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विमर्श

लव जिहाद का काल्पनिक भूत खड़ा कर नफरत की भावना को भड़काना चाहती है मोदी सरकार

Janjwar Desk
22 Nov 2020 12:24 PM IST
लव जिहाद का काल्पनिक भूत खड़ा कर नफरत की भावना को भड़काना चाहती है मोदी सरकार
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प्रतीकात्मक तसवीर।

लव जिहाद का मामला देश में एक बार फिर गर्म हो गया है। भाजपा शासित कई राज्य इस पर कानून बनाने की तैयारी में हैं। ऐसे में पढिए इस मुद्दे पर विभिन्न पक्षों को समेटता हुआ यह आलेख...


दिनकर कुमार की टिप्पणी

नागरिक क्या खा सकते हैं? क्या पहन सकते हैं? किससे विवाह कर सकते हैं? ऐसे तमाम मामले में टांग अड़ाने का काम मोदी सरकार कर रही है। वह नागरिक के मौलिक अधिकारों का दमन करते हुए तथाकथित विकास का तिलिस्म रचना चाहती है। उसने संविधान को अप्रासंगिक बनाते हुए मुसलमानों को प्रताड़ित करना ही अपना लक्ष्य बना लिया है। इसी कड़ी में भाजपा शासित राज्यों ने लव जिहाद को रोकने के लिए कानून बनाने का शिगूफ़ा छोड़ते हुए नफरत की कुत्सित राजनीति जारी रखने का संकेत दे दिया है।

भारत में लव जिहाद शब्द 2014 से पहले पढ़ने और सुनने में बहुत कम मिलता था। लव जिहाद जैसे शब्द चंद हिंदुत्व संगठनों या पालतू मीडिया में चर्चा का हिस्सा हुआ करते थे।

वर्तमान में इन शब्दों को आम आदमी की जुबान से सुना जा सकता है या इस पर लोगों के बीच बहस को सुना जा सकता है। सांप्रदायिक राजनीति के गर्भ से जन्मी गोदी मीडिया ने इस शब्द को जीवंत करने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। देश में एक समुदाय के प्रति नफरत फैलाने के लिए मीडिया इस शब्द को उठा रही है। आज इसका प्रभाव यह है कि लोग इस शब्द को सुनते हैं और एक समुदाय की निंदा करते हैं। यहां तक कि लोग हिंसा पर उतर आते हैं।

आप इसे आसान भाषा और कम शब्दों में समझ सकते हैं। लव जिहाद दो शब्दों से मिलकर बना है। अंग्रेजी भाषा के शब्द लव का मतलब है प्यार और अरबी शब्द जिहाद का अर्थ है किसी भी उद्देश्य को पूरा करने के लिए अपनी सारी शक्ति लगा देना।

अर्थात जब दूसरे धर्म के लड़के जो किसी विशेष धर्म को मानते हैं, अन्य धर्म की लड़की को फंसा कर अपने धर्म में परिवर्तित करवाते हैं तो इस पूरी प्रक्रिया को लव जिहाद कहते हैं। लव जिहाद की यह परिभाषा हमारे देश की मीडिया और कुछ कट्टर हिंदू संगठनों ने तय की है।

अब तक लव जिहाद जैसे शब्दों को कानूनी मान्यता नहीं थी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार कर लिया है कि लव जिहाद है और मुस्लिम युवक हिंदू लड़कियों को लव जिहाद के लिए अपने प्रेम जाल में फंसाते हैं। इसकी शुरुआत तब हुई जब केरल उच्च न्यायालय ने हिंदू महिला अखिला अशोकन की शादी रद्द कर दी। अखिला अशोकन ने दिसंबर 2016 में मुस्लिम व्यक्ति शफीन से शादी की थी।

पूरे देश में इस मुद्दे पर राजनीति बढ़ रही है। कुछ हिंदू संगठन इस पर शोर मचा रहे हैं। अब इस मुद्दे पर एक कानून बनाने की बात चल रही है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने भाषण में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश का उल्लेख करते हुए कहा है कि विवाह में धर्मांतरण आवश्यक नहीं है। ऐसा नहीं किया जाना चाहिए और इसे मान्यता नहीं दी जानी चाहिए। सरकार यह भी तय कर रही है कि हम लव जिहाद को रोकने के लिए कठोर कानून बनाएंगे।

