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विमर्श

Mundka Fire Tragedy : झुलसे सिस्टम का नतीजा है मुंडका हादसा, क्या अब भी नहीं लिया जाएगा कोई सबक?

Janjwar Desk
14 May 2022 10:01 AM GMT
Mundka Fire Tragedy : झुलसे सिस्टम का नतीजा है मुंडका हादसा, क्या अब भी नहीं लिया जाएगा कोई सबक?
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Mundka Fire Tragedy : झुलसे सिस्टम का नतीजा है मुंडका हादसा, क्या अब भी नहीं लिया जाएगा कोई सबक?

Mundka Fire Tragedy : बिना सिस्टम के झुलसे ऐसा हो नहीं सकता, क्योंकि भवन का नक्शा पास करने का काम सरकारी विभाग का है और उसी नक्शे को मंजूरी देकर फायर एनओसी के लिए भेजने का काम एमसीडी यानी उस नगर निगम का है, जहां राजनीति और प्रशासन 'परस्पर हित' के लिए मिलकर काम करते हैं.....

सौमित्र रॉय की टिप्पणी

Mundka Fire Tragedy : आज से 25 साल पहले दिल्ली के उपहार सिनेमाघर में फिल्म देखते 59 लोग तंदूर में जिंदा भुन गए। सिनेमाघर के ट्रांसफार्मर कक्ष में आग लगी और देखते ही देखते उस हॉल तक पहुंच गई, जहां दर्शक सिनेमा देख रहे थे। भगदड़ मची, लेकिन लोगों को बचने का कोई मौका ही नहीं मिला। 18 साल तक लंबी अदालती कार्यवाही चली और अंसल बंधुओं को 60 करोड़ रुपए के जुर्माने के बदले 7 साल की सजा सुनाई गई।

शुक्रवार को दिल्ली के ही मुंडका इलाके (Mundka Area) में एक इमारत में भीषण आग लगी और 27 जिंदगियां खाक हो गईं। केवल दिल्ली (Delhi Fire Tragedy) में ही नहीं, बल्कि पूरे देश में सालभर ऐसे हादसे सुर्खियों में आते हैं। जांच होती है, दोषियों को सजा होती है, पर हादसे नहीं रुकते। देश में जान-माल की सुरक्षा सुनिश्चित करने वाला सिस्टम ही झुलस चुका है। ऐसे ही किसी झुलसे हुए सिस्टम का धुंआ है दिल्ली के मुंडका (Mundka Fire Tragedy) में हुआ हादसा, जिसे लंबी कानूनी लड़ाई के बीच लोग फिर जल्दी भूल जाएंगे और सुर्खियों को एक और हादसे का इंतजार रहेगा।

अनियोजित, अवैध दिल्ली और लगातार बढ़ते हादसे

दिल्ली में 75 फीसदी आबादी अनियोजित रूप से बसाई गई है। करीब 1600 से ज्यादा अवैध कॉलोनियां हैं, जहां 65 लाख से ज्यादा आबादी रहती है। हालांकि, दिल्ली में एमसीडी का बुलडोजर चुनिंदा इलाकों में सियासी वजहों से ही चलता है। मुंडका (Mundka Metro Station) में जिस इमारत में आग लगी उसके बारे में दिल्ली अग्नि सुरक्षा विभाग का कहना है कि इमारत में फैक्ट्री चल रही थी और इसके लिए फायर एनओसी नहीं ली गई थी।

बिना सिस्टम के झुलसे ऐसा हो नहीं सकता, क्योंकि भवन का नक्शा पास करने का काम सरकारी विभाग का है और उसी नक्शे को मंजूरी देकर फायर एनओसी के लिए भेजने का काम एमसीडी यानी उस नगर निगम का है, जहां राजनीति और प्रशासन 'परस्पर हित' के लिए मिलकर काम करते हैं। फायर एनओसी के लिए फाइल न भेजने के अपने हित होते हैं। बस यहीं सबसे पहले वह आग लगती है, जो कब, किसके दरवाजे पर भड़केगी, कोई नहीं जानता।


दिल्ली के अग्नि सुरक्षा विभाग की वेबसाइट पर मिली जानकारी के अनुसार दिल्ली में हर साल औसतन 25 हजार के करीब फोन आग लगने के आते हैं और औसतन 300 लोग इनमें अपनी जान गंवाते हैं। फिर भी सिस्टम जस का तस है।

नियम क्या कहते हैं ?

