बिहार के वीआईपी गांव, प्रथम राष्ट्रपति के जिरादेई का अस्पताल बदहाल तो स्वास्थ्य मंत्री के यहां वैक्सीन नहीं
जिला मुख्यालय पर दरभंगा मेडिकल कॉलेज के अलावा दो स्वास्थ्य केंद्र हैं, लेकिन दोनों पड़े हैं बंद, बहादुरपुर के विधायक और प्रदेश सरकार में समाज कल्याण मंत्री मदन सहनी के क्षेत्र में 19 स्वास्थ्य केंद्र, जिसमें से मात्र 2 हैं चालू...
जितेंद्र उपाध्याय की रिपोर्ट
बिहार ब्यूरो, जनज्वार। कोरोना ने अब तक देश में लाखों जिंदगियां लील चुकी है। अब तीसरी लहर फैलने के कयास लगाए जा रहे हैं, जिससे मुकाबला के लिए हम कितना तैयार हैं। यह जानने के लिए ज्यादा जरूरी है, गांवों में स्वास्थ्य इंतजाम का हाल जानना। इसके लिए हम जानते हैं सबसे पहले बिहार की जमीनी हकीकत, जिसे देख आपके जुबान से सहसा निकल पड़ेगा, यहां भगवान का ही भरोसा है।
देश के प्रथम राष्ट्रपति के गांव व स्वास्थ्य मंत्री के जिले में चिकित्सा इंतजाम बदहाल
बिहार के गांवों में स्वास्थ्य इंतजाम का हकीकत जानने के लिए सबसे पहले चर्चा करते हैं स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे के गृह जिले सिवान की। यह जिला चर्चा के लिहाज से इसलिए भी महत्वपूर्ण है, कि देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद का गांव जिरादेई इसी जिले में है। इनके गांव के नाम से बने प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र का निर्माण उनके पंचायत अंतर्गत ग्राम सूरवल में कराया गया है। इस स्वास्थ्य केंद्र के अधिकांश कमरों में लंबे समय तक जिरादेई थाना चलता रहा है। हालांकि नया भवन का निर्माण हो जाने पर अब अपने मूल स्थान पर स्थापित हो चुका है। इसके बाद भी अस्पताल के सेहत में कोई सुधार नहीं हुआ। कहने को तो यह तीस बेड का अस्पताल था, लेकिन अब प्राथमिक उपचार का भी बेहतर इंतजाम नहीं है।
सूरवल निवासी किशोर उपाध्याय कहते हैं कि मुख्यमंत्री बिंदेश्वर दुबे के कार्यकाल में अस्पताल की स्थापना हुई थी। शुरुआत में यहां नियमित चिकित्सक आते थे और भर्ती के लिए बेड के भी इंतजाम थे, लेकिन समय से व्यवस्था में सुधार होने के बजाय खंडहर में तब्दील होते चला गया। एक सप्ताह पूर्व तक कोरोना से बचाव के लिए वैक्सीनेशन यहां हो रहा था, लेकिन अब यहां से बंद कर आदर्श राजकीय मध्य विद्यालय में शुरू किया गया है।
माले विधायक अमरजीत कुशवाहा ने चिकित्सा इंतजाम को बताया बदहाल
जिरादेई के सीपीआईएमएल के विधायक अमरजीत कुशवाहा ने हाल ही में जिरादेई स्वास्थ्य केंद्र का निरीक्षण कर अव्यवस्था से उच्चाधिकारियों को अवगत कराया था। अमरजीत कुशवाहा कहते हैं कि स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे के जिले में स्वास्थ इंतजाम का बुरा हाल है। सदर अस्पताल से लेकर प्राथमिक स्वास्थ केंद्र तक कोरोना काल में कोई इंतजाम नजर नहीं आ रहा। अप्रैल व मई के शुरुआत में ऑक्सीजन के अभाव में बड़ी संख्या में मरीजों की जान चली गई। इसके लिए हमने डीएम से लेकर सिविल सर्जन तक से तत्काल सुधार की मांग की। साथ ही अपने विधायक निधि से भी ऑक्सीजन, वेटीलेटर, बेड समेत अन्य सुविधाएं बहाल करने का प्रस्ताव दिया है। लोगों का जान बचाना इस समय सबसे जरूरी है।
अब बात करते हैं स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे के सिवान जिला अंतर्गत महराजगंज प्रखंड के पैतृक गांव बलिया पोखर की। यहां के प्राथमिक स्वास्थ केंद्र का भवन देखकर आप अंदाजा लगा सकते हैं कि यह किसी वीआईपी का गांव है। स्वास्थ्य कर्मियों के इंतजाम के बाद भी यहां नियमित रोना वैक्सीन उपलब्ध नहीं रह पा रहा है। ग्रामीणों का कहना है कि ईद के बाद से एक सप्ताह तक वैक्सीन न रहने पर लोगों को निराश होकर लौटना पड़ा।