देश के अन्य राज्य भी लगातार कह रहे हैं कि लव जिहाद का मुद्दा कानून के समक्ष लाया जाना चाहिए। दिल्ली से सटे हरियाणा में एक लड़की की गोली मारकर हत्या करने के बाद यह मामला काफी तूल पकड़ता गया है। वहीं, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि महज शादी के लिए धर्मांतरण मान्य नहीं है। प्रियांशी उर्फ ​​समरीन और अन्य की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति एससी त्रिपाठी ने नूरजहाँ बेगम मामले के फैसले का हवाला दिया, जिसमें अदालत ने कहा है कि यह शादी के लिए धर्म बदलने के लिए स्वीकार्य नहीं है।

हालाँकि लव जिहाद शब्द की कोई कानूनी स्थिति नहीं है। इसे न तो अब तक किसी कानून के तहत परिभाषित किया गया है न ही केंद्र या राज्य की किसी एजेंसी ने किसी कानूनी धारा के तहत कोई मामला दर्ज किया है। यहां तक कि गृह मंत्रालय का कहना है कि जबरन अंतरजातीय विवाह को लव जिहाद कहा जा रहा है।

लव जिहाद के ज्यादातर मामलों में यौन शोषण से जुड़े कानूनों के तहत मुकदमा चल रहा है। आरोपियों को पीडोफाइल मानकर पॉक्सो और बाल विवाह कानून के तहत मामले भी दर्ज किए गए हैं। इसके अलावा, अदालतें जबरन विवाह के मामले में आईपीसी की धारा 366 के तहत सजा दे सकती हैं। महिला की सहमति के बिना यौन संबंध बनाने के जुर्म में 10 साल तक की कैद हो सकती है।

ऐसे मामलों में कानूनी पेंच यहां फंस गया है कि मुस्लिम विवाह शरिया कानून के तहत और हिंदू विवाह अधिनियम के तहत हिंदू विवाह कानूनी हैं। चूंकि मुस्लिम विवाह में सहमति अनिवार्य रूप से दो तरफा है, अगर यह साबित हो जाता है कि इन विवाहों में शादी सहमति से हुई थी, तो कई मामले पूरी तरह से खारिज हो जाते हैं।

केंद्र सरकार ने कहा है कि मौजूदा कानूनों के तहत लव जिहाद जैसे शब्द को परिभाषित नहीं किया गया है और इससे संबंधित कोई भी मामला केंद्रीय एजेंसियों के संज्ञान में नहीं आया है। केंद्रीय गृह राज्य मंत्री जी किशन रेड्डी ने लोकसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में यह जानकारी दी। रेड्डी ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद किसी भी धर्म को स्वीकार करने, अभ्यास करने और प्रचार करने की स्वतंत्रता देता है।

उन्होंने कहा कि केरल उच्च न्यायालय सहित कई अदालतों ने इस विचार को बरकरार रखा है। रेड्डी ने कहा, यह शब्द लव जिहाद मौजूदा कानूनों के तहत परिभाषित नहीं है। लव जिहाद का कोई मामला केंद्रीय एजेंसियों के संज्ञान में नहीं आया है। उन्होंने यह भी कहा कि एनआईए ने अब तक केरल में विभिन्न धर्मों के जोड़ों के विवाह के दो मामलों की जांच की है।

धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार सहित संविधान में सभी नागरिकों को मौलिक अधिकार दिए गए हैं। इसके तहत प्रत्येक नागरिक को किसी भी धर्म का पालन, अभ्यास और प्रचार करने की स्वतंत्रता है। कोई भी व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति को किसी विशेष धर्म का पालन करने के लिए मजबूर नहीं कर सकता है।

एक विशेष विवाह अधिनियम भी है जिसमें विभिन्न धर्मों से आने वाले लड़के और लड़कियां अपने धर्म को बदले बिना शादी कर सकते हैं। हालाँकि, इसके लिए कई प्रावधान भी किए गए हैं, जिन्हें पूरा करने के बाद ही शादी कर सकते हैं।

अदालतों को वैवाहिक जोड़ों की धार्मिक पहचान को मान्यता देने का अधिकार है, लेकिन केवल इससे पहले कि विवाद उनके परिवार के कानूनों से संबंधित हो। इस संबंध में 2000 में सुप्रीम कोर्ट ने लिली थॉमस मामले में एक ऐतिहासिक निर्णय दिया, जहां एक हिंदू पत्नी ने शिकायत दर्ज कराई कि उसका हिंदू पति दूसरी हिंदू महिला से शादी करने के लिए इस्लाम में परिवर्तित हो रहा था।

अदालत ने फैसला दिया कि दो विवाह हिंदू पर्सनल लॉ में मान्य नहीं हैं, इसलिए कोई भी व्यक्ति मुस्लिम पर्सनल लॉ का लाभ नहीं ले सकता है। ऐसी स्थिति में यह धर्मांतरण कपटपूर्ण और अवैध है।

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