिनों दो देशों के बीच होने वाले युद्ध से अधिक देशों के भीतर होने वाले गृहयुद्ध या सरकार द्वारा चलाये जा रहे नरसंहार घातक होते जा रहे हैं और मौतें भी इनसे ही अधिक होती हैं।

युद्ध के नाम पर रूस-यूक्रेन युद्ध का ही ख्याल आता है, पर सूडान, हैती, म्यांमार, इथियोपिया, अफ़ग़ानिस्तान, यमन, सीरिया, सोमालिया और बेलारूस से भी लगातार हथियार-बंद झड़पों के समाचार आते रहते हैं। कहीं ऐसी झड़पें दो गिरोहों में होते हैं तो कहीं सरकार अपनी ही जनता को बागी बताकर हथियार उठालेती है। हमारे देश में भी नक्सल प्रभावित क्षेत्रों और जम्मू और कश्मीर से ऐसे समाचार लगातार आते हैं।

जेनेवा एकेडमी ऑफ़ इन्टरनेशनल ह्युमेनेटेरियन लॉ एंड ह्यूमन राइट्स हरेक हथियार-बंद झड़प या युद्ध का हिसाब रखता है। इसके अनुसार इस समय दुनिया में 110 से अधिक हथियार-बंद झड़पें चल रही हैं। यह संख्या द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद से सबसे अधिक है। इनमे से कुछ झड़पें पिछले अनेक वर्षों से जारी हैं, जबकि कुछ नए हैं। सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र मध्यपूर्व और अफ्रीका है जहां ऐसी 80 झड़पें होती हैं। इनमें कुछ मुख्य केंद्र सायप्रस, ईजिप्ट, इराक, इजराइल, लीबिया, मोरक्को, पैलेस्टाइन, सीरिया, तुर्की, यमन और पश्चिमी सहारा क्षेत्र है। एशिया में ऐसे 21 केंद्र हैं, जिनमें अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान, भारत, म्यांमार और फिलीपींस प्रमुख हैं। भारत में तो देश के अन्दर और देश के बाहर से भी झड़पें होती हैं। यूरोप में ऐसे 7 केंद्र हैं, जबकि दक्षिण अमेरिका में ऐसे 6 केंद्र हैं।

कोविड 19 के बाद से कहा जाने लगा था कि इसके दौर के बाद दुनिया सामान्य हो जायेगी, पर अब सामान्य कुछ भी नहीं है। कोविड 19 के दौर में दुनिया के अस्थिर होने का कारण सबको पता था, पर अब कारण हरेक दिन नए स्वरुप में हमारे सामने आ रहे हैं। आप पिछले चार वर्षों के समाचार को देखें तो केवल आपदा ही नजर आयेगी। एक आपदा का समाचार पहले पृष्ठ से तभी समाचारपत्रों के अन्दर के पन्नों तक पहुंचता है, जब दूसरी आपदा सामने आती है। अमेरिका लगातार चक्रवातों से जूझ रहा है, जबकि ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैण्ड में बाढ़ से तबाही हो रही है।

कुछ आपदाएं तो प्राकृतिक होती हैं, पर इससे भी अधिक आपदाएं जो दुनिया झेलती है वह पूंजीवादी व्यवस्था की देन है। पूंजीवादी व्यवस्था चंद पूंजीपति/अरबपति पैदा करता है, और पूंजीवाद के पनपने के लिए समाज का अस्थिर होना और तथाकथित आपदाएं बहुत जरूरी हैं। इसे प्रत्यक्ष तौर पर कोविड 19 के दौर में दुनिया ने प्रत्यक्ष तौर पर देख लिया। इस दौर में पूरी दुनिया भूखमरी, बेकारी और आर्थिक तौर पर गरीब होती रही, पर दुनिया में अरबपतियों की संख्या और पूंजी बढ़ती रही। पूंजीपतियों को अस्थिरता के लिए ऐसा शासक चाहिए जो केवल उनका ध्यान रखे और जनता के हितों के बारे में रत्ती भर भी ना सोचे। जाहिर है ऐसे शासक कट्टर दक्षिणपंथी विचारधारा वाले निरंकुश शासक ही हो सकते हैं।

इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि दुनियाभर में ऐसे ही शासक सत्ता में हैं और हरेक जगह सत्ता की नीतियाँ पूंजीपति तय करते हैं। सत्ता के गलियारों में आम जनता की नहीं, बल्कि पूंजीपतियों का जमावड़ा रहता है, जिनके हितों का ध्यान सत्ता अपने तरीके से रखती है। दरअसल पूंजीपति ही सत्ता पर काबिज रहते हैं, मुखौटा थोड़ा उदार सा होता है, और मुखौटे के अन्दर जनता को तबाह करने वाले भाव रहते हैं। जाहिर है, पूंजीवादी व्यवस्था में सामान्य आदमी बेगाना है, अधिकारविहीन है, इसलिए पूरा समाज अस्थिर है।

पूंजीवादी व्यवस्था सबसे पहले प्राकृतिक संसाधनों पर अधिकार जमाती है, उसे लूटती है और मुनाफा कमाकर उसे तहस-नहस कर जाती है। पूरी दुनिया में ऐसा ही हो रहा है। पूंजीवादी व्यस्था की ही देन जलवायु परिवर्तन और तापमान बृद्धि भी है। पूंजीवाद ही गृहयुद्ध और युद्ध को जन्म देता है, फिर इसे रोकने के लिए हथियार बेचता है और मदद के नाम पर संसाधनों की लूट करता है। यही आज अफ्रीका में किया जा रहा है।

अफ्रीका में संयुक्त राष्ट्र से लेकर तमाम विकसित देश वर्षों से तथाकथित मदद कर रहे हैं, मदद के नाम पर उनके प्राकृतिक संसाधनों को लूट रहे हैं – जिसके असर से अफ्रीका और भी गरीब और अस्थिर हो रहा है। हाल में ही प्रकशित इब्राहीम इंडेक्स ऑफ़ अफ्रीकन गवर्नेंस के अनुसार पिछले एक दशक में अफ्रीका पहले से अधिक असुरक्षित हो गया है और यहाँ प्रजातंत्र भी ख़त्म होता जा रहा है।

स्वास्थ्य, शिक्षा, मानवाधिकार और आर्थिक विकास के सन्दर्भ में अफ्रीका पहले से अधिक बदतर हो गया है। सूडान के एक उद्योगपति, मो इब्राहीम ने इस इंडेक्स को वर्ष 2007 में शुरू किया था, और इनके अनुसार आने वाले वर्षों में जलवायु परिवर्तन के कारण संसाधनों पर अधिकार के लिए पहले से अधिक युद्ध होंगें और अस्थिरता बढ़ेगी। यह प्रभाव वर्तमान में भी नाइजीरिया, दारफुर और सहेल क्षेत्र में देखा जा रहा है। ऐसी स्थिति में सत्ता की निरंकुशता बढ़ जाती है। इस इंडेक्स के अनुसार अफ्रीका के 30 देशों में सुरक्षा, क़ानून व्यवस्था और मानवाधिकार की स्थिति खराब हो गयी है। जनता के लोकतांत्रिक अधिकार समाप्त किये जा रहे हैं।

एशिया की स्थिति भी ऐसी ही है। भारत, बांग्लादेश, पाकिस्तान, म्यांमार, श्रीलंका अफ़ग़ानिस्तान, इंडोनेशिया, फिलीपींस, हांगकांग और चीन – सभी में अस्थिरता बढ़ती जा रही है। इनमें से कुछ देश अपने पड़ोसी देशों को भी अस्थिर करते जा रहे हैं। पर, इस अस्थिरता के बीच भी पूरे क्षेत्र में पूंजीवाद लगातार छलांग लगा रहा है, और लोकतांत्रिक व्यवस्था भी निरंकुश और जनता से दूर होती जा रही है। इनमें से हरेक देश अपने प्राकृतिक संसाधनों का अवैज्ञानिक दोहन करते जा रहे हैं, और इसके प्रभावों को बढ़ा रहे हैं।

पूंजीवाद ही दुनिया की सबसे बड़ी समस्या है, वास्तविक आपदा है। प्राकृतिक आपदाएं तो एक अंतराल के बाद आती हैं, पर पूंजीवाद द्वारा निर्मित आपदाएं तो जनता को लगातार परेशान करती हैं। पूंजीवाद ही सत्ता स्थापित करता है, इसलिए जनता परेशान रहेगी, मरती रहेगी, पूंजीवाद फलता-फूलता रहेगा और दुनिया अस्थिर ही रहेगी। जिस सामान्य स्थिति की हम कल्पना करते हैं, वैसी दुनिया अब कभी नहीं होगी।

Next Story