कोविड 19: महामारी फैला रही सत्तालोभी सरकार, जिंदा मरीज बेहाल और मुर्दे कतारों में परेशान
वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण
नरसंहार केवल सैन्य हथियारों से नहीं होता, नरसंहार केवल तानाशाहों के देश में नहीं होता, नरसंहार केवल म्यांमार में नहीं किया जाता – बल्कि नरसंहार एक सत्तालोभी लोकतांत्रिक सरकार भी अपनी नाकामियों से कभी भी कर सकती है। सत्तालोभी लोकतांत्रिक सरकार के नरसंहार के हथियार भूख, गरीबी, प्रदूषण और महामारी भी होते हैं। हमारे देश में यही आज के दौर में हो रहा है- जिन्दा मरीज बेहाल हैं और मुर्दे कतारों में परेशान हैं। हमारे देश की सरकार केवल सत्तालोभी ही नहीं है, बल्कि दमनकारी और नरसंहार के बाद जश्न मनाने वाली भी है।
पश्चिम बंगाल के चुनाव प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और पूरी बीजेपी के लिए इतने महत्वपूर्ण हैं कि जब देश रोज कोविड 19 के मामलों में पूरी दुनिया में नए रिकॉर्ड कायम कर रहा हो, रोजाना हजारों लोग मर रहे हों, महानगरों से श्रमिकों का पलायन शुरू हो गया हो – पर चुनाव अपने समय पर होने चाहिए। पूरी दुनिया में लोकतंत्र तो दूर, घोषित तानाशाहों के देश में भी कोविड 19 के दौर में ऐसा लम्बी अवधि तक चलने वाला भव्य चुनाव और कुम्भ जैसे धार्मिक आयोजन कहीं भी नहीं आयोजित किये गए। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी बाकी बचे चुनाव के सभी चरण एक साथ पूरा करने की मांग करती हैं, पर बीजेपी इसे तय समय पर करना चाहती है। जाहिर है, देश की सबसे नकारा संस्थाओं में से एक चुनाव आयोग, वही फैसला लेगा जिसके लिए उसे आकाओं ने कहा होगा।
पता नहीं अपने देश में चुनाव आयोग जैसे जनता के पैसे से सरकार की भक्ति और आरती करने वाले सफ़ेद हाथी क्यों पाले जाते हैं। इसके कामकाज को देखकर तो लगता है बेहतर होता कि इसे पूरी तरह से बंद कर चुनावों के काम में गृह मंत्रालय को या फिर प्रधानमंत्री कार्यालय को सौप दिया जाता। चुनाव की तारीखें, चुनाव के चरण, विपक्षी नेताओं पर तरह-तरह की कार्यवाही और चुनाव के नतीजे इत्यादि आखिरकार यही मंत्रालय ही तय करते हैं।
जहां चुनाव होने वाले होते हैं, वहां प्रधानमंत्री और गृहमंत्री जितने दौरे करते हैं, उतने दौरे तो चुनाव आयोग के सदस्य भी नहीं करते हैं। गृह मंत्रालय के पास चुनाव का काम देने से किसी को आपत्ति भी नहीं होगी कि चुनाव अधिकारी बीजेपी नेताओं की गाडी में क्यों घूम रहे हैं और सबसे बड़ी बात तो यह है – ईवीएम के झंझट से मुक्ति मिल जायेगी क्योंकि गृहमंत्री चुनाव ख़त्म होने से पहले ही जनता को बताते रहे हैं कि हरेक चरण में कितनी सीटों पर बीजेपी जीतेगी।
इससे ईवीएम और मतगणना के झंझट से मुक्ति मिल जायेगी।चुनाव आचार संहिता के दिखावा की जरूरत भी नहीं होगी, वैसे भी आचार संहिता के नाम पर जो कुछ किया जाता है, दुनिया में उससे फूहड़ और कोई चीज नहीं होगी। चुनावों से पहले हरेक पेट्रोल पंप से प्रधानमंत्री के चित्र वाले विज्ञापन लगाये जाते हैं और प्रधानमंत्री सामान्य समय में भले ही टीवी स्क्रीन पर हरेक दिन ना दिखाई दें, पर चुनावों के बीच रोज टीवी चैनलों पर लाइव उपस्थित रहते हैं।