आसपास की पंचायतों के ग्रामीण कहते हैं कि काश मंगल पांडे के गांव की तरह हम लोगों के गांव के स्वास्थ्य केंद्र की तकदीर बदल जाती। स्वास्थ्य मंत्री के बगल का गांव माधोपुर के उप केंद्र का भवन बनने के बाद से लंबे समय से ताला लटका हुआ है। लाखों रुपए की लागत से बने अस्पताल की सुविधा न मिलने से ग्रामीणों में नाराजगी है। गांव के हरिलाल कहते हैं, बड़ी संख्या में लोगों में सर्दी, खासी समेत कोरोना के अन्य लक्षण नजर आ रहे हैं, लेकिन केंद्र चालू न होने से कोई मदद नहीं मिल पा रही है।
सिवान जिले में 380 उपकेंद्र और 45 अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ केंद्र हैं। इसके अलावा 19 प्रखंड में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, मैरवा, रघुनाथपुर व सिसवन में रेफरल अस्पताल तथा महाराजगंज में अनुमंडल अस्पताल है। उप केंद्र अधिकांश बंद पड़े हैं तथा प्राथमिक स्वास्थ केंद्र से चिकित्सक नदारद हैं। 32 प्राथमिक स्वास्थ केंद्र पर आयुष चिकित्सकों की तैनाती है। अन्य प्राथमिक स्वास्थ केंद्र में संविदा पर एमबीबीएस योग्यताधारी चिकित्सक रखे गए हैं। हकीकत यह है कि आयुष चिकित्सकों से प्राथमिक स्वास्थ केंद्र पर काम लेने के बजाय सामुदायिक स्वास्थ्य के चिकित्साधिकारी के निर्देश पर यह उनके केंद्रों पर ड्यूटी करते हैं। ऐसे में प्राथमिक स्वास्थ केंद्र पर अधिकांश वक्त ताला लटका रहता है। जिले के सभी प्रखंडो में वैक्सीनेशन केंद्र तो बना दिए गए हैं, लेकिन वैक्सीन उपलब्ध न होने से आए दिन लोग निराश होकर घर लौटते हैं।
मिथिलांचल के जिलों के ग्रामीण अस्पतालों का खस्ताहाल
बिहार के मिथिलांचल क्षेत्र में स्वास्थ इंतजाम पर नजर दौड़ाने के लिए सबसे पहले दरभंगा जिले की हकीकत जानते हैं। यहां भाटा पार उपकेंद्र का भवन बेहतर है, पर इंतजाम कोई नहीं है। बहादुरपुर प्रखंड के बहादुरपुर दोकली के स्वास्थ्य केंद्र का भी हाल बदहाल है। जिला मुख्यालय पर दरभंगा मेडिकल कॉलेज के अलावा दो स्वास्थ्य केंद्र हैं, लेकिन दोनों बंद पड़ा है। बहादुरपुर के विधायक व प्रदेश सरकार में समाज कल्याण मंत्री मदन सहनी के क्षेत्र में 19 स्वास्थ्य केंद्र हैं, जिसमें से मात्र 2 चालू हालत में हैं।
सीमांचल के जिले बाढ़ के साथ-साथ स्वास्थ्य इंतजाम की कमी से जूझने को मजबूर
बिहार के सीमांचल के जिलों में भी स्वास्थ्य इंतजाम बदहाल है। इस इलाके के अधिकांश जिले बाढ़ व सूखे से प्रभावित रहते हैं, जहां स्वास्थ्य सुविधाओं का संकट लंबे समय से बरकरार है। सुपौल जिला बिहार सरकार के कैबिनेट मंत्री विजेंद्र यादव का गृह जिला है। जिले के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र सरायगढ़-भपटियाही सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र चकाचक है, लेकिन कोरोना काल में सुविधाएं नदारद है।
मरौना प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र को खुद इलाज की जरूरत है। एक तो यहां सृजित पद के मुताबिक डॉक्टर नहीं है वहीं कर्मियों की कमी के कारण उत्तम स्वास्थ्य सेवा देने का दावा महज दिखावा है। पीएचसी में ए ग्रेड नर्स से लेकर महिला चिकित्सक, ड्रेसर, कंपाउंडर आदि के पद खाली पड़े हैं। ऐसे में सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि यहां किस स्तर का इलाज मरीजों को मिलता होगा। हालांकि कोरोना की जांच प्रतिदिन की जा रही है।
सदर प्रखंड अंतर्गत लौकहा बाजार स्थित अतिरिक्त स्वास्थ्य केंद्र (हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर) भवन व डॉक्टर की कमी से जूझ रहा है। इस स्वास्थ्य केंद्र के अंतर्गत लगभग दस गांवों के लोग आते हैं। डॉ. विजय कुमार (प्रभारी) व डॉ.ठाकुर प्रसाद के भरोसे ही पीएचसी का संचालन हो रहा है। पिपरा स्वास्थ्य केंद्र की बात छोड़ दें तो प्रखंड अंतर्गत लगभग सभी उप स्वास्थ्य केंद्रों की स्थिति एक जैसी है। थुमहा में एक आयुष डॉक्टर पदस्थापित हैं, शेष कई जगहों पर एएनएम की पदस्थापना है, लेकिन वह फाइल पर ही है। अमहा, रामपुर, दुबियाही आदि केंद्र तो प्राय: बंद ही रहते हैं। सखुआ में 20 साल पूर्व से भवन बना हुआ है। पहले सप्ताह में एक दिन नर्स आती थी, लेकिन यह वर्षों से बंद पड़ा है।