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विमर्श

Film Review : 'पुष्पा' है सदी का सुपरस्टार लेकिन फिल्मों में धूम्रपान के दृश्य चिंता का विषय

Janjwar Desk
10 Jan 2022 11:34 AM GMT
Film Review : पुष्पा है सदी का सुपरस्टार लेकिन फिल्मों में धूम्रपान के दृश्य चिंता का विषय
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(पुष्पा द राइज : साधारण मज़दूर से ताकतवर चंदन तस्कर बनने की कहानी)

Film Review : पिछली सदी 'शोले' के जय-वीरू की जोड़ी से भारतीय सिनेमा को अमिताभ बच्चन के रूप अपना पहला सुपरस्टार मिला था और अब इस सदी निर्देशक सुकुमार ने अल्लू अर्जुन को पुष्पा राज बना भारतीय सिनेमा को उसका दूसरा सुपरस्टार दे दिया है...

हिमांशु जोशी का विश्लेषण

Film Review : 2021 भारतीय सिनेमा को सरदार उधम, जय भीम (Jai Bhim) जैसी उम्दा कलाकृति दे गया और इस साल की शुरुआत भी शानदार है। 'पुष्पा' (Pushpa) इस सदी का सुपरस्टार बन हमारे सामने आया है।

तेलुगु फ़िल्म पुष्पा 'द राइज़' पुष्पा बने अल्लु अर्जुन के एक साधारण मज़दूर से ताकतवर चंदन तस्कर बनने की कहानी है।

अल्लु अर्जुन (Allu Arjun) के बेहतरीन अभिनय के साथ दमदार स्टंट और शानदार कोरियोग्राफी से सिनेमाघरों पर हिंदी डबिंग में उपलब्ध यह फ़िल्म भारतीय सिनेमा का धूमकेतु बनेगी क्योंकि भारतीय सिनेमा का दर्शक इन्हीं का दीवाना है।

फ़िल्म में सिंगल मदर जैसे महत्वपूर्ण विषय को छूने की कोशिश की गई है तो धूम्रपान वाले दृश्य निराश करते हैं।

'पुष्पा' के निर्देशक सुकुमार ने साल 2004 में अल्लु अर्जुन के साथ ही फ़िल्म 'आर्या' से बतौर निर्देशक अपने फिल्मी कैरियर की शुरुआत करी थी और टॉलीवुड में अपनी किस्मत आजमाने से पहले सुकुमार लगभग छह साल तक गणित के अध्यापक रहे थे।

मिला इस सदी का सुपरस्टार पर एक खलनायक बन सकता है बड़ी मुसीबत

पिछली सदी 'शोले' के जय-वीरू की जोड़ी से भारतीय सिनेमा को अमिताभ बच्चन के रूप अपना पहला सुपरस्टार मिला था और अब इस सदी निर्देशक सुकुमार ने अल्लू अर्जुन को पुष्पा राज बना भारतीय सिनेमा को उसका दूसरा सुपरस्टार दे दिया है।

फ़िल्म के लिए कोरोना सबसे बड़ा खलनायक साबित होगा, कोरोना के डर से लोग सिनेमाघरों तक नही पहुंच रहे और फ़िल्म इतना दम तो रखती थी कि भारतीय फ़िल्म इंडस्ट्री में सफलता के सारे रिकॉर्ड तोड़ती। ओटीटी पर फ़िल्म को रिलीज़ कर उस नुकसान की भरपाई करने की कोशिश तो की गई है, उम्मीद है कि यह ओटीटी पर भी सबसे ज्यादा देखे जाने वाली फ़िल्म बनेगी।

शेषाचलम जंगलों के लाल चंदन की तस्करी को केंद्र में रख फ़िल्म की कहानी शुरू होती है और इसके शीर्षक पुष्पा 'द राइज़' से ही समझ आ जाता है कि यह पुष्पा राज के राज करने की कहानी है।

फ़िल्म की पटकथा कसकर लिखी गई है, इसमें कहीं भी कोई कमी नही महसूस होती।

अल्लु अर्जुन पहले दृश्य से ही एक कंधा झुका छा गए हैं..