हाल में ही हमारे देश ने कोविड 19 के मामलों की दैनिक संख्या के सन्दर्भ में अमेरिका में जुलाई 2020 में बने लगभग 78000 मामलों का विश्व रिकॉर्ड ध्वस्त किया, और इसके बाद से हरेक दिन अपने ही आंकड़े पूरी दुनिया के लिए अछूत बनाता जा रहा है। अब तो हालत यह हो गयी है कि जल्दी ही भारत में हरेक दिन कोविड 19 के मामले बाकी पूरी दुनिया के आंकड़ों से अधिक होने लगेंगे।
जिस दिन भारत ने कोविड 19 के दैनिक संख्या के सन्दर्भ में विश्व रिकॉर्ड बनाया था, उसके अगले दिन प्रधानमंत्री जी सभी समाचार चैनलों पर संबोधन दे रहे थे, पर उसमें इस विश्वरिकॉर्ड की चर्चा नहीं थी। कोविड 19 के सन्दर्भ में भी कुछ ख़ास नहीं था, बस उन्हीं सावधानियों का जिक्र था, जिसे हम एक वर्ष से लगातार सुनते आ रहे हैं, और प्रधानमंत्री समेत लगभग सभी राजनेताओं को इसका पालन करते नहीं देख रहे हैं।इन सावधानियों के अतिरिक्त कोविड 19 के टीके का जिक्र भी था।
टीके पर सरकार खूब जोर दे रही है, पर बहुत सारे प्रश्नों के उत्तर नहीं दे रही है। दुनियाभर में ऑक्सफ़ोर्ड एस्ट्रोजेनिका की वैक्सीन, जिसे भारत में कोवीशील्ड का नाम दिया गया है, के प्रभाव से खून के थक्के बनाने की चर्चा है, अनेक देशों ने इसपर अध्ययन पूरा होने तक रोक भी लगा दी है, ऑस्ट्रेलिया में 15 अप्रैल को एक व्यक्ति की मृत्यु टीका लेने के बाद खून के थक्के बनने से हो गयी है।यह टीका हमारे देश में बड़े जोर-शोर से लगाया जा रहा है, पर खून के थक्के बनने पर सीरम इंस्टिट्यूट मौन है, सरकार मौन है, डॉक्टर मौन हैं और वैज्ञानिक भी खामोश हैं।
दूसरी तरफ हमारे देश में कोविड 19 वायरस के नए संस्करण पर कोई चर्चा नहीं की जा रही है, जिसे दुनिया अधिक खतरनाक मान रही है। सरकार और देश के वैज्ञानिकों के पास कोई आंकड़ा ही नहीं है कि कोविड 19 के इस नए और खतरनाक संस्करण का प्रभाव देश में कहाँ है और इससे कितने लोग प्रभावित हैं, यह कितना घातक है और इसकी क्या विशेषताएं हैं।टीके लगवाने पर सरकार जोर तो बहुत दे रही है, पर किसी को नहीं पता कि कोविड 19 के टीके वायरस के इस संस्करण पर प्रभावी हैं भी या नहीं।
वास्तविक समस्याओं पर खामोश रहना या फिर पहले से भी बड़ी समस्या खड़ी कर देना इस सत्तालोभी सरकार की विशेषता है। कोविड 19 के नए संस्करण पर सरकार पूरी तरह से खामोश है और मीडिया इस मसाले पर सरकार का भरपूर साथ दे रही है।
यूनाइटेड किंगडम यह बता रहा है कि वहां 77 मामलों में इस संस्करण को पाया गया है, पर हमारे देश की संख्या किसी को पता नहीं है। यूनाइटेड किंगडम के स्वास्थ्य विभाग के अनुसार इस संस्करण का पहला मामला फरवरी के मध्य में ही इंग्लैंड में देखा गया था। इस संस्करण का वैज्ञानिक नाम बी1617 है और इसे अभी "वैरिएंट अंडर इन्वेस्टिगेशन" का दर्जा दिया गया है। इसमें कोविड 19 के वायरस के मूल स्वरुप से दो बदलाव हैं, इसलिए यह सामान्य वायरस से अधिक खतरनाक है।यह शरीर के रोग-प्रतिरोधक क्षमता को भी चकमा देने में कामयाब रहता है।
सरकार और प्रशासन भले ही कोविड 19 के लगातार बढ़ाते मामलों का दोष आम जनता पर दे रही हों, पर यदि आप इससे जुड़े हरेक पहलू को बारीकी से देखें तो स्पष्ट होता है कि इस बार वायरस के कहर का कारण सरकार स्वयं है और यह सरकार को पता भी है, तभी तो आंकड़ों की बाजीगरी का खेल चल रहा है और महत्वपूर्ण सूचनाएं दबाई जा रहीं हैं। सत्तालोभी सरकार को पश्चिम बंगाल चाहिए भले ही इसके चलते हजारों लोग मारे जाएं।