नियमों के मुताबिक, व्यावसायिक प्रतिष्ठानों खासकर फैक्ट्री आदि के लिए रिहायशी इलाकों से दूर अलग स्थान निर्धारित होना चाहिए, जैसा कि मुंबई में है। लेकिन दिल्ली में घर और फैक्ट्री के बीच का अंतर जरा भी नजर नहीं आता। 2019 में अनाज मंडी इलाके की ऐसी ही एक अवैध फैक्ट्री में आग ने 47 जिंदगियां छीन ली थीं। उसी साल फरवरी में एक होटल में लगी आग से 17 जानें चली गईं। नियम कहते हैं कि घरेलू इंडस्ट्री में अधिकतम 9 लोगों को नियुक्त किया जाए, लेकिन मुंडका की इमारत में संकरे केबिन के भीतर तिगुने लोग काम कर रहे थे। घरेलू इंडस्ट्री के लिए बिजली का लोड भी 11 किलोवाट से अधिक का नहीं हो सकता। आने और जाने के लिए अलग रास्ते होने चाहिए। हवा की निकासी के लिए पर्याप्त वेंटिलेशन होना चाहिए। फायर हाइड्रेंट्स होने चाहिए। अगर भवन की डिजाइन को मंजूरी देते समय ही इन बिंदुओं का ध्यान रखा जाए तो आग से तबाही को रोका जा सकता है। लेकिन मौजूदा सिस्टम 'अपने हितों' का नुकसान कतई बर्दाश्त नहीं करता।

राहत और बचाव में लापरवाह सिस्टम

दिल्ली की अनाजमंडी में तीन साल पहले जब एक अवैध फैक्ट्री में आग (Fire In Factory) लगी तो मौके तक पहुंचने के लिए फायर ब्रिगेड की गाड़ियों को तंग गलियों से निकलने में ही काफी मशक्कत करनी पड़ी। कुछ इसी तरह का हाल शुक्रवार को मुंडका में भी नजर आया। बहदवासी में लोग दूसरी मंजिल से कूदकर खुद को चोटिल कर रहे थे। चूंकि, निकासी का रास्ता बहुत संकरा था, इसलिए आग में फंसे लोगों को कोई मौका नहीं मिला। विदेशों में बहुमंजिला इमारतों में आग लगने पर फंसे हुए लोगों को निकालने के लिए स्लाइडिंग सीढ़ियों का इस्तेमाल किया जाता है, जो आग लगते ही स्वचालित तरीके से खुलकर नीचे आ जाती हैं। इसी तरह अग्निशमन एजेंसियों के पास भी आजकल तेजी से आग बुझाने की नई तकनीकें आ चुकी हैं। मुंडका हादसे में दो दमकल कर्मियों की मौत यह बताती है कि देश की राजधानी में दमकल कर्मी किन जोखिमभरी परिस्थितियों में काम कर रहे हैं। मौके पर पहुंचने तक उनके पास इस बात की कोई जानकारी नहीं होती कि जिस बिल्डिंग में आग लगी है, वहां किसी तरह के सामान हैं। यह इसलिए, क्योंकि एमसीडी और दिल्ली अग्नि सुरक्षा विभाग में समन्वय की घोर कमी है।

कानून, सजा और जवाबदेही से बनेगी बात

आग लगने की घटनाएं हादसा तो हैं, लेकिन कानून की बात करें तो इसमें लापरवाही, गैर इरादतन हत्या, आपराधिक षड्यंत्र जैसी गंभीर धाराएं जोड़ी जाती हैं लेकिन अदालत के कटघरे में इनमें से अधिकांश को साबित कर पाना खासा मुश्किल काम होता है, अगर आरोपी अंसल भाइयों की तरह रसूखदार और पहुंच वाला व्यक्ति हो। कोविड काल में हमने देश के अलग-अलग हिस्सों में अस्पतालों में आग लगते, मरीजों को जिंदा जलते और जवाबदेह सिस्टम को मामलए रफा-दफा करते देखा है। हम चाहते हैं कि सिस्टम कुछ न करे, कोर्ट ही बताए कि क्या करना है और सिस्टम कोर्ट की नसीहतों को 'अपने हितों' के तराजू में तौलकर देखे और 90 फीसदी सुझावों को ताक पर रख दे।

कहीं न कहीं, अब कानून को भी ऐसे हादसों के मामले में सख्ती से और चंद सुनवाइयों में ही कठोर सजा की राह पर चलना होगा। कटघरे में न केवल हादसे के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार आरोपी हों, बल्कि उस सिस्टम से जुड़े जिम्मेदारी अफसर, नेता भी सजा के पात्र बनें, जिनकी लापरवाही ने बेकसूरों की जिंदगियां छीनी हैं। हालांकि, पूरे देश में ऐसा हो पाना मुंगेरी लाल के हसीन ख्वाब जैसा है।

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