'पानी लेकर आ, मेरको नही इसको पिला थक गया है..' जैसे संवादों के ज़रिए 'पुष्पा' दर्शकों के दिल में जगह बना लेता है।

पुष्पा के दोस्त केशव बन जगदीश प्रताप बंडारी सहायक अभिनेता के रूप में प्रभावित करते हैं।

रश्मिका मंदाना की बात की जाए तो उनमें कुछ मिसिंग सा लगा है, उन्हें देख फ़िल्म 'डियर कॉमरेड' वाली रश्मिका की याद नही आती।

फ़िल्म के बाक़ी कलाकारों ने अपने पात्रों के साथ न्याय किया है।

संवाद 'मार्किट से इज़्ज़त खरीद के माथे पर चिपका' दर्शकों की वाहवाही बटोरता है तो 'फ्लॉवर नही फायर' और 'झुकेगा नही' ट्रेडमार्क बनेगा।

फ़िल्म में संगीत देवी श्री प्रसाद द्वारा दिया गया है। इसका बैकग्राउंड स्कोर गज़ब का है जैसे तस्कर पुलिस की रेस में बैकग्राउंड पर बजता हुआ संगीत ध्यान खींच फ़िल्म का रोमांच बरकरार रखता है।

'ओ बोलेगा' आइटम नम्बर हिंदी में कनिका कपूर का गाया है तो उसका तेलुगु वर्ज़न 'उ अंटावा' इंद्रावती चौहान ने गाया है ।

आइटम नंबर सुनने में तो अच्छा है ही, अल्लु और सामंथा रुथ प्रभु इसमें अपने डांस मुव्स से आग भी लगा रहे हैं। गाने के कोरियोग्राफर पोलाकी विजय हैं।

'श्रीवल्ली' गाने में गणेश आचार्य की कोरियोग्राफी काफी अर्से बाद बड़े पर्दे पर कुछ नया सा दिखाती है।

जंगल और अंधेरे जैसी चुनौतियों के बावजूद फ़िल्म का छायांकन, आंखों को हरियाली का आनन्द देते कहीं से भी निराश नही करता।

फ़िल्म अपने बेहतरीन स्टंट सीनों के लिए भी जानी जाएगी। ट्रक को उछलते देखना, पुष्पा का मंगल शीनू के घर जाकर कोहराम मचाना बेहतरीन स्टंट सीनों का नमूना है।

पुष्पा का जंगल में मुंह बांध तस्कर की दुनिया का नया बादशाह बनने वाला स्टंट आपको 'शोले' के स्टंटों की याद दिला जाता है।

पुष्पा और भंवर का तनाव ही पुष्पा द रूल के लिए दर्शकों को खींचेगा

फ़िल्म के अंत में पुलिस अधिकारी भंवर सिंह शेखावत बने फहाद फासिल और पुष्पा के बीच का तनाव देखने लायक है और यही आपके अंदर फ़िल्म का अगला भाग पुष्पा द रूल देखने की इच्छा जगा जाएगा।

जाते-जाते-

फिल्मों के सामाजिक प्रभाव पर चर्चा:

फिल्मों से धुम्रपान के दृश्य हो पूर्णतः प्रतिबंधित और सिंगल मदर पर भी सोचना है जरूरी।

दर्शक अपने प्रिय अभिनेताओं के बहुत से स्टाइल कॉपी करते रहे हैं, फ़िल्म में अल्लु की एंट्री धूम्रपान करते दिखाई गई गई है।

फिल्मों में चेतावनी के साथ धूम्रपान करना दिखाया जाता रहा है पर अपने सुपरस्टार को धूम्रपान करते देख समाज धूम्रपान की तरफ़ ज्यादा आकर्षित होता है।

ऑस्ट्रेलिया में बैठे क्रिकेटर डेविड वार्नर अगर 'पुष्पा' का दाढ़ी सेट करने वाला एक्शन कर स्टाइल मार सकते हैं तो भारत में अल्लू अर्जुन की तरह लोग धूम्रपान करते न दिखें, यह तो असम्भव है।

हालांकि केन्द्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड की तरफ़ से फ़िल्म को U/A सर्टिफिकेट जरूर जारी किया गया है पर ओटीटी के इस ज़माने में ये कितना सार्थक हो सकता है यह विवाद का विषय है। अपने आसपास 12 साल से नीचे के बच्चों को भी आप धूम्रपान करते देख सकते हैं और 12 साल के बाद तो धूम्रपान की तरफ़ बच्चों का आकर्षण चरम पर होता है।

फ़िल्म में सिंगल मदर की समस्या को भी दिखाया गया है, जिस पर कभी ध्यान नही दिया जाता। सिंगल मदर समाज का वह तबका है जो अकेले ही बहुत सी मुसीबतों का सामना करती हैं और उन्हें सरकार से कोई मदद नही मिलती।

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